लखनऊ। हर करम अपना करेंगे, ऐ वतन तेरे लिए… गणतंत्र दिवस की पावन बेला पर कण-कण, गण तंत्र की गौरव गाथा की अमर कहानी गा रहा है। राष्ट्रीय पर्व 75वां गणतंत्र दिवस शुक्रवार को सादगीपूर्वक आकर्षक तरीके से मनाया गया। राजधानी लखनऊ में शौर्य, प्रगति और लोक कलाओं का ऐसा संगम दिखा कि हर आंख गर्व से चमक उठी।
सेना के जवान अलग-अलग हथियारों-उपकरणों का गणतंत्र दिवस परेड में अपनी जौहर का प्रदर्शन करने के साथ सारे जहां से अच्छा हिंदोस्थान हमारा… जैसे देशभक्ति तरानों पर कदमताल किया। वहीं स्कूली बच्चों ने देशभक्ति से ओत-प्रोत रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम से सबका मन मोह लिया। विभिन्न नृत्यों, संगीत और नाटकों के जरिए भारत की समृद्ध विरासत और विविधता को जीवंत रूप से प्रस्तुत कर आत्मविश्वास और देशभक्ति की भावना जगाई। भव्य आयोजन में विभिन्न सैन्य टुकड़ियों, सांस्कृतिक दलों और झांकियों का प्रदर्शन हुआ, जो भारत की ताकत, एकता और सांस्कृतिक विविधता का मनमोहक दृश्य प्रस्तुत कर रहा था।
गणतंत्र दिवस की धूम, तिरंगे की बहार
कुछ दिन पहले अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के मौके पर भगवा रंग की बहार छाई हुई थी, वहीं गणतंत्र दिवस पर भी तिरंगे की बहार हर कहीं दिखी। पूरी राजधानी तिरंगा झंडों से लेकर पटी थी और लोगाें का तन-मन भी तिरंगा नजर आया। कई तरह के टी-शर्ट, टोपियां, हैंड-बैंड आदि लगाए बच्चे राष्ट्र प्रेम के भाव प्रदर्शित कर रहे थे।
त्याग और बलिदान की गौरवगाथा, स्वतंत्रता सेनानियों को नमन
गणतंत्र दिवस के साथ देशभक्तों के त्याग और बलिदान की एक लंबी गौरवगाथा जुड़ी हुई है। देश को आजादी दिलाने के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, शहीद भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, चंद्रशेखर आजाद और उधम सिंह जैसे अनेक स्वतंत्रता सेनानियों ने लम्बा संघर्ष किया। वर्ष 1950 में इस दिन भारत का संविधान लागू हुआ था। इसी संविधान के कारण हम सभी को समान न्याय, स्वतंत्रता एवं समानता का अधिकार मिला। राष्ट्रगान के सामूहिक गायन के साथ बाबा साहेब डाॅ. भीमराव अंबेडकर सहित संविधान सभा के तमाम सदस्यों को नमन किया गया।
इन श्लोगन ने भरा जोश
‘आओ सुनाए तुम्हे, भारत की गौरव गाथा
सोने की चिड़िया प्यारी थी, जिस पर अंग्रेजो ने डेरा डाला था
जकड़ के गुलामी की जंजीरों में, भारत मां के आंगन में कदम डाला था
शुरु हुई फिर उन वीरों की कहानी, जो आजादी के लिए व्याकुल था
शोर मचाया मंगल पांडेय ने, चली रानी लक्ष्मीबाई की तलवार वो सन् 18़57 था
कितने सपूत शहीद हुए, सबकी आंखों में एक ही सपना आजाद भारत था
आज़ाद, भगत और खुदीराम हंसते हंसते चढ़ गए फांसी, ये जूनून कुछ मतवाला था
तिलक, नेहरु और गांधी के संघर्षों का ये शोर निराला था
मिली आजादी हमें, शामिल इसमें कई मां के लाडलो का बलिदान था
लूटा दिया सुहाग अपना, मां की आजादी के लिए ऐसा हौसला और कहां था
आज पहुंच गए चांद पर, मंगल का चक्कर लगा आए, ये स्वप्न उन कई आंखों का था
आओ सुनाएं तुम्हे भारत की गौरव गाथा’