वर्ष 2020 और वर्ष 2021 में कोविड महामारी के मध्य पांच प्रकार के इंसान देखने में आये।
प्रथम श्रेणी के वे जिन्होंने समाज के पीड़ित लोगों की निस्वार्थ सेवा की, किसी को यह भी पता नहीं चला कि सेवा किसके सौजन्य से की जा रही है।
दूसरी श्रेणी के वो जो सेवा कर रहे थे, उनका लोगों को ज्ञान तो था, किन्तु वे किसी प्रकार का प्रचार नहीं कर रहे थे। इनमें कुछ सामाजिक संस्थाएं और सांस्कृतिक संगठन भी थे।
तीसरी श्रेणी उनकी थी, जो सेवा तो न्यून ही कर रहे थे, परन्तु प्रचार कई गुणा किया जा रहा था, इसके पीछे उनका सेवा भाव नहीं, उनका एक एजेंडा था।
चौथी श्रेणी उनकी थी, जो स्वयं तो कोई रचनात्मक कार्य नहीं कर रहे थे, न ही शासन-प्रशासन का सहयोग कर रहे थे, उल्टे राज्य के प्रत्येक कार्य में कमी निकालना, आलोचना करना, समस्याएं खड़ी करना ही उनका कार्य था। ऐसी विपदा में उनका यह व्यवहार स्पष्ट करता है कि न उन्हें देश से कोई प्यार है न जनता से कोई लगाव। ऐसे लोग अच्छे कार्य की प्रशंसा तो नहीं कर सकते, कमियां ढूंढ-ढूंढकर उनको बढ़ा-चढ़ाकर तथा तथ्यों को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत करते रहना ही उनका काम है। वे चाहते ही यह थे कि समस्या बनी रहे और उन्हें आलोचना करने का अवसर मिलता रहे।
सबसे निम्र श्रेणी के वे हैं, जो इस महामारी में ही अवसर ढूंढ रहे थे, जो भी उपकरण, ऑक्सीजन और कोरोना में काम आने वाली औषधियां, इंजैक्शनों की गैर कानूनी जमाखोरी तथा कालाबाजारी में उसके मूल्य से कई-कई गुणा वसूल रहे थे। इनमें जाली इंजैक्शन भी शामिल थे। ऐसे लोग मानवता के शत्रु हैं। ऐसे नरपिशाचों को कानून दंड दे पाये या न दे पाये, परन्तु उनका सामाजिक बहिष्कार तो अवश्य कर देना चाहिए।