महाशिवरात्रि हमारे देश का एक अत्यंत ही प्रमुख एवं महत्वपूर्ण पर्व है जो हरेक वर्ष फरवरी अथवा मार्च महीने में आता है। भगवान शिव की आराधना से जुड़ा यह पर्व वसंत ऋतु के बाद आता है और इस समय मौसम बहुत ही खुशगवार होता है और प्रकृति अपनी परवान पर होती है, न अधिक सर्दी और न ही अधिक गर्मी मानवमन को प्रसन्नता, उल्लास व खुशी से सरोबार कर देती है। जानकारी देना चाहूंगा कि इस वर्ष महाशिवरात्रि पर्व पूरे देश में हर्षोल्लास एवं उमंग से 8 मार्च को मनाया जाएगा। शिव भक्तों के लिए महाशिवरात्रि का त्योहार बहुत ही महत्वपूर्ण व पावन त्योहार होता है।इस दिन सुबह से लेकर रात्रि जागरण कर शिव पूजा का विधान है।
दक्षिण भारतीय पञ्चाङ्ग के अनुसार, माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन महा शिवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है। उत्तर भारतीय पञ्चाङ्ग के अनुसार, फाल्गुन माह में आने वाली मासिक शिवरात्रि को महा शिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। पंचांग के अनुसार फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष चतुर्दशी तिथि 8 मार्च 2024 को रात 09.57 से शुरू होगी और अगले दिन 09 मार्च 2024 को शाम 06.17 मिनट पर समाप्त होगी। वैसे तो महाशिवरात्रि को भारत के अधिकतर क्षेत्रों में महाशिवरात्रि के नाम से ही अधिक जाना जाता है लेकिन महाशिवरात्रि पर्व के अन्य नाम भी है। महाशिवरात्रि को देश के अलग अलग हिस्सों में क्रमश:शिव चौदस, शिव चतुर्दशी एवं शिवरात्रि के नाम से भी जाना जाता है। इस जीव जगत में शिव को देवों का देव महादेव के नाम से भी जाना जाता है और शिव के बारे में यह कहा जाता है कि सत्य ही शिव हैं और शिव ही सुंदर है।यही कारण है कि संस्कृत में कहा गया है-सत्यं शिवम् सुंदरम्। शिवरात्रि के त्योहार को वैसे तो दुनिया के अनेक देशों में मनाया जाता है लेकिन इसे विशेषतया हिंदू, भारतीय, भारतीय प्रवासी ही मनाते हैं। महाशिवरात्रि भगवान शिव का सबसे पवित्र दिन है।
वास्तव में यह दिन अपनी आत्मा को पुनीत करने ,उसे शुद्ध करने का दिन है।अपने आप में महाशिवरात्रि को महा व्रत कहा जाये तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी क्योंकि शिव शक्ति के प्रतीक है। इस व्रत को करने से सब पापों का स्वत: ही नाश हो जाता है। हिंसक प्रवृत्ति बदल जाती है और मनुष्य सद्गुणों की ओर अग्रसर होता है। भारतीय कैलेंडर के अनुसार महाशिवरात्रि का त्योहार फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है। महाशिवरात्रि के दिन बच्चे, बूढें, महिलाएं तक व्रत रखती है। शिवभक्त इस दिन उपवास रखते हैं और शिव मंदिरों में जाकर शिवलिंग पर जल, बेल-पत्र ,फूल पत्ते, फल, शहद, धतूरा ,दूध आदि चढ़ाते है तथा रात्रि जागरण करते हैं। यदि हम अनुष्ठानों की बात करें तो इस दिन रुद्राभिषेक, रुद्र महायज्ञ, रुद्र अष्टाध्यायी का पाठ, हवन, पूजन तथा बहुत प्रकार का अर्पण-अर्चना आदि शिवभक्तों द्वारा की जाती हैं। कहते हैं कि इस रावण द्वारा रचित शिव पाठ करने से शिव अत्यंत प्रसन्न होते हैं और भक्तों पर अपनी कृपा बरसाते है। एक मान्यता यह भी है कि शिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर गन्ने का रस चढाने से धन धान्य की प्राप्ति होती है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन मिट्टी के बर्तन में पानी भरकर, ऊपर से बेलपत्र, आक धतूरे के पुष्प, चावल आदि डालकर ‘शिवलिंग पर चढ़ाये जाते है। अगर पास में शिवालय न हो, तो शुद्ध गीली मिट्टी से ही शिवलिंग बनाकर उसे पूजने का विधान है। वैसे तो शिवरात्रि हर महीने में आती है परंतु फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को ही महाशिवरात्रि कहा गया है।
ज्योतिषीय गणना के अनुसार सूर्य देव भी इस समय तक उत्तरायण में आ चुके होते हैं तथा ऋतु परिवर्तन का यह समय अत्यन्त शुभ एवं फलदायी होने के साथ ही मंगलदायक कहा गया है। महाशिवरात्रि पर रुद्राभिषेक का बहुत महत्व माना गया है और इस पर्व पर रुद्राभिषेक करने से सभी रोग और दोष समाप्त हो जाते हैं। शिवरात्रि से आशय हैं- वह रात्रि जिसका शिवतत्त्व से घनिष्ठ संबंध है। भगवान शिव की अतिप्रिय रात्रि को ही शिव रात्रि कहा जाता है। शिव पुराण की ईशान संहिता में यह बताया गया है कि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि में आदिदेव भगवान शिव करोड़ों सूर्यों के समान प्रभाव वाले लिंग रूप में प्रकट हुए-फाल्गुनकृष्णचतुर्दश्यामादिदेवो महानिशि। शिवलिंगतयोद्भूत: कोटिसूर्यसमप्रभ:॥ वास्तव में शिवरात्रि सत्य और शक्ति का दिन है। शिव वास्तव में अनादि, अनंत, साकार, निराकार सब हैं। ओह्म नम: शिवाय का मंत्र शिव को अत्यंत प्रिय हैं।शिव त्रिदेवों में एक देव हैं। इन्हें देवों के देव भी कहते हैं। इन्हें भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र, नीलकंठ, गंगाधार आदि नामों से भी जाना जाता है। तंत्र साधना में इन्हे भैरव के नाम से भी जाना जाता है। वेद में शिव का नाम रूद्र कहा गया है। यह व्यक्ति की चेतना के अन्तर्यामी हैं। इनकी अर्धांगिनी (शक्ति) का नाम पार्वती है। इनके पुत्र कार्तिकेय और गणेश हैं, तथा पुत्री अशोक सुंदरी हैं। शिव अधिकतर चित्रों में योगी के रूप में देखे जाते हैं और उनकी पूजा शिवलिंग तथा मूर्ति दोनों रूपों में की जाती है। शिव के गले में नागदेवता विराजित हैं और हाथों में डमरू और त्रिशूल लिए हुए हैं। जटाओं में गंगा का वास है।कैलाश में भी उनका वास है। अमरनाथ में शिव साक्षात विराजमान हैं। कैलाश में शिव का वास शैव मत के आधार है। इस मत में शिव के साथ शक्ति सर्व रूप में पूजित है। भगवान शिव को संहार का देवता कहा जाता है। भगवान शिव सौम्य आकृति एवं रौद्ररूप दोनों के लिए विख्यात हैं। अन्य देवों से शिव को भिन्न माना गया है। सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवं संहार के अधिपति शिव हैं। त्रिदेवों में भगवान शिव संहार के देवता माने गए हैं। शिव अनादि तथा सृष्टि प्रक्रिया के आदि स्रोत हैं और यह काल महाकाल ही ज्योतिष शास्त्र के आधार हैं। शिव का अर्थ यद्यपि कल्याणकारी माना गया है, लेकिन वे हमेशा लय एवं प्रलय दोनों को अपने अधीन किए हुए हैं। राम, रावण, शनि, कश्यप ऋषि आदि इनके भक्त हुए है। शिव सभी को समान दृष्टि से देखते है इसलिये उन्हें महादेव कहा जाता है। शिव के कुछ प्रचलित नाम, महाकाल, आदिदेव, किरात, चन्द्रशेखर, जटाधारी, नागनाथ, मृत्युंजय, त्रयम्बक, महेश, विश्वेश, महारुद्र, विषधर, नीलकण्ठ, महाशिव, उमापति, काल भैरव, भूतनाथ आदि। आओ हम सब इस शिवरात्रि को भगवान शिव की पूजा अर्चना करके अपने जीवन को धन्य बनायें। सृष्टि के आदि स्रोत भगवान शिव हमेशा ही कृपा बरसाने वाले,मंगलकारी, विघ्न हर्ता हैं। आओं हम सब शिव की पूजा अर्चना से जीवन का कल्याण करें।
-सुनील कुमार महला