आज जबकि समूचा विश्व यौन व एड्स जैसी लाइलाज बीमारियों से दिन-ब-दिन ग्रसित होता जा रहा है, ऐसी स्थिति में इन पर अंकुश लगाने का मात्र एक ही उपाय है कि अवैध यौन संबंधों से बचा जाय।
अध्ययनरत युवतियों के लिए यह गंभीर खतरा बनता जा रहा है क्योंकि इनमें गर्भधारण के बारे में जागरूकता का अभाव रहता है। वे इस बात से अनभिज्ञ होती हैं कि संभोग करने से गर्भधारण की स्थिति सामने आ सकती है।
वे सैक्स को केवल मौज मस्ती का जरिया समझ इसके प्रति बेखबर रहती है लेकिन गर्भ ठहरने के पश्चात जब उन्हें मजबूरी में गर्भपात करवाना पड़ता है, तब वे जिस मानसिक यंत्रणा के दौर से गुजरती हैं, तब यह स्थिति और भी दु:खद बन जाती है।
यहां तक कि उनका समूचा जीवन ही दांव पर लग जाता है लेकिन फिर भी लोग अपनी काम पिपासा की पूर्ति के लिए इन तमाम खतरों से बेखबर रहकर कोई भी कदम उठाने से नहीं चूकते। अनैतिक और असुरक्षित यौन संबंधों के कारण यौन रोगियों की संख्या एड्स से ग्रसित मरीजों की अपेक्षा कहीं ज्यादा है।
भारत जैसे गरीब मुल्क में भले ही शिक्षा से बच्चों का वास्ता न हो लेकिन सैक्स के प्रति उनका रूझान तेजी से बढ़ा है। इसका कारण अश्लील साहित्य व उत्तेजक काम वासना युक्त फिल्में हैं।
सवाल यह है कि देश की भावी पीढ़ी को सैक्स के गर्त में गिरने से बचाने के लिए क्या ठोस कदम उठाये जायें? बेहतर होगा कि हमारे शैक्षिक पाठ्यक्र मों में सैक्स की शिक्षा की अनिवार्यता प्रदान कर एड्स व यौन रोगों पर अंकुश लगाया जाये।
अपने देश में यौन शिक्षा को बहुत ही संकुचित तरीके से लिया जाता है। अनपढ़ लोगों की बात तो छोड़ ही दें, पढ़ा लिखा वर्ग व परिवार भी इस संबंध में बच्चों से बात करते हुए कतराते हैं लेकिन अब इस विषय पर सार्थक चर्चा बहुत जरूरी हो गयी है ताकि बच्चे को यौन शिक्षा का अर्थ पता चल सके व उन्हें नैतिक मूल्यों से जोड़ा जा सके।
सैक्स जैसी चीज को हाशिए पर रख कर यौन रोगों व अपराधों को रोका नहीं जा सकता है जबकि यौन शिक्षा का मूलभूत उद्देश्य उनकी जीवन शैली में परिवर्तन लाना है ताकि युवा पीढ़ी यौन कुंठा का शिकार न बने। यौन शिक्षा के अभाव में बच्चों में हस्तमैथुन, संभोग व गुदामैथुन जैसी गंदी आदतें बढ़ रही है, जिससे उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है।
यौन शिक्षा से बच्चों में अपने शरीर की बनावट व परिवर्तन के साथ-साथ आये बदलावों को भी जानने की उत्सुकता बढ़ती है तथा वे इसके दुष्प्रभावों से स्वयं को बचाने की कोशिश करेंगे। यौन शिक्षा को यदि नैतिक शिक्षा के रूप में दिया जाय तो काफी हद तक युवक-युवतियां यौन रोगों से मुक्त हो सकते हैं। जहां तक हो सके, विद्यालय के योग्य शिक्षकों को विशेष ट्रेनिंग के जरिये पूर्ण ‘यौन शिक्षा’ दी जानी चाहिए ताकि वे बच्चों को अच्छी तरह से समझा सकें।
हो सके तो विद्यालय में काउन्सलर डॉक्टर को बुलाया जाये ताकि वे बच्चों को बेहतर तरीके से यौन रोग व उसके दुष्परिणामों के संबंध में ही उचित जानकारी दे सकें। यह कार्यक्रम न केवल शहरी स्कूलों तक सीमित रखे जायें अपितु ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों को भी इसका लाभ मिलना चाहिए।
यौन शिक्षा देने से एक लाभ यह भी होता है कि युवक-युवतियां प्रथम यौन संबंध भी आपस में देर से बनाते हैं ताकि उनका भावी जीवन स्वस्थ रहे व छोटी उम्र में ही वे खतरनाक बीमारियों से ग्रसित न होने पायें, साथ ही उनकी नकारात्मक सोच सकारात्मक दिशा की ओर मुड़ सके।
– चेतन चौहान