नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने वर्ष 2018 के भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में आरोपियों – वर्नोन गोंसाल्वेस और अरुण फरेरा – को महाराष्ट्र से बाहर नहीं जाने, पासपोर्ट जांच एजेंसी को सुपुर्द करने समेत कई शर्तों के साथ शुक्रवार को जमानत देकर बड़ी राहत दी।
शीर्ष अदालत ने इस साल मार्च में जमानत पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने दोनों आरोपियों के करीब पांच साल की हिरासत का जिक्र करते हुए कहा कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ आरोप गंभीर हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उन्हें जमानत नहीं दी जा सकती।
पीठ ने उन पर जमानत कई शर्तें लगाते हुए कहा कि याचिकाकर्ता महाराष्ट्र नहीं छोड़ेंगे और उन्हें अपना पासपोर्ट एनआईए को सुपुर्द करना होगा। साथ ही राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) के अधिकारी को अपने पते और मोबाइल नंबर के बारे में भी सूचित करना होगा।इसके अलावा आरोपियों के फोन की लोकेशन चालू रहनी चाहिए और ट्रैकिंग के लिए एनआईए अधिकारी के साथ समन्वयित होनी चाहिए।
शीर्ष अदालत ने साथ ही आगाह किया कि गवाहों को धमकाने या अन्य शर्तों का कोई उल्लंघन होता है तो अभियोजन पक्ष दोनों आरोपियों की जमानत रद्द करने की मांग अदालत से कर सकता है।
याचिकाकर्ताओं ने पिछले साल मई में बॉम्बे उच्च न्यायालय के दिसंबर 2021 के फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था।