नई दिल्ली । पूंजी बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) की चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच और उनके पति धवल बुच ने अमेरिकी शॉर्ट-सेलर हिंडनबर्ग रिसर्च की हालिया रिपोर्ट में लगाए गए आरोपों का खंडन विस्तार से वक्तव्य जारी कर किया है।
इसमें कहा गया है कि हिंडनबर्ग रिपोर्ट में जिस फंड का उल्लेख किया गया है, उसमें दोनों ने सिंगापुर में रहते हुए एक आम निवेशक के तौर पर 2015 में निवेश किया था। यह निवेश माधबी के सेबी में पूर्णकालिक सदस्य के रूप में शामिल होने से लगभग 2 वर्ष पहले किया गया था।
वक्तव्य में आगे कहा गया है कि इस फंड में निवेश करने का फैसला इसलिए किया गया क्योंकि मुख्य निवेश अधिकारी अनिल आहूजा, धवल के बचपन के दोस्त हैं। उनके पास सिटीबैंक, जे.पी. मॉर्गन और 3आई ग्रुप पीएलसी के पूर्व कर्मचारी होने के नाते, कई दशकों तक उनके पास मजबूत निवेश करियर रहा है। 2018 में आहूजा ने फंड के सीआईओ के रूप में अपना पद छोड़ दिया, तो हमने उस फंड में निवेश को निकाल लिया।
वहीं अनिल आहूजा ने पुष्टि की है कि किसी भी समय फंड ने किसी भी अडानी समूह की कंपनी के किसी भी बॉन्ड, इक्विटी या डेरिवेटिव में निवेश नहीं किया।
उल्लेखनीय है कि हिंडनबर्ग रिसर्च ने 10 अगस्त को अपनी नवीनतम रिपोर्ट में आरोप लगाया है कि सेबी की अध्यक्ष माधबी पुरी बुच की अडानी के ‘धन हेराफेरी घोटाले’ में इस्तेमाल की गई अस्पष्ट ऑफशोर संस्थाओं में हिस्सेदारी थी।
कांग्रेस ने रविवार को सेबी के खिलाफ आरोपों की संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) से जांच कराने की मांग की।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि जनवरी 2023 की हिंडनबर्ग रिपोर्ट के खुलासे के बाद सेबी ने पहले प्रधानमंत्री मोदी के करीबी सहयोगी अडानी को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष क्लीन चिट दे दी थी। हालांकि, सेबी प्रमुख से जुड़े लेन-देन के संबंध में नए आरोप सामने आए हैं। मध्यम वर्ग के छोटे और मध्यम निवेशक अपनी मेहनत की कमाई शेयर बाजार में लगाते हैं। उन्हें सुरक्षा की जरूरत है, क्योंकि वे सेबी पर भरोसा करते हैं। इस बड़े घोटाले की जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) से जांच जरूरी है।