Wednesday, November 6, 2024

कुड़मी जाति को एसटी का दर्जा देने के सवाल पर झारखंड से बंगाल तक बवाल, बन रहे जातीय टकराव के हालात

रांची। कुड़मी जाति को आदिवासी का दर्जा देने के सवाल पर झारखंड और बंगाल में अब जातीय टकराव के हालात बन रहे हैं। एक तरफ कुड़मी समाज के लोग आदिवासी दर्जे की मांग को लेकर लगातार आंदोलित हैं, वहीं तरफ उनकी इस मांग के खिलाफ आदिवासी संगठन भी गोलबंद हो रहे हैं। 22 आदिवासी संगठनों ने कुड़मियों की मांग के खिलाफ 8 जून को बंगाल बंद का ऐलान किया है। इसी मुद्दे पर झारखंड में भी आदिवासी संगठनों ने बीते 4 जून को झारखंड के चांडिल में एक बड़ी रैली और आक्रोश जनसभा का आयोजन कर आंदोलन तेज करने का ऐलान किया। सनद रहे कि मणिपुर में भड़की जातीय हिंसा के पीछे भी ऐसी ही वजह है। वहां मैती समुदाय को एसटी दर्जा देने पर नागा और कुकी समुदाय ने मुखालफत की और देखते-देखते जातीय टकराव ने हिंसात्मक शक्ल अख्तियार कर ली।

बंगाल और झारखंड में कुड़मियों और आदिवासियों के बीच का बढ़ता झगड़ा सड़कों पर उतरता दिख रहा है। बीते अप्रैल में कुड़मी समुदाय ने एसटी दर्जे की मांग को लेकर पांच दिनों तक बंगाल से लेकर झारखंड तक रेल चक्का जाम आंदोलन किया था। इस दौरान रेलवे को लगभग 200 ट्रेनें रद्द करनी पड़ी थीं और कई राज्यों की ट्रेन सेवाएं बुरी तरह प्रभावित हुई थीं। समाज के नेताओं ने इस मांग पर आंदोलन को आगे और तेज करने का ऐलान किया है। दूसरी तरफ अब आदिवासियों के संगठन कुड़मियों की इस मांग के खिलाफ सड़क पर उतर रहे हैं। झारखंड से लेकर बंगाल तक कई जगहों पर आदिवासियों ने रैलियां निकाली हैं।

अब इस मुद्दे पर 8 जून को बंगाल बंद बुलाने वाले 22 आदिवासी संगठनों का संयुक्त मोर्चा यूनाइटेड फोरम ऑफ ऑल आदिवासी ऑगेर्नाइजेशन (यूएफएएओ) ने राज्य में सभी एनएच पर जाम लगाने और प्रमुख बाजारों को बंद कराने की रणनीति बनाई है। मोर्चा के नेता सिद्धांत माडी ने कहा है कि कुड़मियों को एसटी का दर्जा देने के लिए सरकार के स्तर पर किसी भी कोशिश का पुरजोर विरोध किया जाएगा। कुड़मियों की यह मांग आदिवासियों के अस्तित्व पर हमला है। कुड़मी परंपरागत तौर पर हिंदू हैं और वे गलत आधार पर आदिवासी दर्जे के लिए सरकार पर दबाव बना रहे हैं।

इधर, झारखंड में जमशेदपुर के पास स्थित चांडिल कस्बे के गांगुडीह फुटबॉल मैदान में बीते रविवार को इसी मुद्दे पर आदिवासियों की आक्रोश जनसभा में हजारों लोग परंपरागत हथियारों के साथ इकट्ठा हुए थे। झारखंड की पूर्व मंत्री गीताश्री उरांव सहित कई बड़े आदिवासी नेता इस मौके पर मौजूद रहे। सभा में ध्वनिमत से प्रस्ताव पारित किया गया कि कुड़मियों के एसटी दर्जे की मांग के खिलाफ आंदोलन तेज किया जाएगा।

गीताश्री उरांव ने सभा में कहा कि कुड़मी समाज की नजर अब आदिवासियों की जमीन-जायदाद पर टिकी है। उनकी मंशा आदिवासियों के लिए सुरक्षित संवैधानिक पदों को हाईजेक करने की है। इसे आदिवासी समाज कतई बर्दाश्त नहीं करेगा। अपने हक-अधिकार और अस्तित्व की रक्षा के लिए समस्त आदिवासियों का एकजुट रहना होगा।

आदिवासी नेता लक्ष्मी नारायण मुंडा ने कहा कि आदिवासी समाज के विधायक और सांसद अगर कुड़मी को एसटी में शामिल करने का समर्थन करते है तो आदिवासी समाज उनका सामाजिक बहिष्कार करेगा। आदिवासी जन परिषद के प्रेमशाही मुंडा ने कहा कि कुड़मी जाति के लोग आदिवासी समाज के वीर शहीदों को अपना बताकर इतिहास के साथ छेड़छाड़ करने की साजिश कर रहे हैं। इस जनसभा में पश्चिम बंगाल के सुमित हेंब्रम, प्रशांत टुडू, हरिपद सिंह सरदार, पातकोम दिशोम पारगाना रामेश्वर बेसरा, श्यामल मार्डी, सुधीर किस्कू, मानिक सिंह सरदार आदि मौजूद रहे।

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