Monday, April 28, 2025

राम और रावण: दो विपरीत ध्रुव

गहराई से देखें तो राम और रावण दोनों ही अलग अलग प्रतीक हैं। हम चाहे उन्हें मानव और दानव के रूप में देखें या आध्यात्मिक और भौतिकतावादी संस्कृतियों के रूप में। चाहे उन्हें राक्षस और रक्षक के रूप में देखा जाये या दमनकारी और उद्धार करने वाले तत्वों के रूप में, हर रूप में वे दो विपरीत ध्रुवों का प्रतिनिधित्व करते नजर आते हैं।

मिथक के रूप में जहां राम और रावण अयोध्या और लंका की संस्कृतियों के प्रतिनिधि हैं, वहीं उन्हें विनम्रता और अहंकार के प्रतीकों के रूप में भी आसानी से पहचाना जा सकता है।

एक ओर राम हैं जो पिता की आज्ञा के पालन में मिलने जा रहे राज्य को छोड़कर सहर्ष वन गमन कर जाते हैं, तो दूसरी तरफ रावण है जो सब कुछ अपनी ही मुट्ठी में रखने को आमादा है। यहां तक कि उसे अपने ही भाई विभीषण की सलाह भी नागवार लगती है, जिससे वह उसे एक ही झटके में देश निकाला दे देता है।

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रावण अपनी ही संपत्ति से संतुष्ट नहीं होता बल्कि औरों की संपत्ति तक लूटने और हड़पने के लिए सतत प्रयत्नशील रहता है। अपने धन और रुतबे को बढ़ाने के लिए वह निकृष्ट से निकृष्ट कृत्य करने से भी बाज नहीं आता। शूर्पणखा के मान भंग के बहाने वह राम की सुंदर पत्नी का अपहरण कर लेता है, जिसे पाने में वह धनुष यज्ञ में सफल नहीं हो पाया था।

दूसरी तरफ, राम शापग्रस्त अहिल्या को शापमुक्त कर महिला उद्धारक के रूप में उभरते हैं। शबरी के झूठे बेर खाकर वे खुद को जात-पात से ऊपर सिद्ध करते हैं, और जटायु का तर्पण करके अपने प्रति निष्ठावान लोगों के प्रति कृतज्ञ और दयालु होने का परिचय देते हैं।

रावण अपनी शक्ति के मद में फूला रहता है, वहीं राम कम संसाधनों के बावजूद एक अच्छे प्रबंधक के रूप में उभरकर आते हैं। वे बंदरों और भालुओं जैसी छोटी-छोटी जीवों को इकट्ठा करके एक बड़ी सेना तैयार करते हैं और रावण जैसे महाबली का वध कर देते हैं। इससे सिद्ध होता है कि लक्ष्य प्राप्ति के लिए संसाधन नहीं, बल्कि दृष्टि, लगन, निष्ठा, ईमानदारी और शुचिता का होना अधिक महत्वपूर्ण है।

राम और रावण दोनों दो अलग-अलग विचारधाराओं के प्रतिनिधि हैं। उनकी सोच, प्रकृति और प्रवृत्ति में जमीन-आसमान का फर्क है। एक जिद का दूसरा नाम है, तो दूसरा दृढ़ संकल्प का प्रतीक है। एक सब कुछ हड़प लेना, छीन लेना चाहता है, तो दूसरा अपना सुख त्याग कर समाज और राष्ट्र की समृद्धि के लिए काम करता है।

राम और रावण दो एकदम विपरीत ध्रुव हैं, और यही अंतर उनकी जीत और हार का कारण भी बनता है। समय कितना भी बदल जाए, अंततः जीत सच की होती है।

घनश्याम बादल

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