Friday, March 22, 2024

हर महिला की कहानी मेरी कहानी,महिलाओं की प्रगति में मेरी आस्था: मुर्मू

नयी दिल्ली – राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्म ने बुधवार को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर कहा कि हर महिला की कहानी मेरी कहानी, महिलाओं की प्रगति में मेरी आस्था है।

राष्ट्रपति मुर्मु ने आज भारतीय महिलाओं के अदम्य मनोबल पर आलेख में यह बात कही। उन्होंने कहा कि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की राष्ट्रपति के रूप में मेरा चुनाव, महिला सशक्तीकरण की गाथा का एक अंश है।

Royal Bulletin के साथ जुड़ने के लिए अभी Like, Follow और Subscribe करें |

 

उन्होंने कहा, “ मैं बचपन से ही समाज में महिलाओं की स्थिति को लेकर व्याकुल रही हूं। एक ओर तो एक बच्ची को हर तरफ से ढेर सारा प्यार-दुलार मिलता है और शुभ अवसरों पर उसकी पूजा भी की जाती है, दूसरी ओर उसे जल्दी ही यह आभास हो जाता है कि उसकी उम्र के लड़कों की तुलना में, उसके जीवन में कम अवसर और संभावनाएं उपलब्ध हैं। एक ओर तो महिलाओं को उनकी सहज बुद्धिमत्ता के लिए आदर मिलता है, यहां तक कि पूरे कुटुंब में सब का ध्यान रखने वाली, परिवार की धुरी के रूप में उसकी सराहना भी की जाती है, लेकिन दूसरी ओर,परिवार से संबद्ध, यहां तक कि उसके ही जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण निर्णयों में, यदि उसकी कोई भूमिका होती भी है, तो अत्यंत सीमित होती है।”

उन्होंने कहा कि 21वीं सदी में, जब हमने हर क्षेत्र में कल्पनातीत प्रगति कर ली है, वहीं आज तक कई देशों में कोई महिला राष्ट्र अथवा शासन की प्रमुख नहीं बन सकी है।

उन्होंने कहा कि अनगिनत महिलाएं अपने चुने हुए क्षेत्रों में कार्य करके राष्ट्र निर्माण में योगदान दे रही हैं। वे कॉरपोरेट इकाइयों का नेतृत्व कर रही हैं और यहां तक कि सशस्त्र बलों में भी अपनी सेवाएं दे रही हैं। अंतर केवल इतना है कि उन्हें एक साथ दो कार्यक्षेत्रों में अपनी योग्यता तथा उत्कृष्टता सिद्ध करनी पड़ती है – अपने करियर में भी और अपने घरों में भी। वे शिकायत भी नहीं करती हैं, लेकिन समाज से इतनी आशा तो जरूर करती हैं कि वह उन पर भरोसा करे।

उन्होंने कहा कि हमारे यहां, जमीनी स्तर पर निर्णय लेने वाली संस्थाओं में महिलाओं का अच्छा प्रतिनिधित्व है। लेकिन जैसे-जैसे हम ऊपर की ओर बढ़ते हैं, महिलाओं की संख्या क्रमशः घटती जाती है। यह तथ्य राजनीतिक संस्थाओं के संदर्भ में उतना ही सच है जितना ब्यूरोक्रेसी, न्यायपालिका और कॉपोर्रेट जगत के लिए।

उन्होंने कहा कि मेरा दृढ़ विश्वास है कि समाज में व्याप्त मानसिकता को बदलने की जरूरत है। एक शांतिपूर्ण और समृद्ध समाज के निर्माण के लिए, महिला-पुरुष असमानता पर आधारित जड़ीभूत पूर्वाग्रहों को समझना तथा उनसे मुक्त होना जरूरी है।

उन्होंने कहा कि मैंने देखा है कि यदि महिलाओं को अवसर मिलता है, तो वे शिक्षा के क्षेत्र में पुरुषों से प्रायः आगे निकल जाती हैं। भारतीय महिलाओं तथा हमारे समाज की इसी अदम्य भावना के बल पर मुझे विश्वास होता है कि भारत, महिला-पुरुष के बीच न्याय के मार्ग पर विश्व-समुदाय का पथ-प्रदर्शक बनेगा।

उन्होंने कहा कि यदि महिलाओं को निर्णय लेने शामिल किया जाता है तो न केवल आर्थिक प्रगति में, बल्कि जलवायु से जुड़ी कार्रवाई में तेजी आयेगी। उन्होंने कहा मुझे विश्वास है कि यदि मानवता की प्रगति में बराबरी का भागीदार बनाया जाए तो हमारी दुनिया अधिक खुशहाल होगी।

उन्होंने कहा कि महिलाओं की मुक्ति की कहानी धीमी गति से, प्राय: दुखदाई शिथिलता के साथ आगे बढ़ी है। उन्होंने कहा कि यह यात्रा केवल सीधी दिशा में ही आगे बढ़ रही है, कभी भी उल्टी दिशा में नहीं लौटी इस लिए यह बात मेरे विश्वास को मजबूत बनाती है और मैं अक्सर कहती भी हूं कि भारत की स्वाधीनता की शताब्दी तक का ‘अमृत काल’ युवा महिलाओं का समय है।

उन्होंने कहा कि विगत वर्षों के दौरान घर के बाहर के वातावरण में, पहले एक छात्रा, उसके बाद एक अध्यापिका और बाद में एक समाज-सेविका के रूप में, मैं इस तरह के विरोधाभासपूर्ण रवैये से हैरान हुए बिना नहीं रह सकी हूं। कभी-कभी मैंने महसूस किया कि व्यक्तिगत स्तर पर हममें से अधिकांश लोग, पुरुषों और महिलाओं की समानता को स्वीकार करते हैं। लेकिन, सामूहिक स्तर पर वही लोग हमारी आधी आबादी को सीमाओं में बांधना चाहते हैं। अपने अब तक के जीवन-काल के दौरान मैंने अधिकांश व्यक्तियों को समानता की प्रगतिशील अवधारणा की ओर बढ़ते देखा है। हालांकि, सामाजिक स्तर पर, पुराने रीति-रिवाज और परंपराएं, पुरानी आदतों की तरह, हमारा पीछा नहीं छोड़ रही हैं।

उन्होंने कहा कि यही, विश्व की सभी महिलाओं की व्यथा-कथा है। धरती-माता की हर दूसरी संतान यानी महिला, अपना जीवन बाधाओं के बीच शुरू करती है। इक्कीसवीं सदी में जहां हमने हर क्षेत्र में कल्पनातीत प्रगति कर ली है, वहीं आज तक कई देशों में कोई महिला राष्ट्र या शासन की प्रमुख नहीं बन सकी है। दूसरे सीमांत पर, दुर्भाग्यवश, दुनिया में ऐसे स्थान भी हैं जहां आज तक महिलाओं को मानवता का निम्नतर हिस्सा माना जाता है; और स्कूल जाना भी एक लड़की के लिए जिंदगी और मौत का सवाल बन जाता है।

उन्होंने कहा कि आज मैं आप सबसे, प्रत्येक व्यक्ति से अपने परिवार, आस-पड़ोस अथवा कार्यस्थल में एक बदलाव लाने के लिए स्वयं को समर्पित करने का आग्रह करना चाहती हूं। ऐसा कोई भी बदलाव जो किसी बच्ची के चेहरे पर मुस्कान बिखेरे, ऐसा बदलाव जो उसके लिए जीवन में आगे बढ़ने के अवसरों में वृद्धि करे।

Related Articles

STAY CONNECTED

74,381FansLike
5,290FollowersFollow
42,017SubscribersSubscribe

ताज़ा समाचार

सर्वाधिक लोकप्रिय