मेरठ। क्या सरकारी संस्थानों की उपेक्षा करके मुसलमान, विशेष रूप से वंचित मुस्लिम महिलाएं, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के किफायती अवसर से वंचित हैं? यह सवाल भारतीय मीडिया के साथ-साथ बुद्धिजीवियों के बीच भी चर्चा का विषय बना हुआ है। आज मेरठ के जैदीफार्म में मुस्लिम महिला और शिक्षा का महत्व पर कार्यक्रम में चर्चा हुई। जिसमें मुस्लिम महिलाओं की शिक्षा पर वक्ताओं ने अपने विचार रखे हैं।
प्रोफेसर हैदर अली ने कहा कि हाल ही में कर्नाटक हिजाब विवाद के बाद सरकार समर्थित प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेजों से लेकर निजी कॉलेजों तक में मुस्लिम छात्रों की संख्या में बदलाव आया है। उन्होंने बताया कि आंकड़ों के अनुसार, उडुपी जिले के सरकारी कॉलेजों में नामांकन में उल्लेखनीय गिरावट आई है। जहां नामांकन पिछले वर्ष की तुलना में लगभग आधे से कम हो गया है। यह इंगित करता है कि हिजाब विवाद ने असुरक्षा और गुणवत्ता वाली किफायती शिक्षा के अधिकार की धारणाओं को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, इसलिए इस तरह के निराधार विवाद से दूर रहने का सही समय है।
डॉ. बदरूद्दीन अली ने कहा कि सरकारी से निजी कॉलेजों में स्थानांतरण महंगा होगा और मुस्लिम परिवारों में आर्थिक सामर्थ्य का सवाल खड़ा करेगा। यह आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के मामले में स्कूल छोड़ने का कारण भी बन सकता है। इस बदलाव का अर्थ सरकारी कॉलेजों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए उपलब्ध किफायती अवसर खोना भी है। उन्होंने बताया कि हर कोई इस बात से सहमत होगा कि शिक्षा और नौकरी के लिए महिलाओं को काफी संघर्ष से गुजरना पड़ता है। मुस्लिम महिलाओं को अपने जीवन में और भी बाधाओं का सामना करना पड़ता है। धर्म की गलत व्याख्या के साथ समुदाय का पिछड़ापन और आर्थिक ठहराव संयुक्त रूप से उनकी सामाजिक गतिशीलता को बाधित कर रहा है। आधुनिक युग की शुरुआत के बाद से, मुस्लिम महिलाओं ने पुरुषों के समान अधिकारों के लिए लंबे समय तक संघर्ष किया है। कर्नाटक हिजाब विवाद और मुस्लिम महिलाओं का महंगी निजी शिक्षा क्षेत्र में प्रवासन जैसे मुद्दे सशक्तिकरण हासिल करने की दिशा में उनके वर्षों के संघर्ष को निष्प्रभावी कर देंगे।
इस दौरान कार्यक्रम में राशिद फिरदौस, डॉ. जमाल अख्तर, डॉ. रूखसार आशित, रहमत अली, कादिर भाई, सलमान इत्यादी मौजूद रहे।