सहारनपुर। भारत जहां 21 जून को आयोजित होने वाले अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की तैयारियों में लगा है वहीं दुनिया में भी हमारे योग को लेकर जबरदस्त हलचल मची हुई है। भारत के सबसे बड़े योग केंद्र लाइफ योगा नई दिल्ली के संचालक अंतरराष्ट्रीय योगाचार्य डा. वरूणवीर हांगकांग में वहां के सबसे बड़े अंतरराष्ट्रीय योग केंद्र प्योर योगा में 152 नए प्रशिक्षुओं को 13, 14 और 15 मार्च का तीन दिवसीय प्रशिक्षण देकर भारत लौटे हैं। पांच दिवसीय अपनी हांगकांग यात्रा की समाप्ति पर शुक्रवार को उन्होंने बताया कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जबसे योग का ध्यान पूरे विश्व की ओर खींचा है और 21 जून को पूरा विश्व अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने लगा है तब से पूरे विश्व में भारतीय योग, ध्यान और आध्यात्म को जानने और सीखने की लालसा वहां के लोगों में बढ़ी है।
डा. वरूणवीर स्वयं कई वर्षों तक यूरोप, अमेरिका आदि बीस मुल्कों में रहकर योग को बढ़ावा दे चुके हैं। डा. वरूणवीर ने बताया कि हांगकांग स्थित प्योर योगा इंटरनेशनल के सीईओ कोलिन ग्रांट के निमंत्रण पर वह इसी माह मार्च में पांच दिन की यात्रा पर वहां गए थे। जहां उन्होंने प्योग योगा इंटरनेशनल केंद्र पर 13, 14 और 15 मार्च को विभिन्न सत्रों में तीन-तीन घंटे का वहां के 152 योग प्रशिक्षुओं को आध्यात्मिकता को कैसे विस्तारित किया जाए जिससे उनकी सिखाने की कला और विकसित हो जाए। ऐसे विषयों पर उन्होंने उनको प्रशिक्षण देने का काम किया। ध्यान और प्राणायाम एवं मंत्रों के द्वारा आध्यात्मिकता को विकसित करने की क्रियाएं बताई और समझाई। डा. वरूणवीर ने प्रशिक्षुओं को ओम ध्वनि के सही उच्चारण का अभ्यास कराया। डा. वरूणवीर ने बताया कि तीन घंटे के एक सत्र में 45 मिनट हाथों के संतुलन, 45
मिनट की योग क्रियाएं और 45 मिनट प्राणायाम एवं 45 मिनट स्वयं को पहचानने के लिए ध्यान लगाने का प्रशिक्षण उनकी ओर से प्रशिक्षुओं को दिया गया। इन प्रशिक्षुओं में 80
महिलाएं और 72 पुरूष शामिल रहे।
उन्होंने कहा कि हांगकांग का यह प्योर योगा इंटरनेशनल योग केंद्र 2002 से संचालित हो रहा है। डा. वरूणवीर ने बताया कि कार्यशाला में उन्होंने पंचकोस के जरिए ध्यान की गहराई में उतरकर अपने सच्चे अस्तित्व को पहचानने की प्रक्रिया बताई। इस कार्यशाला का मुख्य लक्ष्य यही रहा कि जिसमें पंचकोस, शरीर, प्राण, मन,
बुद्धि और आत्मा को जानना और अच्छे तरीके से पहचानना शामिल है। शरीर में सुदृढ़ता लाना प्राण और मन में स्थिरता में वृद्धि लाना और इसके जरिए अपनी आत्मा का साक्षात करना और उससे जीवन में दुख और आनंद की लगातार वृद्धि करना है। इस कला को खुद में विकसित करने से योग प्रशिक्षुओं की गुणवत्ता में वृद्धि होती है।