Sunday, May 19, 2024

बारिश-ओलावृष्टि की मार ने किसानों को कहीं न छोड़ा?

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बदलते मौसम के मिजाज और अचानक हुई घनघोर बारिश ने अपने रोद्र रूप से अन्नदाताओं की एक बार फिर कमर तोड़ दी। खेतों में इस वक्त अधपकी गेंहू की फसल खड़ी है जिसे तेज बारिश और मोटे-मोटे ओलो ने जमीदोज कर दिया। बीते शनिवार की शाम और रविवार की रात में तेज हवाओं के साथ रुक-रुककर हुई बारिश ने खेतों में खड़ी हरी फसलों को पूरी तरह से चौपट कर डाला। जबकि, ये सीजन तिलहन और फूल लगे दलहन फसलों का है, उन्हें भारी नुकसान हुआ।
प्रकृति के इस परिवर्तन कार्य के आगे किसी का कोई जोर भी नहीं चलता। खेती किसानी पर वैसे ही संकट के बादल गुजरे कुछ सालों से मंडराए हुए हैं। फसलों को उगाने में किसान जितनी लागत लगाता है, उतना वसूल भी नहीं पाता। खेती में उन्हें लगातार घाटा होता चला जा रहा है। ऊपर से कुदरत की कहर बरपाती मार उन्हें परेशान कर देती है। दो दिनों में बारिश से हुई इस लोक हानि की भरपाई कौन करेगा? इसकी गारंटी शायद कोई नहीं देगा। बारिश से फसलों के नुकसान पर कई प्रदेशों की सरकार ने मुआयना करने के बाद मुआवजा देने का ऐलान किया है लेकिन इस तरह का मुआवजा कब और कितने दिनों बाद दिया जाता है, इस कड़वी सच्चाई से किसान अच्छे से वाकिफ हैं। लाखों के नुकसान पर मात्र कुछ सौ रूपए या एकाध हजार का ही मुआवजा देकर मामले को रफादफा कर दिया जाता है जो किसानों की नुकसान की भरपाई नहीं कर पाता।
गौरतलब है, बेमौसम बारिश विगत कई वर्षों से लगातार हो रही है और तभी, होती है जब फसलें पक कर खेतों में खड़ी होती हैं। पिछले कई वर्षां से कमजोर मानसून मुख्य कारण तो बना ही हुआ है जिससे धान की फसल का उत्पादन घट गया है पर इस बार रबी फसल की बुवाई और मौसम अनुकूल रहने के कारण गेहूं और तेलहन की फसल अच्छी हुई थी लेकिन कुदरत के कहर और बेमौसम बारिश ने रबी की फसलों को पल भर में तहस-नहस कर दिया। तेज हवा के झोंकों ने बाली दे चुके गेहूं की फसल जमीन पर बिछ गई। फसल का दाना पुष्ट नहीं हुआ था, इससे वो सड़ जाएगा। निश्च्ति रूप से अवकाल वृष्टि ने हमारे कृषि क्षेत्र की भेद्यताओं को कहीं का नहीं छोड़ा। बारिश को आम तौर पर एक वरदान कहा जाता है लेकिन, समय पर हो तब? बेमौसम बारिश किसानों के लिए फसल की कम कीमतों, बढ़ती लागत और मौसम पैटर्न के प्रभाव अभिशाप साबित हो रही हैं।
एक सवाल जो बार-बार उठने लगा है कि क्यों होने लगी हैं बेमौसम बारिश? ये सवाल मौसम वैज्ञानिकों के लिए भी चुनौति बना हुआ है। वैज्ञानिकों की माने तो अनचाही बारिश का समग्र मुद्रास्फीति की प्रवृत्ति पर सोपानी प्रभाव ड़ालता है जिसका असर केवल कृषि क्षेत्र तक ही सीमित नहीं रहता बल्कि अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों को भी प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है। जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप अप्रत्याशित मौसम पैटर्न की उत्पत्ति के चलते ही बेमौसम बारिश होती हैं। इसके अलावा ग्लोबल वार्मिंग, दुर्बल पश्चिमी विक्षोभ और प्रबल उष्णकटिबंधीय जेट स्ट्रीम हाल में हुई बेमौसम बारिश के प्रमुख कारण हैं। अन्य कारणों को देखें तो अल नीनो एक मौसमी परिघटना है जो तब होती है, जब पश्चिमी प्रशांत महासागर का गर्म जल पूर्व की ओर प्रवाहित होता है जिसके परिणामस्वरूप कुछ क्षेत्रों में सूखे की स्थिति जबकि कुछ अन्य क्षेत्रों में बेमौसम बारिश की स्थिति उत्पन्न हो जाती हैं। इसलिए कुल मिलाकर बेमौसम बारिश का मुख्य कारण ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन ही है। वैसे, मानवीय गतिविधियां भी बदलते मौसम मिजाज का कारण हैं। जंगलों की कटाई, शहरीकरण और प्रदूषण जैसी इंसानी गतिविधियां भी इसमें भरपूर योगदान देती हैं। वनों की कटाई जल चक्र को बाधित करती हैं। वहीं, शहरीकरण और प्रदूषण सूक्ष्म-जलवायु को प्रभावित करती हैं जिसके चलते मौसम बदलाव के लिए करवट लेना आरंभ करता है।
फिलहाल मार्च लगते ही समूचे हिंदुस्तान में हुई बेहताशा बारिश ने पूरे जग को सराबोर कर दिया है। कई जगहों पर तो बहुत मोटे-मोटे ओले पड़े जिससे फसलें खेतों में ही गिर गई. जब तक दोबारा उठ पाएंगी तो उसका दाना सड़ चुका होगा। सरसों, सब्जियां, दालें, प्याज आदि की फसलों को कुछ ज्यादा ही नुकसान हुआ है। ये ऐसी फसलें होती हैं जो बहुत कमजोर मानी जाती है, हल्की बारिश में भी खराब हो जाती हैं। अन्नदाता बर्बाद हुई फसलों को देखकर कलेजा पकड़कर खेतों में बैठे हैं। उनके रोने-चिल्लाने की तस्वीरें सोशल मीडिया पर तैर रही हैं जिन्हें देखकर हम सभी परेशान हैं। किसान सरकारों से उम्मीद लगाए हैं कि उन्हें उनकी फसलां के नुकसान पर वित्तीय सहायता मिलेंगी। सहायताएं मिलनी भी चाहिए, आखिर उनकी छह महीने की कमाई पर पानी जो फिरा है। ऐसे में उन्हें सिर्फ उम्मीदें हुकूमतों से ही होती हैं. किसानों की वो उम्मीदें नहीं टूटने देनी चाहिए।
हालांकि, फसलों की सुरक्षा के लिए वैसे तो केंद्रीय स्तर पर कई योजनाएं अमल में हैं लेकिन शायद कुदरती आपदाओं के वक्त किसानों को उनकी सुविधाएं तब मिल नहीं पाती। ‘प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना और मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना जैसी कई बेहतरीन पहलें हैं, लेकिन कम जोतकार किसान इन योजनाओं का फायदा नहीं उठा पाता। वर्ष-2016 में भारत सरकार द्वारा शुरू की गई ‘फसल बीमा योजना, जो प्राकृतिक आपदाओं, कीटों या बीमारियों के कारण फसल खराब होने या नुकसान की स्थिति में किसानों को वित्तीय सहायता प्रदान करती है। इस योजना के तहत किसानों को नॉमिनल प्रीमियम देना होता है और शेष राशि का भुगतान सरकार करती हैं। प्रीमियम की दरें फसल के प्रकार, अवस्थिति और किसान द्वारा चुने गए कवरेज के स्तर के आधार पर तय होती हैं। यह योजना सभी खाद्य एवं तिलहन फसलों और वाणिज्यिक एवं बागवानी फसलों को दायरे में लाती हैं।
दरअसल, दिक्कत ये है मध्यम स्तर का किसान अपनी फसलों की गारंटी या बीमा नहीं करवाता। मात्र छह फीसदी सीमांत व बड़े किसान ऐसे हैं जो इस योजना को फॉलो करते हैं। बहरहाल, मसला इस वक्त ये है, बैमौसम बारिश से हुए नुकसान से किसानों को उभारने का, सरकारी स्तर पर उनकी हर संभव सहायता होनी चाहिए हालांकि, फसलों के नुकसान की भरपाई के लिए किसानों को ‘कृषि निवेश अनुदान योजना के तहत ‘राज्य आपदा मोचक निधि से सहायता देने का निर्णय हुआ है। जिलाधिकारियों को निर्देशित किया गया है कि वो कैंप लगाकर सर्वे करवाएं। किसानों की फसलों का 33 प्रतिशत या उससे अधिक का नुकसान होने पर सूचनार्थ-रिपोर्ट शासन को भेजने का आदेश दिया गया है।
-डॉ0 रमेश ठाकुर

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