प्रयागराज। पूर्व कैबिनेट मंत्री मोहम्मद आजम खां, पत्नी तंजीम फातिमा व बेटे अब्दुल्ला आजम की आपराधिक पुनरीक्षण याचिका में दाखिल जमानत अर्जी पर फिलहाल कोई राहत नहीं मिली। हाईकोर्ट ने अर्जी की सुनवाई की अगली तिथि छह मई नियत की गई है।
तीनों की तरफ से दाखिल पुनरीक्षण याचिका की सुनवाई इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह की पीठ कर रही है। इस मामले में दो दिनों से लगातार बहस होती रही। समयाभाव की वजह से कोर्ट ने इसे अब छह मई तक के लिए टाल दिया है। इसके पूर्व इस मामले में याची की ओर से सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, इमरानुल्ला खा तथा राज्य सरकार की तरफ से अपर महाधिवक्ता पी सी श्रीवास्तव व जे के उपाध्याय ने पक्ष रखा।
मामले के अनुसार विधानसभा 2017 के चुनाव में अब्दुल्ला आजम स्वार से विधायक चुने गए। प्रतिद्वंदी भाजपा प्रत्याशी नवाब काजिम अली खां उर्फ नावेद मियां व बाद में भाजपा नेता आकाश सक्सेना ने अब्दुल्ला आजम की फर्जी जन्मतिथि की शिकायत की। हाईकोर्ट ने अब्दुल्ला का चुनाव रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट से भी उन्हें राहत नहीं मिली।
अब्दुल्ला आजम के शैक्षिक प्रमाण पत्र में उनकी जन्मतिथि एक जनवरी 93 दर्ज है तो नगर निगम लखनऊ से जारी प्रमाणपत्र में जन्मतिथि 30 सितम्बर 90 दर्ज है। आजम खां सहित तीनों के खिलाफ फर्जी जन्म प्रमाणपत्र तैयार करने के आरोप में केस दर्ज किया गया।
एमपी एमएलए विशेष अदालत रामपुर ने सभी आरोपियों को सात-सात साल की कैद की सजा सुनाई। जिसके खिलाफ सत्र अदालत ने अपील खारिज कर दी। हाईकोर्ट में आपराधिक पुनरीक्षण याचिका में चुनौती दी गई है। उसी में अर्जी देकर जमानत पर रिहा करने की मांग की गई है।
याचीगण की तरफ से तर्क दिया गया है कि उन्होंने कोई फोर्जरी नहीं की है। जन्मतिथि के दो प्रमाणपत्र जारी होने से धारा 467 के अंतर्गत केस नहीं बनता। दूसरे सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि चुनाव याचिका के आदेश को आपराधिक ट्रायल में आधार के रूप में स्वीकार नहीं किया जायेगा। स्वतंत्र साक्ष्यों पर ट्रायल होगा। किन्तु विशेष अदालत ने इसकी अवहेलना करते हुए चुनाव याचिका के फैसले को सजा देने में आधार के रूप में स्वीकार किया है। यह भी बहस की गई कि फर्जी प्रमाणपत्र बनवाने व हलफनामा तैयार करने में आजम खां की कोई भूमिका नहीं है। डाक्टर के परीक्षण न करने को लेकर भी सवाल उठाए गए।