मनुष्य बहुत क्षमतावान है। उसने पुरातन काल से ही भिन्न-भिन्न प्रकार के आविष्कार किये हैं। चन्द्रमा, मंगल तथा अन्य ग्रहों का भ्रमण किया है, किन्तु ये सब विशेषताएं होते हुए भी इसके नष्ट होने में क्षण मात्र भी देर नहीं लगती। इसलिए उसके लिए संदेश यही है कि शुभ कार्यों में, स्वकल्याण की साधना में विलम्ब मत करो।
अधिक सोचो मत, संकल्प विकल्प मत करो अन्यथा सोचते-सोचते ही प्राण प्रणाम कर जायेंगे। इसलिए आज का काम कल पर न छोड़े। मानव जीवन की सफलता केवल मानव शरीर धारण करने में नहीं अपितु मानवता धारण करने में है। जिस भौतिक देह का मनुष्य गर्व करता है उस देह की वास्तविकता क्या है? सामान्यतया मनुष्य के शरीर में जितनी चर्बी, लोहा, मैगनिशियम, चूना, शक्कर, गन्धक आदि जितनी मात्रा में है उसका बाजारी मूल्य एक सौ रूपये भी नहीं।
अब आप स्वयं सोचिए कि इस मानव देह का मानवता के बिना क्या मूल्य है? कुछ भी नहीं। इसलिए सदैव मानवता के पुजारी बने, क्योंकि मानवता के बिना इस नश्वर शरीर का कोई मूल्य नहीं। ऋषियों ने मानव देह को कंचन काया भी कहा है और चलता फिरता मल का भांडा भी कहा है अर्थात कर्तव्य पारायण व्यक्ति जिसने आत्मज्ञान पा लिया है, का शरीर कंचन काया और जो कर्तव्य विमुख है उसका शरीर मल का भांडा है।