नयी दिल्ली- उच्चतम न्यायालय ने रामनवमी पर हुई हिंसक घटनाओं से संबंधित छह प्राथमिकी को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को स्थानांतरित करने के कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली पश्चिम बंगाल सरकार की विशेष अनुमति याचिका सोमवार को खारिज कर दी।
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से केंद्र सरकार की अधिसूचना को चुनौती नहीं दी गई है। इसलिए हम राज्य सरकार की विशेष अनुमति याचिका पर विचार नहीं कर रहे हैं।
पीठ ने कहा कि केंद्र सरकार ने एनआईए जांच का निर्देश देने के लिए अधिसूचना जारी की है, जिसे राज्य सरकार ने चुनौती नहीं दी है।
कलकत्ता उच्च न्यायालय ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेता सुवेंदु अधिकारी की ओर से दायर याचिका पर इस साल हावड़ा और अन्य स्थानों पर रामनवमी के दौरान हुई हिंसा के मामले में छह प्राथमिकियों को एनआईए को स्थानांतरित करने का आदेश 27 अप्रैल 2023 को दिया था।
पीठ ने कहा कि राज्य पुलिस द्वारा छह प्राथमिकी दर्ज की गई हैं। ये प्राथमिकी 30 मार्च से अप्रैल 2023 के पहले सप्ताह के दौरान दर्ज की गईं।
एनआईए द्वारा की जाने वाली जांच की सटीक रूपरेखा का इस स्तर पर अनुमान नहीं लगाया जा सकता है।
शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि केंद्र ने एनआईए अधिनियम के तहत इस मुद्दे पर स्वत: संज्ञान लेते हुए एक अधिसूचना जारी की थी और उच्च न्यायालय के आदेश के बाद एनआईए द्वारा छह एफआईआर दर्ज की गईं।
पश्चिम बंगाल पुलिस की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि इस मामले में उच्च न्यायालय का आदेश राज्य पुलिस का मनोबल गिराने वाला साबित होगा। उन्होंने दावा किया कि छह प्राथमिकी राज्य में अलग-अलग तारीखों और अलग-अलग स्थानों पर हुई विभिन्न घटनाओं के संबंध में दर्ज की गई थीं।
अधिवक्ता शंकरनारायणन ने जोर देकर कहा कि बम या विस्फोटकों के इस्तेमाल का कोई सबूत नहीं मिला था। इसलिए प्राथमिकी दर्ज करते समय विस्फोटक पदार्थ अधिनियम लागू नहीं किया गया। उन्होंने दावा किया कि भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस द्वारा इस्तेमाल किए गए स्मोक ग्रेनेड और आंसू गैस ग्रेनेड को विस्फोटक के रूप में पेश किया जा रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि कोई छर्रे या गड्ढे नहीं पाए गए। उन्होंने यह भी दावा किया कि रैली आयोजकों ने पुलिस द्वारा अनुमोदित मार्ग बदल दिया और हिंसा भड़काई।
उच्च न्यायालय में याचिका दायर करने वाले भाजपा नेता अधिकारी का पक्ष रख रहे वरिष्ठ अधिवक्ता पी एस पटवालिया ने शीर्ष अदालत के समक्ष तर्क दिया कि बम और विस्फोटक व्यापक रूप से फेंके गए थे, लेकिन राज्य पुलिस ने जानबूझकर इसे एफआईआर में और उल्लेख नहीं किया था।