-अशोक भाटिया
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने शुक्रवार को मुंबई में उद्धव ठाकरे से मुलाकात की। केजरीवाल महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से मिलने मातोश्री पहुंचे। इस दौरान केजरीवाल के साथ पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान, आप के राज्यसभा सांसद संजय सिंह और राघव चड्डा भी मौजूद रहे।
सूत्रों के मुताबिक, दोनों नेताओं के बीच 2024 की रणनीति और विपक्ष को एकसाथ लाने को लेकर चर्चा हुई। मुलाकात के बाद उद्धव ठाकरे ने केजरीवाल के साथ मीडिया को संबोधित करते हुए कहा कि हम लंबे समय से मिलना चाहते थे। यह कहने की जरूरत नहीं है कि हम क्यों मिलना चाहते थे। देशभर से कई अन्य वरिष्ठ नेता मुझसे मिलने के लिए संपर्क कर रहे हैं।
वहीं, अरविंद केजरीवाल ने कोरोना महमारी के दौरान मुख्यमंत्री के रूप में उद्धव ठाकरे के काम की प्रशंसा की। केजरीवाल ने कहा कि मुझे यह कहने में बिल्कुल संकोच नहीं कि दिल्ली ने महाराष्ट्र से बहुत कुछ सीखा था। उन्होंने कहा कि कोरोना काल के दौरान उद्धव सरकार के द्वारा अच्छे अभ्यास शुरू किए गए थे जिनका हमने पालन किया।
बता दें कि 2024 लोकसभा चुनाव से पहले विपक्ष एकजुट होने की कोशिश कर रहा है। अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (आप ) को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिलने के बाद कई राज्यों और लोकसभा चुनाव पर नजर है। यही वजह है कि केजरीवाल अलग-अलग राज्यों के दौरा कर रहे हैं।
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (आप ) की राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिलने के बाद कई राज्यों पर नजर है। इसका लेकर केजरीवाल कर्नाटक, छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश सहित कई प्रदेश के दौरे पर जाएंगे। केजरीवाल अगले महीने कर्नाटक, छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्यप्रदेश का दौरा करेंगे। जहां केजरीवाल आप के लिए जुगलबंदी शुरू करेंगे। पार्टी सूत्रों ने बताया कि केजरीवाल 4 मार्च को कर्नाटक में पार्टी के चुनाव प्रचार की शुरुआत करेंगे। दक्षिणी राज्य कर्नाटक में इस साल अप्रैल-मई में विधानसभा चुनाव होने की उम्मीद है और इस समय वहां भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार है।
उन्होंने बताया कि केजरीवाल 5 मार्च को कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़ का दौरा करेंगे जहां पर इस साल विधानसभा चुनाव होने है। उसके बाद 13 मार्च को राजस्थान जाने का कार्यक्रम है जहां की सत्ता पर कांग्रेस काबिज है। उसके बाद मध्यप्रदेश का दौरा केजरीवाल 14 मार्च को करेंगे जहां पर भाजपा सत्ता में है। छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान में इस साल के अंत में चुनाव होने हैं।
इन चार राज्यों के आगामी विधानसभा ‘आप’ के मैदान में होने की वजह से रोचक होने की उम्मीद है जिसका मनोबल पंजाब, गुजरात और गोवा में पिछले साल हुए चुनाव में मिले मतों से ऊंचा है। केजरीवाल नीत पार्टी ने पिछले साल मार्च में पंजाब की सत्ता पर एकतरफा जीत के साथ कब्जा किया था और भाजपा के गढ़ माने जाने वाले गुजरात में भी पार्टी ने दिसंबर में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान 13 प्रतिशत मतों के साथ पांच सीटों पर जीत दर्ज करने में सफल रही थी।
‘आप’ ने गोवा विधानसभा में भी पिछले साल अपनी उपस्थिति दर्ज कराई और दो सीटों पर जीत दर्ज की। इन तीनों राज्यों में पार्टी को मिली सफलता के बाद निर्वाचन आयोग ने उसे राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा प्रदान किया।आप ने कर्नाटक, छत्तीसगढ़,राजस्थान और मध्य प्रदेश की सभी सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। हालांकि, पिछले विधानसभा चुनाव में वह इन राज्यों में अपना खाता भी नहीं खोल सकी थी। साल 2018 के विधानसभा चुनाव में आप ने कर्नाटक की 224 सीटों में से 28 पर अपने उम्मीदवार उतारे थे।
इसके अलावा छत्तीसगढ़ की 90 सीटों में से 85 पर राजस्थान की 200 सीटों में 142 पर और मध्यप्रदेश की 230 सीटों में से 208 पर अपने प्रत्याशी खड़े किए थे लेकिन एक भी सीट जीतने में असफल रही थी। दिल्ली और पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार है। ‘आप’ ने दिल्ली के बाद 2022 में हुए पंजाब विधानसभा चुनाव में ऐतिहासिक जीत दर्ज कर सरकार बनाई थी। ‘आप’ ने पंजाब में 117 में से 92 सीटों पर जीत दर्ज की थी। वहीं, पार्टी ने गोवा विधानसभा चुनाव में भी दो सीटें जीती थीं। इसके बाद, बीते साल (2022 में) ‘आप’ ने बीजेपी के गढ़ गुजरात में जाकर विधानसभा चुनाव लड़ा था।
गुजरात विधानसभा चुनाव में ‘आप’ को 5 सीटों पर जीत मिली थी और करीब 14 फीसदी वोट मिले थे। इसके बाद आम आदमी पार्टी एक राष्ट्रीय पार्टी बन गई। राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल करने के बाद ‘आप’ ने देशभर में अपना विस्तार करने का फैसला किया है। आम आदमी पार्टी का लगभग सभी राज्यों में अपना संगठन बन चुका है और इसे मजबूती देने का काम तेजी से चल रहा है।
आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और राज्यसभा सदस्य डॉ। संदीप पाठक ने कहा, ”हमारा लक्ष्य अरविंद केजरीवाल की राजनीति को देशभर में हर घर और हर व्यक्ति तक पहुंचाना है। आज देश में सकारात्मक और नकारात्मक दो तरह की राजनीति है। नकारात्मक राजनीति में चुनाव के गुणा-भाग, गुंडागर्दी और लड़ाई-झगड़े की गूंज है। वहीं, अरविंद केजरीवाल की सकारात्मक राजनीति में जनता के मुद्दों, पढ़े-लिखे लोगों और स्कूल-अस्पताल की राजनीति हैं।
इस राजनीति को देश की जनता पसंद कर रही है। हमें इस सकारात्मक राजनीति को देशभर में घर-घर तक लेकर जाना है। आम आदमी पार्टी कर्नाटक, छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश समेत अन्य राज्यों में पूरी ताकत के साथ चुनाव लड़ेगी। हम अपने संगठन को जमीनी स्तर पर लगातार मजबूत करने का काम कर रहे हैं।”
आम आदमी पार्टी का गठन नवंबर 2012 को हुआ था। गठन के बाद अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में ‘आप’ ने 2013 में दिल्ली विधानसभा का चुनाव लड़ा और ऐतिहासिक प्रदर्शन करते हुए 70 में 28 सीटें जीतीं। इसके बाद 2015 में हुए दिल्ली विधानसभा के चुनाव में 70 में से 67 सीटें जीतकर पार्टी ने सभी को चौंका दिया। फिर 2020 के विधानसभा चुनाव में भी ‘आप’ ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 70 में 62 सीटों पर जीत दर्ज की।
2022 में पंजाब विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने एक बार फिर ऐतिहासिक प्रदर्शन करते हुए 117 में 92 सीटें जीतकर एक और राज्य में सत्ता हासिल की। वहीं, गोवा विधानसभा चुनाव में भी पार्टी दो सीटें जीतने में कामयाब रही। नवंबर-दिसंबर 2022 में गुजरात विधानसभा चुनाव से ‘आप’ की राष्ट्रीय पार्टी बनने की जरूरत पूरी हो गई।
वर्तमान में आम आदमी पार्टी के पास पूरे देश में 161 विधायक हैं, जिसमें 62 विधायक दिल्ली, 92 विधायक पंजाब, 2 विधायक गोवा और 5 विधायक गुजरात में हैं। इसके अलावा पार्टी के 10 राज्यसभा सदस्य भी हैं। दिल्ली नगर निगम में भी आम आदमी पार्टी की सरकार बन चुकी है। एमसीडी में आम आदमी पार्टी ने 250 में से 134 वार्डों में जीत हासिल की थी।
दूसरी यदि अन्य पार्टियों का हाल देखे तो कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियों को भाजपा से लड़ना है लेकिन उससे पहले सारी विपक्षी पार्टियां आपस में लड़ कर स्कोर सेटल करने में लगी हैं। इसलिए भाजपा से लड़ने से पहले आपसी जोर आजमाइश हो रही है। अगले दो महीने में दो ऐसे बड़े कार्यक्रम होने वाले हैं, जिसमें कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियां अपनी ताकत का प्रदर्शन करेंगी।
तेलंगाना के मुख्यमंत्री और भारत राष्ट्र समिति के नेता के चंद्रशेखर राव और कांग्रेस एक- एक शक्ति प्रदर्शन कर चुके हैं और सबने देखा कि केसीआर ने कांग्रेस को मात दी थी। अब दोनों के बीच दूसरा शक्ति प्रदर्शन होने वाला है। पहले केसीआर ने खम्मम में विपक्ष की रैली की थी, जिसमें विपक्षी नेताओं के साथ साथ चार मुख्यमंत्री शामिल हुए थे पर कांग्रेस की कश्मीर रैली में कोई विपक्षी मुख्यमंत्री या नेता शामिल नहीं हुआ।
अब कांग्रेस अपनी सहयोगी डीएमके के कंधे पर बंदूक रख कर चलाने जा रही है तो दूसरी ओर केसीआर एक बार फिर अपनी ताकत का प्रदर्शन करने जा रहे हैं। पहले कांग्रेस और डीएमके का प्रदर्शन होगा। एक मार्च को डीएमके नेता और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन का जन्मदिन है। वे 70 साल के हो रहे हैं और इस मौके पर उन्होंने सभी विपक्षी पार्टियों को आमंत्रित किया है। चेन्नई में होने वाले जन्मदिन समारोह में कांग्रेस की ओर से राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे शामिल होंगे।
सबसे दिलचस्प बात यह है कि इसमें भारत राष्ट्र समिति के नेता और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को नहीं बुलाया गया है। कहा जा रहा है कि स्टालिन कांग्रेस को ध्यान में रख कर इन नेताओं से सहमति बनाते हुए इनको नहीं बुलाया। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी नहीं बुलाया गया है। वह भी आपसी सहमति से हुआ पर दलील यह दी गई है कि उनका भी जन्मदिन एक मार्च को ही है। वे स्टालिन से दो साल बड़े हैं। सो, बीआरएस, तृणमूल कांग्रेस और जदयू के अलावा बाकी सारी विपक्षी पार्टियां आमंत्रित हैं और जुटेंगी भी। वह एक तरह से कांग्रेस का शक्ति प्रदर्शन है।
इसके जवाब में के चंद्रशेखर राव 14 अप्रैल को डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की जयंती के मौके पर अपने राज्य में एक बड़ा जलसा करने की तैयारी कर रहे हैं। इसमें वे कांग्रेस को छोड़ कर बाकी सभी पार्टियों के नेताओं को बुला रहे हैं। कहा जा रहा है कि विपक्षी एकता बनाने के लिए वे विपक्ष की तमाम पार्टियों के साथ बैठक करेंगे और उसके बाद एक रैली भी होगी। इसमें डीएमके, तृणमूल कांग्रेस, जदयू, राजद, जेएमएम, सपा, जेडीएस, आम आदमी पार्टी और सीपीएम, सीपीआई सहित लगभग सभी विपक्षी पार्टियों को बुलाया गया है। कहा जा रहा है कि इसमें आधा दर्जन मुख्यमंत्री हिस्सा लेंगे। एमके स्टालिन, पिनरायी विजयन, अरविंद केजरीवाल, भगवंत मान, नीतीश कुमार और हेमंत सोरेन इन सबके शामिल होने की संभावना है।
विपक्षी मोर्चा बनने की जगह तो हार कोई अपनी – अपनी डफली बजा रहा है किसको किससे मिलना है और किससे बिछड़ना है तय नहीं हो रहा हैं । हर कोई अपनी दुकान सजाने व अपनी बढाई करने में लगा है ऐसे में समय बताएगा कि कितने विपक्षी मोर्चे बनाते है ?