Saturday, May 18, 2024

मीडिया पर सोशल मीडिया के दुष्प्रभाव

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तकनीक ने सोशल मीडिया के माध्यम से पूरी दुनिया को एक मंच पर लाने का क्रांतिकारी कार्य किया है। काल, परिस्थिति और स्थान विशेष की कोई घटना सोशल मीडिया पर वायरल होकर बहुत कम समय में वैश्विक बहस का विषय बन जाती है। इसकी लोकप्रियता का ही परिणाम है कि आज देशों का मुख्य मीडिया भी सोशल मीडिया के व्यवहारों से न सिर्फ प्रभावित है बल्कि अनेक अवसरों पर सोशल मीडिया के व्यवहारों का मुख्य मीडिया की कार्यशैली में अनुसरण भी दिखने लगा है। पाकिस्तान और कनाडा में भारत विरोधी तत्वों की हत्या पर इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया की कवरेज में सोशल मीडिया के गैर जिम्मेदार बयानों का प्रभाव आज स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ रहा है।
आज सोशल मीडिया के लिए सबसे बड़ा संकट विश्वसनीयता का है। फैक्ट चेकर संस्थाओं का अभूतपूर्व विकास इसका स्पष्ट प्रमाण है। इससे पहले कभी इतने फैक्ट चेकर समूह भारत ही क्या पूरे विश्व में स्थापित नहीं हुए होंगे। वॉट्सऐप यूनिवर्सिटी जैसे कटाक्ष साक्ष्य हैं कि सोशल मीडिया पर उपलब्ध सामग्री को समाज का कोई भी वर्ग आज मान्यता नहीं दे रहा। किसी भी विषय पर किसी का भी कुछ भी बोल देना सोशल मीडिया का शगल बन गया है। विशेषकर राजनीतिक पूर्वाग्रह में आने वाले उत्तरदायित्व विहीन विचारों ने सार्वभौमिक, सामाजिक और प्राकृतिक सिद्धांतों को जैसे ताक पर रख दिया है।
बिना विशेषज्ञता और गैर जवाबदेही वाले बयान और विचार एक पक्ष या वर्ग को लुभाते हैं। इसी तुष्टिकरण के कारण शेष समाज की उपेक्षा या असहमति मायने नहीं रखती। इसी सिद्धांत को अपनाकर देश की मुख्य मीडिया भी आज कई महत्वपूर्ण और संवेदनशील समाचारों को लोकलुभावन शैली में प्रस्तुत करने को अभिशप्त दिख रही है, जिसका सीधा प्रभाव भारत की सामाजिक शिष्टता और विदेश नीति पर दिखने लगा है। खालिस्तानी आतंकी हरदीप निज्जर की हत्या पर प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की ओर से निज्जर की हत्या में “भारत सरकार के एजेंटों” की संलिप्तता का बयान अत्यंत गंभीर है।
ट्रूडो और लिबरल पार्टी सरकार की ढुलमुल व असंवेदनशील नीतियों के बावजूद भारत जैसे नीति सम्मत राष्ट्र के लिए उनके इस बयान के पीछे कहीं न कहीं भारत की सोशल और मुख्य मीडिया में चल रही खबरों का प्रभाव था। अनेकों स्थानों पर मीडिया कवरेज में निज्जर की हत्या पर जैसी वाहवाही परोसी गयी, उसकी अमिधा-व्यंजना ने ही ट्रूडो सरकार को एक अमर्यादित, संवेदनाहीन और पूर्णत: असत्य आरोप के लिए प्रेरित किया।
दरअसल निज्जर से पूर्व इंग्लैंड में अवतार सिंह खांडा की मौत को भी पहले सोशल मीडिया ने हत्या साबित करने की कोशिश की। भारत की मुख्य मीडिया के सुर भी सोशल मीडिया के प्रभाव से बदले और वारिस पंजाब दे के संरक्षक अमृतपाल के करीबी खांडा की पेट में दर्द की शिकायत के बाद अस्पताल में मौत की खबर पर परोक्ष चुटकियाँ ली गईं। जैसे लाहौर में खालिस्तानी आतंकी परमजीत सिंह की अज्ञात लोगों द्वारा की गई हत्या को भी परोक्ष रूप से महिमामंडित किया जा रहा था। यह अलग बात है कि मांगे जाने के बाद भी कनाडा सरकार अभी तक निज्जर की हत्या से संबंधित कोई साक्ष्य भारत के साथ साझा करने में असमर्थ है।
मुख्य मीडिया की लोकलुभावन रिपोर्टिंग शैली के दुष्प्रभाव कई अन्य मौकों पर भी देखने को मिले हैं जबकि निश्चित रूप से भविष्य में यह भारत की कूटनीति को असहज कर सकती है। ताजा मामला इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी का है। जी-20 सम्मेलन में मेलोनी के भारत आगमन पर उनकी और प्रधानमंत्री मोदी की भेंट को अनायास दृष्टिकोण से सोशल मीडिया ने जमकर हवा दी। दोनों राष्ट्राध्यक्षों की हंसने-बोलने पर अंधाधुंध मीम्स, ट्वीट और पोस्ट आने के बाद मुख्य मीडिया भी इन सूचनाओं को परोसने से स्वयं को रोक न सकी।
भारत में बना माहौल इटली तक पहुंच गया और मोदी की वैश्विक लोकप्रियता को निजी राजनीतिक हित में इस्तेमाल करने के उद्देश्य से स्वयं मेलोनी ने सोशल मीडिया पर ‘मेलोडी शेयर कर दिया। पश्चिमी सामाजिक व्यवहार के अनुरूप होते हुए भी भारत की सांस्कृतिक शुचिता के मापदंड पर यह एक प्रकार का फूहड़ विचार था और भारत की भावनाओं से अवगत होकर भी मेलोनी ने सोशल मीडिया की छिछली बातों से साहस प्राप्त कर पोस्ट शेयर किया।
सोशल मीडिया की तर्ज पर भारत का मुख्य मीडिया भी पाकिस्तान में आतंकियों की लगातार हो रही हत्याओं को लेकर परोक्ष रूप से हमारी इंटेलिजेंस एजेंसियों की वाहवाही के कसीदे पढ़ रहा है जबकि वहां लगातार हो रही हत्याओं का एक तार्किक पहलू यह है कि प्रचंड बदहाली और महंगाई से गुजर रहे पाकिस्तान पर आर्थिक सहायता प्राप्त करने के लिए आतंकवाद को प्रश्रय बंद करने का वैश्विक दबाव है।
संभव है कि स्वयं पाकिस्तानी सेना और आईएसआई इन हत्याओं को अंजाम दे रहे हों। परंतु भारत में इन घटनाओं के लिए स्वीकारोक्ति वाली खबरें पाकिस्तान का ही काम आसान कर रही हैं। भारत की मुख्य मीडिया को पत्रकारिता के मूलभूत सिद्धांतों की ओर लौटते हुए लोकप्रियता के आकर्षण के समक्ष अपनी लक्ष्मण रेखा तय करनी होगी अन्यथा दिन दूर नहीं जब भारतीय मीडिया की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़े होंगे और वॉट्सऐप यूनिवर्सिटी जैसी किसी कटाक्षपूर्ण उपाधि का सामना करना पड़ेगा।
-अनिल धर्मदेश

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