Tuesday, April 1, 2025

दिल्ली में केजरीवाल को पॉवर देने पर रोक वाले अध्यादेश को चुनौती, सुप्रीमकोर्ट ने जारी किया केंद्र को नोटिस, 17 को होगी सुनवाई

नयी दिल्ली,- उच्चतम न्यायालय ने भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अधिकारियों के स्थानांतरण एवं नियंत्रण के मामले में दिल्ली के उपराज्यपाल को अधिकार देने वाले केंद्र सरकार के 11 मई के एक अध्यादेश की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर सोमवार को केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया।

मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा की पीठ ने केंद्र सरकार के ‘राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (संशोधन) अध्यादेश 2023’ को चुनौती देने वाली दिल्ली सरकार की याचिका पर सुनवाई के बाद नोटिस जारी किया।

पीठ अध्यादेश के अलावा दिल्ली सरकार द्वारा नियुक्त 437 सलाहकारों को बर्खास्त करने वाले उपराज्यपाल के फैसले पर अंतरिम रोक लगाने की गुहार पर 17 जुलाई को सुनवाई करेगी।

पीठ के समक्ष दिल्ली सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने सलाहकारों को बर्खास्त करने और उनके वेतन रोकने का विरोध करते हुए उपराज्यपाल के फैसले पर अंतरिम रोक लगाने की गुहार लगाई।

श्री सिंघवी ने अदालत से गुहार लगाते हुए कहा,“सलाहकारों को कैसे हटाया जा सकता है? कृपया सलाहकारों की नियुक्ति से संबंधित इस पैराग्राफ पर रोक लगाएं।”

उपराज्यपाल की ओर से अदालत में पेश वरिष्ठ अधिवक्ता संजय जैन ने कहा कि ये 400 कर्मचारी सत्तारूढ़ पार्टी के कार्यकर्ता थे, जो सलाहकार के रूप में बैठे थे।

पीठ ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कहा कि वह इस मामले में 17 जुलाई को सुनवाई के बाद कोई अंतरिम फैसला सुनाएगा।

अरविंद केजरीवाल सरकार ने एक याचिका दायर कर आईएएस अधिकारियों के स्थानांतरण और नियंत्रण का अधिकार उपराज्यपाल को देने वाले केंद्र के अध्यादेश के अलावा दिल्ली सरकार द्वारा नियुक्त 437 कंसलटेंट को बर्खास्त करने के उपराज्यपाल के फैसले चुनौती दी है।

याचिका में दावा किया गया है कि केंद्र के इस अध्यादेश जरिए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में आईएएस अधिकारियों के स्थानांतरण और नियंत्रण का अधिकार एक तरह से सिर्फ उप-राज्यपाल को दे दिया गया है।

मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता ए एम सिंघवी की दिल्ली सरकार की याचिका पर शीघ्र सुनवाई करने की गुहार छह जुलाई को स्वीकार करते हुए इस मामले को 10 जुलाई के लिए सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया था।

जून के आखिरी सप्ताह में दायर इस याचिका में आरोप लगाए गए हैं कि केंद्र के अध्यादेश ने दिल्ली सरकार का भारतीय प्रशासनिक अधिकारियों पर नियंत्रण का अधिकार समाप्त कर इसे संबंधित तमाम अधिकार उपराज्यपाल को दे दिया है।

याचिका में यह भी कहा गया है कि केंद्र सरकार का यह अध्यादेश शीर्ष अदालत की संविधान पीठ के 11 मई 2023 के उस फैसले के एक सप्ताह बाद आया, जिसमें स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि दिल्ली सरकार के पास राष्ट्रीय राजधानी में भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों सहित सभी सेवाओं पर नियंत्रण का अधिकार है।

याचिका के अनुसार, संविधान पीठ ने साफ तौर पर कहा था कि राज्यों की चुनी हुई सरकारों का शासन केंद्र सरकार अपने हाथ में नहीं ले सकती।

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