समाज में ऐसी धारणाएं बनी हुई हैं कि गोरे व्यक्ति ही सुंदर व आकर्षक होते हैं यानी गोरापन ही सुंदरता का एकमात्र पैमाना है लेकिन वास्तविकता यह है कि यदि किसी औरत का रंग गोरा है और नाक-नक्श अच्छे नहीं हैं तो वह उतनी सुंदर नहीं लगेगी जितनी एक सांवली मगर सुंदर नाक-नक्श वाली औरत अच्छी लगेगी। ऐसी सुंदर सांवली औरत को ‘ब्लैक ब्यूटी’ की उपाधि से भी नवाजा जाता है।
प्राय: भारतीय लोग पश्चिमी देशों के गोरे लोगों को देखकर आहें भरते हैं और मन में सोचते हैं, काश, हमारा रंग भी इन अंग्रेेजों की तरह गोरा होता जबकि वास्तविकता यह है कि उनका गोरा रंग त्वचा को सुंदरता व असली गोरापन प्रदान करने वाले गोरे रंग से काफी भिन्न होता है।
यदि उनकी त्वचा को नजदीक से देखें तो सारा भ्रम दूर हो जाएगा। उनकी त्वचा न तो मुलायम होती है और न ही भारतीय लोगों की त्वचा की तरह लावण्यमयी। नजदीक से देखने पर मालूम होता है कि यूरोपीय देशों के गोरे लोगों की त्वचा में खुरदरेपन के साथ छोटे-छोटे काले तिल जैसे असंख्य निशान होते हैं जो काफी भद्दे दिखाई देते हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार गोरा रंग मनुष्य के लिए जानलेवा भी हो सकता है। त्वचा की अधिकतर बीमारियां गोरे लोगों में ही होती हैं। गोरे लोगों की तुलना में भारत और अफ्रीकी देशों के सांवले लोगों में त्वचा कैंसर की संभावना कम होती है। आस्ट्रेलिया के गोरे लोगों में त्वचा का कैंसर विश्व में सबसे अधिक है और वहां यह एक गंभीर समस्या बन चुकी है लेकिन भारतीय लोग त्वचा के कैंसर से कोसों दूर हैं जो हमारी सांवली त्वचा की देन है। त्वचा का काला रंग त्वचा की तमाम समस्याओं से सुरक्षा प्रदान करता है और इन्हें शरीर के पास फटकने नहीं देता।
कहने का तात्पर्य यह है कि जिस काले रंग को हम हेय दृष्टि से देखते हैं वह वास्तव में हमारे शरीर का सुरक्षा कवच है। डस्की स्किन वालों के लिए यह एक खुशखबरी है कि धूप में जाने पर भी उनकी त्वचा बर्न नहीं होती, सिर्फ टैन होती है। इसका कारण है सांवली त्वचा में पाया जाने वाला मेलनोसाइट्स जबकि अंग्रेजों व अन्य गोरे लोगों की त्वचा धूप में जाने से जल जाती है। त्वचा का रंग जितना गोरा होगा, धूप के संपर्क में आने से उतनी जल्दी सनबर्न हो जाएगा।
सांवले रंग पर झुर्रियां भी जल्दी नहीं पड़ती हैं। यदि थोड़ी सी भी त्वचा की देखभाल की जाए तो काफी समय तक झुर्रियों से बचा जा सकता है। त्वचा का कैंसर भी नहीं होता है क्योंकि त्वचा में पाया जाने वाला मेलनोसाइट्स उससे बचाता है।
अत: डस्की कांप्लेक्शन पर हमें गुमान होना चाहिए। डॉ.पराशर कहते हैं कि सांवली- सलोनी महिलाओं को अपनी सोच सकारात्मक रखनी चाहिए। जिस तरह डी.एन.ए. नहीं बदला जा सकता उसी तरह से स्किन कलर को नहीं बदला जा सकता।
प्रकृति ने औरत को मर्द के मुकाबले भावनात्मक रूप से ही नहीं बल्कि शारीरिक रूप से भी अधिक सुंदर व कोमल बनाया है। यदि किसी स्त्री के नाक-नक्श अच्छे हों और रंग भी गोरा हो तो फिर कहना ही क्या। हर तरफ से बस एक ही आवाज आती है, ‘वाह, क्या खूबसूरती है।’ आखिर वह कौन सा राज है जिसकी वजह से औरतें मर्दों के मुकाबले अधिक गोरी होती हैं। आइए, इस वैज्ञानिक रहस्य को जानें।
मनुष्य की त्वचा का रंग कई कारणों पर निर्भर करता है। त्वचा के रंग को कुल 5 पिगमेंट प्रभावित करते हैं। इनमें त्वचा में पाया जाने वाला मेलानिन नामक काला पिगमेंट त्वचा को सांवला या काला रंग देता है। मेलानिन केरोटिन नामक पीला नारंगी पिगमेंट त्वचा को गोरा रंग प्रदान करता है। केरोटिन पिगमेंट वसा या चरबी वाले भाग में अधिक पाया जाता है। चूंकि स्त्रियों की त्वचा में वसा की मात्रा पुरूषों की अपेक्षा अधिक होती है इसलिए केरोटिन की अधिकता के कारण मेलानिन का प्रभाव कम हो जाता है। शहरी महिलाओं की अपेक्षा ग्रामीण महिलाएं शारीरिक श्रम अधिक करती हैं तथा सूरज की किरणों की सीध में भी ज्यादा रहती हैं।
अधिक समय तक तेज धूप में रहने के कारण मेलानिन पिगमेंट अधिक बनता है, इसलिए इनकी त्वचा का रंग सांवला हो जाता है। इसके अलावा अधिक शारीरिक श्रम के कारण ग्रामीण महिलाओं की शरीर पर वसा की मात्रा भी बहुत कम हो जाती है। शहरी महिलाएं अधिक वसा के कारण अपेक्षाकृत मोटी होती हैं फलस्वरूप उनका रंग अधिक गोरा होता है।
शरीर में उपस्थित ऑक्सीहीमोग्लोबिन त्वचा को गुलाबी छवि प्रदान करता है। यह शरीर के उन भागों में अधिक प्रभावी दिखाई देता है जहां रक्त प्रवाह अधिक होता है जैसे चेहरा, गाल, तलवे आदि। यही कारण है कि शरीर के ये भाग अन्य भागों के मुकाबले अधिक गोरे तथा लालिमायुक्त होते हैं।
– खुंजरि देवांगन