नई दिल्ली। पचास प्रतिशत से अधिक भारतीयों का मानना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नागरिकों और मतदाताओं का एक नया ‘वोट बैंक’ बनाया है, जिन्हें 2014 से शुरू की गई असंख्य कल्याणकारी योजनाओं से मदद मिली है। केंद्र की मोदी सरकार के नौ वर्ष पूरे होने पर सीवोटर द्वारा एक विशेष राष्ट्रव्यापी सर्वे में यह खुलासा हुआ है। नरेंद्र मोदी ने 26 मई 2014 को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी। सीवोटर सर्वे में पूछा गया सवाल था- क्या आपको लगता है कि पिछले नौ साल में मोदी ने कल्याणकारी योजनाओं के लाभार्थियों का एक नया वोट बैंक बनाया है? इस सवाल के जवाब में 41 प्रतिशत माना है कि वह इससे पूरी तरह से सहमत हैं, जबकि करीब 12 प्रतिशत की राय थी कि वे आंशिक रूप से सहमत हैं।
मतदाताओं का एक ऐसा मूल आधार है जो मोदी को स्वीकार नहीं करता है। इसका संकेत इस तथ्य से मिलता है कि 27 प्रतिशत से अधिक का कहना है कि वे इस बात से पूरी तरह असहमत हैं। दिलचस्प बात यह है कि करीब 13 फीसदी ने कहा कि वे इस मुद्दे पर राय व्यक्त करने में असमर्थ हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों ने इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए 2019 के लोकसभा चुनावों के आंकड़ों का विश्लेषण किया है कि कल्याणकारी योजनाओं, विशेष रूप से महिलाओं को टारगेट करने वाली योजनाओं, ने राजग शासन को चुनावी समर्थन प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सत्ता में आने के तुरंत बाद, मोदी ने जीरो बैलेंस जन धन योजना शुरू की थी, जो गरीबों को अपने स्वयं के बैंक खाते खोलने और उपयोग करने में सक्षम बनाती थी।
तब से करीब 50 करोड़ ऐसे खाते खोले जा चुके हैं। शुरू की गई कुछ अन्य प्रमुख योजनाओं में गैस कनेक्शन के लिए उज्जवला योजना, शौचालयों के लिए स्वच्छ भारत, मुफ्त बिजली कनेक्शन, मुफ्त चिकित्सा बीमा, मुद्रा ऋण और किसानों को प्रति वर्ष 6,000 रुपये का नकद अनुदान शामिल है।
विभिन्न अनुमानों के अनुसार, इन कल्याणकारी योजनाओं से कम से कम 10 करोड़ महिलाओं को लाभ हुआ है। कोविड महामारी के दौरान, सरकार ने 80 करोड़ भारतीयों को मुफ्त राशन देकर दुनिया की सबसे बड़ी कल्याणकारी योजना शुरू की।