नई दिल्ली। समलैंगिक विवाह के लिए कानूनी मंजूरी की मांग करने वाली याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डी.वाई. चंद्रचूड़ ने मंगलवार को कहा कि जीवन साथी चुनने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के मूल में है।
उन्होंने कहा कि ‘लिंग’ के आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित करने वाले संविधान के अनुच्छेद 15 को ‘यौन अभिविन्यास’ के आधार पर सभी प्रकार के भेदभाव को प्रतिबंधित करने के लिए समझा जाना चाहिए।
सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि शक्ति के पृथक्करण का सिद्धांत न्यायिक समीक्षा की शक्ति को नहीं छीनता है और मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए जारी किए गए किसी भी निर्देश या आदेश को शक्ति के पृथक्करण के सिद्धांत का उल्लंघन नहीं कहा जा सकता है।
उन्होंने निर्देश दिया कि केंद्र सरकार द्वारा गठित समिति समलैंगिक जोड़ों के अधिकारों और सामाजिक अधिकारों को तय करने के लिए कदम उठाएगी।
शीर्ष अदालत ने केंद्र से कहा कि वह समलैंगिक जोड़ों को उनकी वैवाहिक स्थिति की कानूनी मान्यता के बिना भी, संयुक्त बैंक खाते या बीमा पॉलिसियों में एक भागीदार को नामांकित करने जैसे बुनियादी सामाजिक लाभ देने का एक तरीका ढूंढे।