मुजफ़्फ़रनगर। लखनऊ की कैसरबाग कोर्ट रूम के अंदर कुछ पुलिसवाले मुख्तार अंसारी से खास शूटर संजीव जीवा को लेकर पहुंचे। हत्या के मामले में उसकी कोर्ट में सुनवाई होनी थी। संजीव एक कुर्सी पर बैठा था। आस पास कई पुलिसवाले और वकील घूम रहे थे। तभी वकीलों की तरह काला कोट पहने एक शख्स आता है और धड़ाधड़ गोलियां चलाना शुरू कर देता है। संजीव को 4 गोलियां लगीं, जिससे उसकी मौत हो गई। पश्चिमी यूपी का मोस्ट-वॉन्टेड क्रिमिनल रहा संजीव जीवा कभी घर चलाने के लिए प्राइवेट क्लीनिक में कंपाउंडर का काम करता था। लेकिन पैसों के लालच और अपने ईगो के कारण उसने उसी डॉक्टर को किडनैप कर लिया, जिसने उसे नौकरी पर रखा था। इस घटना के बाद उसके हौसले बुलंद हो गए। धीरे-धीरे उसके अपराध इतने बढ़े कि वह पुलिस के लिए सिरदर्द बन गया।
बचपन में डॉक्टर बनना चाहता था संजीव
90 के दशक की बात है। मुजफ्फरनगर में एक डॉक्टर का दवाखाना था। नाम था शंकर दवाखाना। उनका दावा था कि वो शराब छुड़वा देंगे। इसी दवाखाने में एक लड़का काम करता था। नाम था संजीव माहेश्वरी। दवाएं पीसना और दवाओं की पुड़िया बनाकर मरीजों को देना उसका मेन काम था। काम कंपाउंडर का, लेकिन आस-पास के लोग संजीव को डॉक्टर साहब बुलाते थे।
संजीव बचपन से ही पढ़ने में बहुत अच्छा था। उसका सपना था कि वो बड़ा होकर डॉक्टर बने। लेकिन उसके घर के हालात ठीक नहीं थे। इसीलिए कम उम्र में ही उसने दवाखाने में कंपाउंडर की नौकरी करनी शुरू कर दी। वहां से जो पैसे मिलते, उससे संजीव के परिवार का गुजर-बसर हो जाता था। अब तक सब ठीक चल रहा था।
डॉक्टर ने संजीव को पैसे की वसूली करने भेजा, वो पैसे ले आया
एक दिन हर रोज की तरह संजीव 10 बजे दवाखाने पहुंचा। मरीजों का आना शुरू हो चुका था। संजीव भी दवा बनाने का काम करने जा रहा था। लेकिन उसके डॉक्टर मालिक ने उस दिन अपने कंपाउंडर को दवा पीसने की जगह एक दूसरा काम दिया। दवाखाने का मालिक कई दिन से बहुत परेशान था। एक आदमी ने उससे पैसे उधार लिए थे, जो काफी दिन से वापस नहीं कर रहा था।
मालिक ने संजीव से कहा कि अगर ये पैसा ले आए, तो जो चाहोगे वो मिलेगा। संजीव गया और वापस लौटा, तो खाली हाथ नहीं था। वह आया और पूरे पैसे लाकर डॉक्टर के हाथ में रख दिए। डॉक्टर संजीव के इस काम से बहुत खुश हुआ। उसे इनाम भी दिया। लेकिन इसी वाकये के बाद पश्चिमी यूपी में एक नए अपराधी का जन्म हो गया था।
संजीव ने अपने डॉक्टर मालिक को ही अगवा कर लिया
अब संजीव सिर्फ दवाएं नहीं बनाता, बल्कि डॉक्टर के आदेश पर उसने पैसे वसूली का भी काम शुरू कर दिया था। शेर के मुंह में खून लग चुका था। इसलिए संजीव को अब छोटी-छोटी वसूली नहीं, बल्कि कुछ बड़ा करना था। इसकी शुरुआत उसने उसी इंसान से की, जिसने उसको जुर्म के रास्ते पर पहला कदम रखवाया था।
पश्चिमी यूपी का कुख्यात अपराधी संजीव माहेश्वरी उर्फ जीवा शामली जनपद के बाबरी थाना क्षेत्र के गांव आदमपुर का मूल निवासी था, उसने अपने मालिक यानि चिकित्सक के भाई जिला मुजफ्फरनगर के कपड़ा व्यापारी राधेश्याम तायल को बनत के निकट गौरहपुर मोड पर उस समय अगवा कर लिया था. जब वह अपने एक अन्य साथी कपड़ा व्यापारी भाजपा नेता के साथ शामली के व्यापारी से उधारी वसूल कर कार से वापस लौट रहे थे,जिसकी फिरौती हरिद्वार जनपद में होने की जानकारी मिली थी।
संजीव ने अपने ही डॉक्टर मालिक को अगवा कर लिया। बड़ी फिरौती की मांग की और पैसे मिलने के बाद ही उसको छोड़ा। लेकिन उसके बाद एक ऐसी वारदात हुई, जिसने हंगामा मचा दिया। कोलकाता के एक बड़े व्यापारी के बेटे प्रतीक दीवान का अपहरण हो गया था। व्यापारी से बेटे को छोड़ने के एवज में दो करोड़ रुपए की डिमांड रखी गई। अपहरण करने वाला संजीव ही था। 90 के दशक में दो करोड़ की फिरौती इतनी बड़ी थी कि इस खबर ने मुजफ्फरनगर से लेकर राजधानी तक खलबली मचा दी थी।
एक हाई प्रोफाइल अपराधी ने संजीव को अपना शागिर्द बना लिया
मुजफ्फरनगर…एक ऐसी जगह जो हमेशा से ही असलहों की खेती के लिए मशहूर रहा है। वहां के एक हाई प्रोफाइल अपराधी रवि प्रकाश तक संजीव का किस्सा पहुंचा तो उसने संजीव को अपना शागिर्द बना लिया। यहीं से संजीव का ग्राफ तेजी से बढ़ने लगा।
रवि प्रकाश के संपर्क में आने के बाद वो जुर्म की दुनिया के नए-नए हथकंडे सीखता गया। अपराध की दुनिया में मशहूर होते जा रहे संजीव ने हरिद्वार के नाजिम गैंग का साथ पकड़ा। उसके बाद वो सतेंद्र बरवाला नाम के एक गैंगस्टर के लिए काम करने लगा। दूसरों के लिए काम करने वाला संजीव अब बड़ी छलांग लगाने के मूड में था, इसलिए संजीव ने अपना गैंग बनाया। इसमें उसके साथ रवि प्रकाश, जितेंद्र उर्फ भूरी और रमेश ठाकुर जैसे खूंखार अपराधी जुड़ गए।
मायावती की जान बचाने वाले नेता की हत्या कर दी
90 के दशक में पूर्वी उत्तर प्रदेश से लेकर पश्चिमी यूपी तक मुख्तार अंसारी, ब्रजेश सिंह, मुन्ना बजरंगी, बदन सिंह बद्दो और भोला जाट जैसे माफियाओं का दबदबा था। उस वक्त संजीव जीवा अपने छोटे से गैंग को ऑपरेट कर लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचना चाह रहा था। इसके लिए उसने ऐसा काम किया, जिसने उत्तर प्रदेश में भूचाल ला दिया। संजीव जीवा ने उस बीजेपी नेता की हत्या कर दी, जिसने कभी पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की जान बचाई थी।
साल 1997. तारीख 10 फरवरी। बीजेपी के उभरते हुए नेता और विधायक ब्रह्मदत्त द्विवेदी फर्रुखाबाद के शहर कोतवाली में अपने घर से कुछ दूर एक तिलक समारोह में शामिल होने गए थे। लौटते वक्त जैसे ही वो अपनी गाड़ी में बैठने लगे, तभी संजीव जीवा ने अपने साथियों रमेश ठाकुर और बलविंदर सिंह के साथ मिलकर उन पर अंधाधुंध फायरिंग कर उनकी हत्या कर दी। इस हमले में ब्रह्मदत्त द्विवेदी के गनर बीके तिवारी की भी मौत हो गई। जिन ब्रह्मदत्त की हत्या संजीव जीवा ने की थी। उनके सियासी कद का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनकी अंतिम यात्रा में अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी जैसे दिग्गज नेता शामिल हुए थे।
दरअसल, जून 1995 में गेस्ट हाउस कांड के वक्त मायावती कमरा नंबर 1 में बंद थीं। मायावती ने गेस्ट हाउस के कमरे से मदद के लिए कई लोगों को फोन लगाया। लेकिन किसी ने भी मदद नहीं की, तब ब्रह्मदत्त गेस्ट हाउस पहुंचे और पुलिस के पहुंचने तक मायावती के कमरे के बाहर मोर्चा संभाले रहे। इसके बाद से मायावती उन्हें अपना भाई मानने लगीं।
ब्रह्मदत्त द्विवेदी की हत्या के बाद संजीव जीवा हर माफिया की नजरों में छा चुका था। मुख्तार हो या ब्रजेश सिंह हर कोई संजीव जीवा को अपने गैंग में शामिल करने की चाहत रखने लगा था। लेकिन जीवा का रोल मॉडल था मुन्ना बजरंगी। वो मुन्ना बजरंगी, जिसके आतंक से पूरा पूर्वांचल कांपता था। मुख्तार अंसारी के सबसे भरोसेमंद शार्प शूटर मुन्ना बजरंगी के साथ जुड़ने से संजीव जीवा का अपराध जगत का बेताज बादशाह बनने का सपना पूरा होने के करीब पहुंच गया। संजीव जीवा मुन्ना बजरंगी के इशारे पर एक के बाद एक हत्या की वारदातों को अंजाम देने लगा। संजीव जीवा अब मुख्तार अंसारी के खास शूटर्स में शुमार हो चुका था।
बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय के सीने में दागीं थी 400 गोलियां
साल 2005. उत्तर प्रदेश अब एक ऐसी घटना का गवाह बनने वाला था, जिसने पूरे देश को हिला कर रख दिया था। जिस राज्य में 10 साल पहले एक भाजपा विधायक को गोलियों से छलनी कर दिया गया था। वहीं एक बार फिर गोलियों की बारिश होने वाले थी। 10 नहीं 100 नहीं, बल्कि 400 राउंड गोलियां चलने वाली थीं और इस वारदात को अंजाम देने वाला था वही लोगों का ‘डॉक्टर’ संजीव जीवा।
25 नवंबर, 2005. मऊ में एक जगह है मोहम्मदाबाद। इस इलाके के बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय क्रिकेट टूर्नामेंट का उद्घाटन कर वापस लौट रहे थे। तभी एक गाड़ी उनकी गाड़ी के सामने आकर रुकती है। गाड़ी से 8 लोग नीचे उतरते हैं और AK-47 से गोलियों की बौछार कर देते हैं। कृष्णानंद राय के शरीर का एक भी ऐसा अंग नही बचा, जहां गोलियां न लगी हों। कहा जाता है कि कृष्णानंद राय को मारने के लिए 400 राउंड गोलियां चलाई गई थीं। इस शूटआउट में विधायक कृष्णानंद समेत 7 लोगो की मौत हुई थी। इस नृशंस हत्याकांड में मुख्तार अंसारी, मुन्ना बजरंगी और संजीव जीवा का नाम सामने आया। हालांकि बाद में कोर्ट से सभी आरोपी बरी हो गए थे।
जेल जाने के बाद संजीव ने ऐशोआराम की जिंदगी जी
बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय की हत्या के बाद संजीव जीवा को गिरफ्तार कर लिया गया। यूपी पुलिस और आम लोगों को लगा कि अब यूपी में गोलियों की तड़तड़ाहट खत्म हो जाएगी। लेकिन संजीव जीवा ने जेल को अपनी ऐशगाह बना लिया था। बाराबंकी जेल में जीवा का बाकायदा दरबार लगता था। जेल से ही संजीव लोगों की सुपारी लेता और अपने शूटर से उनकी हत्या करवाता था।
साल 2013 में संजीव जीवा बाराबंकी की जेल में बंद था। हालांकि कुछ न कुछ वजहों से संजीव बैरक में कम जेल अस्पताल में ज्यादा रहा। उस वक्त एक अखबार के स्टिंग ऑपरेशन से पता चला कि जिस वार्ड में बिना किसी बीमारी के संजीव जीवा एडमिट था वहां ऐशोआराम की हर वो चीज मौजूद थी, जो लोग अपने आलीशान घरों में रखते हैं। यही नहीं उसके दरबार में रोज दर्जनों लोग उससे मिलने आते थे। बताया जाता था कि वो व्यापारियों से रंगदारी मांगने के लिए उन्हें जेल बुलाया करता था।
टार्गेट कोई और था लेकिन हत्या किसी और की हो गई। साल 2017 में हरिद्वार के कंबल व्यवसायी अभिषेक दीक्षित की घर से दुकान जाते वक्त तीन बदमाशों ने गोली मार कर हत्या कर दी। इस हत्याकांड के तार भी संजीव जीवा से जाकर जुड़े। इस सनसनीखेज हत्याकांड ने यूपी और उत्तराखंड में हड़कंप मचा दिया। व्यापारी की हत्या करने वाले शूटर की गिरफ्तारी हुई तो पता चला कि इस हत्याकांड को संजीव जीवा के कहने पर अंजाम दिया गया था। यही नहीं जिस अभिषेक दीक्षित की हत्या की गई थी वो भी गलती से हो गई थी।टार्गेट कोई और था लेकिन हत्या किसी और की हो गई।
दरअसल, 6 मार्च 2017 को रोज की तरह शाम को निर्मला छावनी हरिद्वार के रहने वाले कंबल व्यापारी अभिषेक दीक्षित घर से दुकान जा रहे थे। तभी शूटर मुजाहिद उर्फ खान, शूटर शाहरुख उर्फ पठान और विवेक ठाकुर उर्फ विक्की ने अभिषेक के ऊपर गोलियों की बारिश कर दी। जिसमें अभिषेक दीक्षित की मौके पर ही मौत हो गयी। उत्तराखंड पुलिस ने एक हफ्ते के अंदर सभी शूटर को गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तारी के बाद जो खुलासा हुआ वो चौंकाने वाला था। शूटर्स ने बताया कि उन्हें हत्या करने के लिए मैनपुरी जेल में बंद संजीव जीवा ने कहा था।
हरिद्वार पुलिस ने जीवा से पूछताछ की तो उसने बताया कि हत्या तो कनखल के प्रॉपर्टी डीलर सुभाष सैनी की करनी थी लेकिन उसके गुर्गों ने अभिषेक की हत्या कर दी। जीवा ने कहा कि अभिषेक की मौत से वो दुखी है।
AK-47 बेचने में भी आया था गैंगस्टर जीवा का नाम
साल 2022 में भौराकलां के गांव हड़ौली माजरा निवासी अनिल उर्फ पिंटू को पकड़ा गया था। उसके पास से AK-47 बरामद हुई थी। ये हथियार बेचने के पीछे भी जीवा का नाम सामने आया था।
मुन्ना बजरंगी की हत्या के बाद डर गया था संजीव
पुलिस से आंख मिचौली के बाद आखिरकार संजीव जीवा पुलिस के हत्थे चढ़ गया। कोर्ट ने बीजेपी विधायक ब्रह्मदत्त की हत्या के लिए उसे आजीवन कैद की सजा सुनाई है। फिलहाल संजीव जीवा लखनऊ सेंट्रल जेल में आजीवन कारावास की सजा काट रहा था।
मुन्ना बजरंगी की बागपत में हत्या होने के बाद दूसरों को अपनी दहशत से डराने वाला संजीव जीवा खुद डरने लगा था। कोर्ट में उसकी पत्नी ने जीवा की सुरक्षा के लिए गुहार भी लगाई थी। आखिरकार संजीव की पत्नी पायल माहेश्वरी का ये डर सच साबित हुआ। 7 जून को कोर्ट में सुनवाई के लिए आए संजीव की दिनदहाड़े हत्या कर दी गई।