पार्क में एक बरगद का पेड़ था। कोई कहता बीस साल पुराना है, तो कोई तीस चालीस… पचास… या इससे ज्यादा साल पुराना बताता। बरगद के पेड़ की उम्र को लेकर सबके अलग-अलग अनुमान और दावे थे। लेकिन अपने अनुमान और दावे को सिद्ध करने के प्रमाण या पुख्ता सबूत किसी के पास नहीं थे।
इस शहर की गिनती देश के बड़े शहरों में होती थी। यहाँ भारत सरकार के कई रक्षा सामग्री के निर्माण के कारखाने थे। जिनमें हजारों की संख्या में लोग काम करते थे। धार्मिक आस्था का केन्द्र होने के साथ-साथ पर्यटन स्थल के रूप में भी इस शहर का विशेष महत्व था। भेड़ाघाट, धुआंधार, गौरीघाट, चौरासी योगिनी जैसे अनेक धार्मिक व पर्यटन स्थल इस शहर की धरोहर थे। कारखानों में काम करने वालों के लिये सरकारी मकान भी काफी संख्या में बने हुये थे।
समय बदलने के साथ देश में हो रहे विकास ने गति पकड़ी। देश के साथ-साथ इस शहर का भी विकास होने लगा। क्षेत्रीय रेलवे का प्रधान कार्यालय बनने के साथ-साथ अनेक निजी कम्पनियों ने भी इस शहर में दस्तक देनी शुरू की। नये-नये शैक्षणिक संस्थान खुलने लगे। रोजगार के अवसर सृजन होने और नये-नये तकनीकी, मेडिकल, संचार आदि के कॉलेज खुलने के कारण बाहर से लोग इस शहर में आने लगे। जिसके कारण शहर की आबादी बढऩे लगी। बढ़ती आबादी को आवास की सुविधायें उपलब्ध कराने के लिये शहर के बाहरी इलाकों में नई-नई कॉलोनियां बसने लगी। बिल्डरों द्वारा जगह-जगह फ्लैट, अपार्टमेंट बनाये जाने लगे। शहर की बढ़ती आबादी को आवास सुविधायें उपलब्ध कराने के लिये विकास प्राधिकरण ने भी कॉलोनी बनाने का निर्णय लिया। इसके लिये शहर के इस बाहरी इलाके को चुना गया।
इस इलाके में घना बियावान जंगल था। जिसमें हजारों की संख्या में विभिन्न प्रजातियों के छोटे-बड़े पेड़ खड़े थे। किसी भी जगह कॉलोनी बनाने के लिये जमीन का अधिग्रहण करना पड़ता है। जिसमें काफी परेशानियां आती हैं। जिन लोगों की जमीन अधिग्रहण की जाती है, उन्हें मुआवजा देना पड़ता है। बहुत से लोग जो मुआवजे से संतुष्ट नहीं होते या अपनी जमीन देना नहीं चाहते, वे कोर्ट में केस कर देते हैं। और कोर्ट से फैसले होने में काफी समय लग जाता है। जिससे पूरी योजना अधर में लटक जाती है।
लेकिन जिस जगह को विकास प्राधिकरण ने कॉलोनी बनाने के लिये चुना था, वो जगह वन विभाग की थी। वन विभाग और विकास प्राधिकरण, दोनों सरकारी विभाग थे। इसलिये कॉलोनी बनाने के लिये जमीन अधिग्रहित करने में विशेष परेशानी नहीं आयी।
कॉलोनी बनाने के लिये विकास प्राधिकरण को जगह तो मिल गई, लेकिन कॉलोनी बनाने के लिये जो जगह चुनी गयी थी, वहां हजारों की संख्या में हरे-भरे पेड़ खड़े थे। पेड़ काटने पर और हरित जगह को उजाड़कर आवासीय स्थल बनाने पर प्रतिबंध था। बिना पर्यावरण मंत्रालय एवं ग्रीन ट्रिब्युनल की अनुमति के पेड़ों को नहीं काटा जा सकता था। पेड़ काटने से पहले पर्यावरण मंत्रालय एवं ग्रीन ट्रिब्युनल की अनुमति लेना जरूरी था। अनुमति लेने व देने वाले दोनों सरकारी विभाग थे। इसलिये अनुमति लेने के लिये बहुत ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी। कुछ औपचारिकतायें पूरी करने के बाद कुछ शर्तों के साथ विकास प्राधिकरण को वनभूमि पर खड़े पेड़ों को काटने की अनुमति मिल गई।
अनुमति मिलने के बाद, पेड़ो को काटने का सिलसिला शुरू हो गया। छोटे बड़े पेड़ काटे जाने लगे। घास-झाडिय़ां साफ की जाने लगी। इस जंगल में बरगद का एक विशाल और घना पेड़ भी था। लंच टाइम में मजदूर इस पेड़ के नीचे बैठकर खाना खाते और आराम करते। पेड़ के नीचे मजदूरों के बच्चे खेलते या सोते रहते। इसी पेड़ के नीचे बैठकर विकास प्राधिकरण के अफसर, इंजीनियर और कर्मचारी काम का निरीक्षण करते रहते। बरगद का पेड़-काम करने और कराने वालों को धूप, गर्मी, सर्दी और बरसात से बचा रहा था। इसलिये जंगल के सारे पेड़ कटने के बावजूद वह कटने से बच गया था।
जंगल साफ होने के बाद उस जमीन पर कॉलोनी बनाने का सिलसिला शुरू हुआ। हर आय वर्ग के लिये सैकड़ों की संख्या में मकान बनाये जाने लगे। समय गुजरने के साथ विकास प्राधिकरण की कॉलोनी बनकर तैयार हो गई। कॉलोनी बनने के बाद, वहां रहने आने वाले लोगों के लिये पार्क बनाया गया। बरगद का पेड़ जो जंगल साफ करते समय कटने से बच गया था, उसे पार्क का हिस्सा बना दिया गया।
कॉलोनी बन तो गई, लेकिन पुराने बसे शहर से दूर थी। स्टेशन, रोडवेज, स्टेशन, अस्पताल, बाजार, स्कूल आदि सभी यहां से दूर थे और सार्वजनिक यातायात के साधन रिश्ता, टेम्पो आदि सर्वसुलभ नहीं थे। इसलिये शुरु में कुछ लोगों ने ही, जिनके पास अपने वाहन की सुविधा थी। वहां मकान खरीदने में रुचि दिखाई थी। विकास प्राधिकरण की कॉलोनी बनने के बाद कई बिल्डरों ने भी आसपास कई कॉलोनियां बना दी। इधर से नेशनल हाइवे गुजरने के बाद कई शैक्षणिक संस्थान, अस्पताल, संचार कंपनियों के दफ्तर खुल गये। सभी वस्तुओं की दुकानें भी खुलने लगी। निजी कॉलोनियों में लोग रहने आने लगे, तो विकास प्राधिकरण की कॉलोनी के मकान भी बिकने लगे। धीरे-धीरे समय गुजरने के साथ, जो इलाका पहले चौबीसों घंटे सुनसान पड़ा रहता था। जहां घने जंगल थे और दिन में आने से भी लोग डरते थे। चौबीसों घंटे गुलजार रहने लगा। यातायात के साधन टेम्पो, ऑटो, ई-रिक्शा व सिटी बस हर समय उपलब्ध रहने लगी।
पहले पार्क उजाड़ पड़ा रहता था। लेकिन कॉलोनी में बसाहट होने पर लोग पार्क में टहलने आने लगे। शुरु में दो-तीन लोग ही टहलने आते थे। धीरे-धीरे उनकी संख्या बढऩे लगी। पहले विकास प्राधिकरण की कॉलोनी के लोग ही पार्क में टहलने आते थे। फिर अन्य कॉलोनियों के लोग भी सुबह-शाम पार्क में टहलने के लिये आने लगे।
पार्क में घूमने आने वाले पार्क के कई चक्कर लगाते। जब चक्कर लगाते-लगाते थक जाते, तब बरगद के पेड़ के नीचे चारों तरफ बने चबूतरे पर आकर बैठ जाते। वहां बैठकर वे परिवार, राजनीति, स्वास्थ्य, महंगाई, बढ़ते पेट्रोल-डीजल के दाम आदि विषयों पर चर्चा करते। दिन में बच्चे भी पार्क में खेलने आने लगे थे। वे पार्क में क्रिकेट, फुटबाल आदि खेल खेलते। खेलते-खेलते थक जाते तब बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर आराम करते। रात में कुछ घंटों को छोड़कर पार्क हर समय गुलजार रहने लगा।
बरगद का पेड़ केवल इंसानों के ही काम नहीं आ रहा था। सैकड़ों पक्षियों ने भी उस पर अपना बसेरा बना रखा था। रात दिन कौंवे की कांव कांव, कोयल की कू कू, चिडिय़ों की चूं चूं, सभी पक्षियों का मिला जुला कलरव हर समय पार्क में गूंजता रहता।
एक दिन रामलाल सुबह घूमने आये, तो केले लेकर आये थे। वह सबको केले बांटने लगे, तब कुमार ने पूछा था, ”आज केले किस खुशी में बांटे जा रहे हैं?’
”आज मेरा जन्मदिन है।‘
रामलाल के जन्मदिन का पता चलने पर सब उन्हें जन्मदिन की बधाई देने लगे। और उस दिन के बाद पार्क में जन्मदिन मनाने की परम्परा शुरू हो गई। जिसका भी जन्मदिन होता वह अपने साथ फल मिठाई लेकर आता। फिर सब लोग बरगद के पेड़ के नीचे चबूतरे पर बैठ जाते, जिसका जन्मदिन होता उसके सम्मान में सब लोग दो-दो शब्द बोलकर, जन्मदिन की बधाई देते। अच्छे स्वास्थ्य और दीर्घ जीवन की कामना करते। फल मिठाई साथ बैठकर खाते।
बरगद के पेड़ के नीचे जन्मदिन मनाने की परिपाटी शुरू हुई तो समय गुजरने के साथ चलती रही। एक दिन बरगद के नीचे बैठकर सब हरीश का जन्मदिन मना रहे थे। बातों ही बातों में कुमार बोला, ”हम बरगद के नीचे बैठकर सबका जन्मदिन मनाते हैं, लेकिन बरगद के पेड़ का जन्मदिन नहीं मनाते।‘ कुमार की बात सुनकर नकुल आश्चर्य से बोला, ”औरत, आदमियों का जन्मदिन मनाते सुना है, लेकिन पेड़ का जन्मदिन मनाते किसी को नहीं सुना?’
”तुम ठीक कह रहे हो। पेड़ का जन्मदिन कोई नहीं मनाता।‘
”जब पेड़ का जन्मदिन कोई नहीं मनाता, तो हम क्यों मनाये?’ महेश बोला।
”पेड़ मानव के दुश्मन नहीं, दोस्त है। पेड़ वायुमण्डल को प्रदूषित करने वाली गैस ग्रहण करके, हमें जीवनदायिनी प्राणवायु प्रदान करते हैं। हमें मीठे फल, औषधियां और दैनिक उपयोग की वस्तुयें, ईंधन आदि प्रदान करते हैं, जो मानव के इतना काम आते हैं। हम उन्हीं का जन्मदिन नहीं मनाते।‘
”लेकिन बरगद का पेड़ हमें खाने-पीने के लिये कुछ नहीं देता।‘सुधीर बोला था।
”देता क्यों नहीं? प्रदूषित वायु ग्रहण करके शुद्ध वायु देता है। इसके पत्ते दोने-पत्तल बनाने के काम आते हैं। इसकी छाल, दूध, जटाओं और कोंपलों का आयुर्वेद में विभिन्न रोगों के इलाज के लिये प्रयोग किया जाता है। हिन्दू धर्म में बरगद के पेड़ को कामना पूर्तिदायक माना गया है।‘कुमार बरगद के पेड़ के लाभ बताते हुये बोला, ”हम रोज इस पेड़ के नीचे बैठकर ही सुस्ताते हैं। बच्चे खेलते हुये थक जाते हैं, तो इस पेड़ के नीचे विश्राम करते हैं। हम सब अपना जन्मदिन इस पेड़ के नीचे मनाते हैं। जो पेड़ हमारे इतने काम आता है। हम उसी का जन्मदिन नहीं मनाते।‘
”इसमें हमारी क्या गलती है? पेड़ का जन्मदिन मनाने की परम्परा ही नहीं है।‘ श्यामलाल बोला।
”परम्परा नहीं है, लेकिन उसे शुरु तो किया जा सकता है।‘ कुमार बोला। सबके अपने-अपने मत थे, विचार थे, राय थी। कुछ लोग कुमार के प्रस्ताव से सहमत थे तो कुछ असहमत। पेड़ का जन्मदिन मनाने पर उनमें एक बहस छिड़ गई। कुमार ने पेड़ों की उपयोगिता, धार्मिक महत्व और विज्ञान के अनुसार मानव जीवन में पेड़ों की उपयोगिता के बारे में बताया। कुमार के तर्कों ने सबको कायल कर दिया। सब एक स्वर में बोले, ”बरगद के पेड़ का जन्मदिन मनाया जाना चाहिए।‘
”लेकिन कब?’
बरगद के पेड़ का जन्मदिन मनाने का निर्णय होने के बाद प्रश्न उठा कि बरगद के पेड़ का जन्मदिन किस दिन मनाया जाये? किसी को यह मालूम नहीं था कि किस वार को या तारीख को बरगद का पेड़ पृथ्वी के गर्भ से निकलकर धरती के ऊपर आया था। किसी वार या तारीख का निर्णय न होने पर कुमार बोला, ”परसों बरगद के पेड़ का जन्मदिन मनाते हैं।‘
”परसों क्यों?’ नवीन ने पूछा था। ”परसों बुद्ध पूर्णिमा है। इसी दिन गौतम बुद्ध को पेड़ के नीचे बैठकर ज्ञान प्राप्त हुआ था। क्यों न हम इसी पवित्र दिन बरगद के पेड़ का जन्मदिन मनाये।‘
कुमार का प्रस्ताव सबको पसन्द आया था। बुद्ध पूर्णिमा के दिन बरगद का जन्मदिन मनाने के लिये चन्दा इकट्ठा किया गया।
बुद्ध पूर्णिमा के दिन सभी लोग फल, फूल, माला, मिठाई लेकर बरगद का जन्मदिन मनाने पार्क में पहुंचे थे। नई परिपाटी का श्री गणेश होने वाला था। अब तक सब बरगद के नीचे बैठकर किसी न किसी का जन्मदिन मनाते आ रहे थे। आज सब मिलकर बरगद का जन्मदिन मनाने वाले थे। सब मन ही मन सोच कर आये थे, आज क्या बोलना है? प्रकृति, पर्यावरण, पेड़ों का धार्मिक महत्व, पेड़ों की उपयोगिता, पर्यटन और पेड़ हर कोई इसी तरह के विषयों पर बोलने की तैयारी करके आया था। सब खुश थे। नई परम्परा की शुरुआत करने जो जा रहे थे।
लेकिन पार्क में पहुंचते ही सब हतप्रभ रह गये। जिस बरगद के पेड़ का वे जन्मदिन मनाने वाले थे, रात को आये भयंकर तूफान के वेग को वह सहन नहीं कर सका और जड़ समेत उखड़कर जमीन पर गिर पड़ा था। (विनायक फीचर्स)