शिमला। हिमाचल सरकार के हाइड्रो प्रोजेक्ट्स पर वाटर सेस के फैसले पर सियासत गरमा गई है। इस मुददे पर सतापक्ष और विपक्ष आमने-सामने आ गए हैं। केंद्र सरकार की ओर से वाटर सेस सेस हटाने के सुझाव पत्र पर उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री ने जवाब देते हुए कहा कि हिमाचल केंद्र के सुझाव को नहीं मानेगा। उन्होंने इस पत्र को राजनीति से प्रेरित पत्र करार दिया है।
मुकेश अग्निहोत्री ने मंगलवार को शिमला में कहा कि हिमाचल एक जल राज्य है और इसके जल पर हिमाचल का अधिकार है। उन्होंने कहा कि मामला अभी भी न्यायालय में है और ऐसे में संवैधानिक तौर पर क्या सही है और क्या गलत यह केंद्र तय नहीं करेगा बल्कि न्यायालय तय करेगा। उन्होंने कहा कि केंद्र को भी इस मामले में जल्दबाजी दिखाने की कोई जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि दूसरी बार केंद्र की ओर से यह पत्र आया है और दूसरे राज्यों को भी केंद्र ने पत्र भेज दिया। जबकि उत्तराखंड में इसको लेकर पहले ही न्यायालय की बेंच ने फैसला सुना दिया है। मुकेश अग्निहोत्री ने सरकार के वॉटर सेस लेने को हिमाचल प्रदेश का अधिकार बताया है।
दूसरी तरफ इस मुददे पर नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने सुक्खू सरकार पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि वाटर सेस के मामले मे प्रदेश सरकार केंद्र को दोषी ठहरा रही है और लोगों को गुमराह कर रही हैं। जयराम ठाकुर ने कहा कि वाटर सेस के बारे मे केंद्र से जो पत्र आया है, प्रदेश सरकार को इसका जवाब देना चाहिए।
बता दें कि सुक्खू सरकार ने प्रदेश की आर्थिकी को पटरी पर लाने के लिए ऊर्जा उत्पादकों पर वॉटर सेस लगाने का निर्णय लिया है। प्रदेश सरकार ने इसी साल विधानसभा में वाटर सेस को लेकर विधेयक पारित कर राज्य जल उपकर आयोग स्थापित किया था। प्रदेश के 173 प्रोजेक्टों से सालाना करीब 2000 करोड़ रुपये का कोष मिलने की उम्मीद है।
हालांकि प्रदेश सरकार की राह में केंद्र रोड़ा बनकर खड़ा हो गया है। दरअसल केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय ने 25 अक्टूबर को सभी राज्यों को एक पत्र लिख वॉटर सेस को अवैध व असंवैधानिक बताते हुए इसे शीघ्र बंद करने के निर्देश दिए हैं। मंत्रालय ने संविधान के अनुच्छेद 286,287 व 288 का हवाला देते हुए बिजली उत्पादन पर वॉटर सेस व अन्य शुल्क लगाने को राज्य के क्षेत्राधिकार से बाहर बताया है।
सुक्खू सरकार ने वॉटर सेस की दर 0.06 से लेकर 0.30 रुपये प्रति घन मीटर तय की गई थी। राज्य जल उपकर आयोग ने सितंबर में कई ऊर्जा उत्पादकों को वाटर सेस के बिल जारी कर दिए थे। बीबीएमबी,एनटीपीसी,एनएचपीसी समेत कई अन्य ऊर्जा उत्पादकों ने प्रदेश सरकार के इस निर्णय को हाई कोर्ट में चुनौती दे रखी है।