शामली। जनपद में कलेक्ट्रेट, पुलिस व शिक्षा महकमें में नये तेज तर्रार अफसर जनकल्याणकारी योजनाओं और कार्यों को प्रोत्साहन दे रहे हैं, लेकिन इसके उलट कुछ प्रमुख विभागों में 11—11 साल से जमें बाबू अपनी हठधर्मिता दिखाते हुए मनमाने ढंग से कार्य कर रहे हैं, एक ही स्थान पर वर्षों से जमें रहने वाले बाबूओं की पैंतरेबाजी में कुछ अधिकारी भी शामिल हो जाते हैं, क्योंकि वर्षों से एक ही जगह पर जमें मठाधीश बाबू अधिकारियों की रहनुमाई करते हुए उन्हें भी शीशी में उतार लेते हैं।
दरअसल, प्रदेश सरकार जनकल्याण और विभागों से भ्रष्टाचार दूर करने के लिए काफी सजग है. यदि पिछले पांच से आठ सालों में देखा जाए, तो विभागों में बड़े अफसरों के रूप में नये और तेज तर्रार अधिकारियों को तैनाती मिल रही है. शामली जिले में डीएम, एडीएम और एसपी समेत अन्य कई बड़े विभागों के अफसर भी युवा नजर आते हैं, जिनकी कार्यप्रणाली जनता पर छाप छोड़ रही है, लेकिन इसके उलट जनपद के कुछ प्रमुख विभागों में कई बाबू वर्षों से मठाधीश बनकर बैठे हुए हैं. एक ही विभाग में वर्षों से जमे रहने वाले इन बाबूओं की वजह से सरकारी कार्यप्रणाली भी प्रभावित हो रही हैं, यहां तक की जिले के वरिष्ठ अधिकारियों के महकमें में भी कुछ बाबू तो सात वर्षों से भी अधिक एक ही कुर्सी पर जमें हुए हैं, उनके लिए आलाधिकारियों द्वारा समय—समय पर जारी होने वाले आदेश भी कोई मायने नही रखते, क्योंकि आलास्तर पर सेटिंग ने उनकी कुर्सी को सीमेंट से एक ही स्थान पर जमा दिया है. बाबूजी मनमाने तरीके से काम करते हुए जमकर शहद बटोर रहे हैं, जो हर नये अधिकारी के सामने खुद को विभाग के रहनुमा के रूप में प्रदर्शित करते हैं और शहद बटोरने के आसान रास्तों को भी दिखाने का काम करते हैं. ऐसे में जनता को उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है।
सहज कार्य में अटकाते हैं रोड़ा
जिला मुख्यालय पर कलेक्ट्रेट के एक विभाग में जमें एक बाबू की कार्यप्रणाली इन दिनों चर्चाओं में हैं. बाबूजी अपनी मजबूत कुर्सी की वजह से 11 वर्षों से एक ही स्थान पर जमें रहकर कई अधिकारियों की अधिकारियों की ट्रांसफर पोस्टिंग देख चुके हैं. ऐसे में उनकी कार्यप्रणाली अब मनमानी पर उतर आई है, जिसके कारण वें जनता के सहज कार्यों में भी रोड़ा अटकाते नजर आते हैं. आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर शासन द्वारा एक बार फिर पुराने जमें मठाधीशों को हटाने की कोशिशें शुरू कर दी गई हैं, अब देखना यह है कि बाबूजी की कुर्सी तक आदेश पहुंचते हैं या पिछले चुनावों की तरह फिर से ठंडे बस्ते में चले जाते हैं।