ब्रजेश अब बिल्कुल अकेला रह गया। उसकी मां सुरेखा का अकस्मात निधन हो गया था। उसे अपनी पढ़ाई छोड़कर आना पड़ा। पिता ने एक माह बाद ही अपनी ऑफिस की असिस्टेंट मारिया से विवाह कर लिया। मारिया ने चालाकी से पूरा कारोबार अपने हाथों में कर लिया। पिता ने बड़ी मुश्किल से ब्रजेश को कपड़े की एक दुकान देकर अलग कर दिया।
ब्रजेश अस्पताल की एक पुरानी नर्स मिस मेरी को जानता था, उसी के हाथों उसका जन्म हुआ था।
ब्रजेश अस्पताल की एक पुरानी नर्स मिस मेरी को जानता था, उसी के हाथों उसका जन्म हुआ था।
समय-समय पर वह ब्रजेश की देखभाल भी करती रही थी। एक दिन परेशान होकर ब्रजेश मिस मेरी के पास गया और उनसे लिपटकर रोने लगा। सारी बात सुनने के बाद मिस मेरी ने एक राज पर से पर्दा उठाते हुए कहा कि सुरेखा उसकी मां नहीं थी। वह एक मॉडल थी और खुद बच्चे को जन्म देकर अपना फीगर खराब करना नहीं चाहती थी। इसके लिये उसने एक सरोगेसी मदर को तैयार किया। उसका जन्म सरोगेसी मदर के पेट से हुआ था।
बहुत पूछने पर भी, मिस मेरी ने सरोगेसी मदर का पता-ठिकाना मालूम न होने की बात कही किंतु यह अवश्य बताया कि वह एक गरीब औरत थी और उसने रुपयों की आवश्यकता के चलते सरोगेसी मदर बनना स्वीकार किया था। उसने यह भी बताया कि किलकारी हॉस्पिटल से उसका पता चल सकता है।
ब्रजेश ने बहुत कोशिश की किंतु हास्पिटल वालों ने सरोगेसी मदर की कोई जानकारी देने से इंकार कर दिया। उसने फिर मिस मेरी की सहायता ली। मिस मेरी का एक परिचित अस्पताल के ऑफिस में काम करता था। उसके कहने पर उसने ढूंढकर सरोगेसी मदर का नाम, पता तस्वीर सहित उसे दे दिया।
ब्रजेश ने बहुत कोशिश की किंतु हास्पिटल वालों ने सरोगेसी मदर की कोई जानकारी देने से इंकार कर दिया। उसने फिर मिस मेरी की सहायता ली। मिस मेरी का एक परिचित अस्पताल के ऑफिस में काम करता था। उसके कहने पर उसने ढूंढकर सरोगेसी मदर का नाम, पता तस्वीर सहित उसे दे दिया।
सरोगेसी मदर का नाम शांता था और वह झोपड़-पट्टी की एक खोली में रहती थी। ब्रजेश वहां गया, लेकिन उसे शांता का कोई पता नहीं चला। आजू-बाजू रहने वालों ने केवल इतना बताया कि चार-पांच वर्ष पूर्व उसके पति का अधिक शराब पीने से देहांत हो गया था। उसके बाद वह अपनी दुधमुंही बच्ची को लेकर कहीं चली गई थी।
ब्रजेश ने शहर की सारी झोपड़-पट्टियों को छान मारा। एक जगह उसे पता चला कि अब वह शायद किसी साहब के बंगले पर काम करती है और वहीं, अपनी बच्ची के साथ सर्वेंट हाउस में रहती है। बहुत पूछने पर किसी ने बताया कि साहब का नाम मि. डेविड है और वे शहर के पॉश इलाके में रहते हैं।
ब्रजेश ने शहर की सारी झोपड़-पट्टियों को छान मारा। एक जगह उसे पता चला कि अब वह शायद किसी साहब के बंगले पर काम करती है और वहीं, अपनी बच्ची के साथ सर्वेंट हाउस में रहती है। बहुत पूछने पर किसी ने बताया कि साहब का नाम मि. डेविड है और वे शहर के पॉश इलाके में रहते हैं।
ब्रजेश ने खोज जारी रखी ओर एक दिन मि. डेविड का बंगला खोज निकाला। सौभाग्य से मिस मेरी डेविड साहब को पहचानती थीं। उसे लेकर वह डेविड साहब के बंगले पर पहुंचा। मिस मेरी से पूरी बात सुनने के बाद उन्होंने शांता बाई को आवाज दी। समय की मार से जर्जर शांता बाई को देखते ही ब्रजेश के आंसू बहने लगे। शांता बाई ने मिस मेरी को पहचान लिया। उसे जब पता चला कि उसने जिस पुत्र को जन्म दिया था, वह ब्रजेश ही है, वह फूट-फूटकर रोने लगी और ब्रजेश को गले लगा लिया।
ब्रजेश ने मि. डेविड से कहा कि वह अपनी जन्मदासी मां और बहन को साथ रखना चाहता है। मि. डेविड ने पहले मिस मेरी की ओर देखा। फिर अपनी स्वीकृति दे दी।
ब्रजेश ने मिस मेरी से कहा-‘मां, आज तक मैं बिल्कुल अनाथ था। तुम्हारी दया से अपनी मां और बहन से मिल पाया हूं। मैं चाहता हूं कि आप मेरी दादा मां बनकर मेरे साथ ही रहें। इससे मेरा परिवार पूरा हो जाएगा।
ब्रजेश ने मिस मेरी से कहा-‘मां, आज तक मैं बिल्कुल अनाथ था। तुम्हारी दया से अपनी मां और बहन से मिल पाया हूं। मैं चाहता हूं कि आप मेरी दादा मां बनकर मेरे साथ ही रहें। इससे मेरा परिवार पूरा हो जाएगा।
मिस मेरी ने ब्रजेश का माथा चूमकर उसे लिपटा लिया। नियति एक हाथ से छीनकर दूसरे हाथ से कितना कुछ दे देती है, इसे देखकर डेविड साहब भी दंग रह गये। उन्हें ईश्वर की दयालुता पर एक बार फिर विश्वास बढ़ गया।
आनंद बिल्थरे-विनायक फीचर्स
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