मुंबई। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने इस हफ्ते नए लिक्विडिटी कवरेज नियमों के प्रभावों को समझने के लिए बैंकों से बातचीत की। नए नियमों को लेकर चिंताएं पैदा हो गई हैं कि इससे अर्थव्यवस्था में क्रेडिट फ्लो पर नकारात्मक असर हो सकता है। एनडीटीवी प्रॉफिट की रिपोर्ट के मुताबिक, बैंकों ने कुछ फीडबैक दिए हैं, नियमों को स्थगित करने और इन नियमों से संभावित नुकसान से निपटने के लिए वैकल्पिक तंत्र की मांग की थी।
यह कदम ऐसे समय उठाया गया है जब संजय मल्होत्रा ने हाल ही में आरबीआई के नए गवर्नर के रूप में पदभार संभाला है। उन्होंने शक्तिकांत दास का स्थान लिया है, जिन्होंने दिसंबर में केंद्रीय बैंक के प्रमुख के रूप में अपना कार्यकाल पूरा किया था। बैंकिंग सिस्टम में लिक्विडिटी एक बड़ी समस्या बन गई है। गुरुवार को बैंकिंग सिस्टम में लिक्विडिटी की कमी 3 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गई है। इससे निपटने के लिए आरबीआई पिछले हफ्ते वेरिएबल रेपो रेट का ऑक्शन शुरू कर चुका है। आरबीआई ने 25 जुलाई को एक ड्राफ्ट सर्कुलर जारी किया था, जिसके अनुसार बैंकों को इस वर्ष 1 अप्रैल से अपने जोखिमों को कवर करने के लिए अधिक धनराशि अलग रखनी होगी।
आरबीआई ने कहा कि हाल के वर्षों में बैंकिंग में तेजी से बदलाव आया है। टेक्नोलॉजी के बढ़ते उपयोग ने तत्काल बैंक हस्तांतरण और निकासी की क्षमता को सुगम बनाया है, लेकिन इससे जोखिम में भी वृद्धि हुई है, जिसके लिए सक्रिय प्रबंधन की आवश्यकता है। इस कारण बैंकों में मजबूती बढ़ाने के लिए लिक्विडिटी कवरेज रेश्यो (एलसीआर) फ्रेमवर्क की समीक्षा की गई है। बैंकों को निर्देश दिया गया है कि वे इंटरनेट और मोबाइल बैंकिंग सुविधाओं (आईएमबी) से युक्त खुदरा जमाओं के लिए अतिरिक्त 5 प्रतिशत धनराशि को रन-ऑफ फैक्टर के रूप में आवंटित करें।