नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को योगगुरु और पतंजलि के संस्थापक बाबा रामदेव की रिट याचिका पर सुनवाई की, जिसमें उन्होंने कोविड-19 के एलोपैथिक उपचार के खिलाफ विवादास्पद टिप्पणियों को लेकर कई राज्यों में उनके खिलाफ दर्ज आपराधिक एफआईआर से सुरक्षा की मांग की है।
बाबा रामदेव की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ दवे ने दलील दी कि उनकी टिप्पणियां भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) या किसी अन्य अधिनियम के तहत किसी अपराध के दायरे में नहीं आतीं।
यह कहते हुए कि रामदेव ने अगले दिन अपनी टिप्पणियां वापस ले लीं, दवे ने आगे कहा कि रामदेव “चिकित्सा के एक विशेष रूप में विश्वास नहीं कर सकते … इससे चिकित्सा के इस रूप का अभ्यास करने वाले डॉक्टरों को भी ठेस पहुंच सकती है। लेकिन कोई अपराध नहीं बनता है।”
न्यायमूर्ति ए.एस. बोपन्ना और न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश की पीठ ने केंद्र, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए), बिहार और छत्तीसगढ़ सरकारों को नोटिस जारी किया और मामले में उनकी प्रतिक्रिया मांगी।
रामदेव की याचिका में उनके खिलाफ सभी प्राथमिकियों को एक साथ जोड़ने और उन्हें दिल्ली स्थानांतरित करने की मांग की गई है। उन्होंने अपने खिलाफ दायर कई मामलों की कार्यवाही पर रोक लगाने और दंडात्मक कार्रवाई से सुरक्षा देने का भी अनुरोध किया।
रामदेव ने कोविड-19 महामारी के दौरान एक बड़ा विवाद खड़ा कर दिया था, जब उनका एक वीडियो सामने आया था, जिसमें उन्होंने दावा किया था कि रेमडेसिविर और फैबिफ्लू जैसी दवाएं, जिन्हें भारत के औषधि महानियंत्रक (डीसीजीआई) द्वारा अनुमोदित किया गया था, कोविड-19 रोगियों के इलाज में विफल रही हैं।
रामदेव ने वीडियो में कहा, “मेडिकल ऑक्सीजन की कमी या बिस्तरों की कमी से ज्यादा लोग एलोपैथिक दवाओं के कारण मरे हैं।”
जैसे ही वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, डॉक्टरों आक्रोश फैल गया, आईएमए ने रामदेव को कानूनी नोटिस जारी किया।
इसके बाद रायपुर और पटना की आईएमए शाखाओं द्वारा उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गईं।