सहारनपुर- पहले नंबर की लोकसभा सीट सहारनपुर को इस बात के लिए भी जाना जाता है कि आजादी के बाद से हुए लोकसभा चुनावों में कभी भी यहां से कोई महिला सांसद निर्वाचित नहीं हुई है। दूसरी ओर इसी मंडल की कैराना सीट इस मामले में सौभाग्यशाली है कि वहां से चार बार महिलाएं लोकसभा के लिए निर्वाचित हुई हैं।
इनमें सबसे पहले 1980 में प्रधानमंत्री रहे चौधरी चरणसिंह की पत्नी गायत्री देवी, रालोद से अनुराधा चौधरी और दो बार तबस्सुम हसन लोकसभा चुनाव जीती। तबस्सुम हसन एक बार समाजवादी पार्टी से और दूसरी बार राष्ट्रीय लोकदल से सांसद बनीं। महत्वपूर्ण है कि इस बार भी कैराना सीट पर प्रमुख विपक्षी दल समाजवादी पार्टी से इकरा हसन मैदान में हैं।
आजादी के बाद से सहारनपुर लोकसभा सीट से कभी भी कोई महिला सांसद लोकसभा में नहीं पहुंची है। इस बार भी किसी प्रमुख पार्टी ने महिला को अपना उम्मीदवार नहीं बनाया है। छह बार कांग्रेस, तीन बार बसपा, तीन बार भाजपा के सांसद बने जबकि पांच बार रसीद मसूद सांसद निर्वाचित हुए। इस चुनाव में रसीद मसूद के भतीजे इमरान मसूद कांग्रेस-सपा गठबंधन से प्रत्याशी हो सकते हैं। दोनों दलों का शीर्ष नेतृत्व उनके नाम पर मोहर लगा चुका है।
सहारनपुर लोकसभा में महिला सांसद भेजने में तो नाकाम रहा है लेकिन जहां तक विधानसभा का सवाल है तो कई महिलाएं जैसे दलित समाज की शकुंतला देवी, विमला राकेश, राजपूत समाज से शशिबाला पुंडीर, रानी देवलता, बसपा प्रमुख मायावती और सत्तो देवी विधायक रही हैं। शकुंतला देवी कांग्रेस की दिग्गज महिला नेत्री रही हैं। वह चार बार विधायक बनीं। विमला देवी विपक्ष में रहीं और छह बार विधायक चुनी गईं।
सहारनपुर मंडल के मुजफ्फरनगर से बहन मालती शर्मा भाजपा की ओर से राज्यसभा सदस्य रही हैं। वहां से भी कभी कोई महिला लोकसभा में नहीं गई है। पड़ौस की बिजनौर लोकसभा सीट से मुख्यमंत्री मायावती, लोकसभा अध्यक्ष कांग्रेस की मीरा कुमार और ओमवती तीनों दलित समुदाय से सांसद चुनी गईं और उन्होंने बिजनौर की प्रतिष्ठा बढ़ाई।
18वीं लोकसभा के चुनाव में सहारनपुर, मुजफ्फरनगर और बिजनौर से कोई भी महिला उम्मीदवार नहीं है। महिलाओं को सम्मान देने और लोक सभा में भेजने के मामले में कैराना को प्रगतिशील क्षेत्र माना जा सकता है। केंद्र सरकार ने आगामी चुनावों के लिए महिलाओं को 33 फीसद आरक्षण का कानून बना दिया है। लेकिन वर्तमान स्थिति बेहद दयनीय है। जबकि महिला मतदाताओं की संख्या पुरूषों की तुलना में थोड़ी-बहुत ही कम है लेकिन उनकी मतदान में भागीदारी पुरूषों से कहीं भी पीछे नहीं है।