Monday, December 23, 2024

कहानी: पुनर्मिलन

मुझे नारायण वृद्धाश्रम में आये महीना गुजर गया था। वृद्धाश्रम के मैनेजर मेरे पूर्व परिचित निकले। शहर की कई काव्यगोष्ठी में हम साथ-साथ कविताएं पढ़ा करते थे। प्रतिमाह भुगतान के अनुबंध पर उन्होंने मेरे लिए एक कमरा मुकर्रर कर दिया। अब भी रात्रि में यदाकदा हम एक दूसरे को कविताएं सुनाया करते थे। वृद्धाश्रम के महिला खण्ड में घरों से निर्वासित कुछ महिलाएं भी थीं। हर सुबह सम्मिलित गान ‘ए मालिक तेरे बंदे हम’ के लिए सब प्रागंण में इकट्ठे होकर प्रार्थना करते थे।
हर शाम मेरी घूमने की आदत थी। कुछ दिनों से मैं देख रहा था कि कोई मेरा कमरा अच्छे से झाड़-पोंछकर साफ कर देता है। मैंने इसे वृद्धाश्रम की सामान्य क्रिया समझा।
एक दिन स्वास्थ्य ठीक न होने के कारण मैं घूमकर शीघ्र लौट आया। मैंने देखा कि एक वृद्धा, मेरा कमरा साफ कर रही है।
कौन? मैंने कहा।
स्त्री खामोश रही।
अरे भाई, कुछ बोलो भी। किसने भेजा है तुम्हें?
स्त्री ने तब भी कुछ नहीं कहा। सहसा उसके सिर से आंचल सरक गया। मैंने पहचानकर कहा- ‘लक्ष्मी तुम।’
‘हां मैं। उसने रोते-रोते जवाब दिया।’

‘कब से यहां रह रही हो?’
‘छह महीने से।’
‘तुम तो रूठकर मायके  गई थीं न अपने माता-पिता की दुलारी बनकर।’
‘फिर उन्होंने तुम्हें यहां कैसे भेज दिया?’
‘माता-पिता नहीं रहे। भाई-भौजाइयों के साथ पटी नहीं। स्कूल से रिटायर होने के बाद उन्होंने एटीएम से सारा पैसा अपने कब्जे में कर लिया। मैं पैसे-पैसे को तरस गई। प्रताडि़त होकर गांव वालों की सहायता से इस वृद्धाश्रम में रह रही हूं।’

‘तुम्हें तो बड़ा अभिमान था मायके वालों पर। जाने के बाद आज तक कभी कोई संपर्क नहीं किया?’
‘हां, गलती मेरी थी। मुझे अपने मायके वालों का पूरा भरोसा था। फिर मैंने सोचा इतने दिनों में तुमने, दूसरी शादी कर ली होगी। अभिमान के पांव तले ठोस जमीन नहीं होती लक्ष्मी। तुम्हें तुम्हारे अभिमान ने धोखा दिया मुझे मेरे अभिमान ने। जिस दत्तक पुत्र को पाल पोसकर बड़ा किया, उसने एक जातीय लड़की से शादी कर ली और मुझे घर से बेघर कर दिया।

आजकल, घरों में मियां, बीवी बच्चों के अलावा बुजुर्गों के लिए कहां कोई जगह शेष बची है।’
‘शायद तुम सच कहते हो। अचानक एक दिन प्रार्थना के वक्त मैंने तुम्हेें देखा। मैनेजर को सारी बात बताकर मैंने तुम्हारे कमरे की सफाई का जिम्मा ले लिया। काव्यगोष्ठी में मैनेजर हमारे घर आये थे। मैं उन्हें थोड़ा-थोड़ा पहचानती थी।’
‘लेकिन मैनेजर ने तो मुझे कुछ नहीं कहा?’
‘मैंने इसके लिए उन्हें मना कर दिया था।’
मंगलमय हो, लक्ष्मी नारायण का मिलन।

मैनेजर ने ताली बजाते हुए कमरे में प्रवेश किया। सात जन्मों का बंधन था, फिर एक हो गया।
यार, तुम्हें मुझे पहले बताना चाहिए था?
भाई, मैं मैंनेजर हूं। कब कौन सा काम करना है। उन सबका निर्णय मैं ही करता हूं। भाभीजी को मैंने भी नहीं पहचाना था। इन्होंने तुम्हें देखकर जब कमरे की सफाई का जिम्मा लेना चाहा, तभी पता चला। यार, फिर एक काम और कर दो। इन्हें महिला खण्ड से निकालकर मेरे कमरे में जगह दे दो।
इनका भुगतान भी मैं करूंगा।  हां, बैंक से इनका एटीएम ब्लॉक करवाना है। वह पैसा वृद्धाश्रम के दान खाते में जायेगा। अगर हम नहीं रहे तो हमारे अंतिम संस्कार के काम आएगा।
ठीक है, जैसा तुम चाहो। अच्छा शुभरात्रि।

मैनेजर चला गया। लक्ष्मी के साथ हम दोनों रात भर अपनी जिंदगी की रील दोबारा-चौबारा देखते रहे। सुबह घड़ी ने जब पांच बजाय, मैंने कहा-‘लक्ष्मी उठो, तैयार हो जाओ। आज हम कृपाज्ञनापूर्वक अपने मालिक की वंदना करेंगे, जिनकी कृपा से हमारा पुनर्मिलन हुआ है।’
आनंद बिल्थरे-विनायक फीचर्स

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