30 जनवरी, वह तारीख जिसने भारत के इतिहास में एक गहरा घाव किया, जिसने एक महात्मा को हमसे छीन लिया। आज, बापू की पुण्यतिथि पर हम उन्हें प्रणाम करते हैं, उनके आदर्शों को याद करते हैं और उनके संदेश को आत्मसात करने का संकल्प लेते हैं।
महात्मा गांधी, वह नाम जो सत्य, अहिंसा और स्वतंत्रता का पर्याय बना। वह व्यक्ति जिसने बिना हथियार के, बिना हिंसा के, अंग्रेजों के शक्तिशाली साम्राज्य को झुका दिया। उनकी सादगी, उनका आत्मनिर्भरता का आग्रह, उनकी सामाजिक न्याय की लड़ाई और उनकी सार्वभौमिक प्रेम की विचारधारा आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी अंग्रेजों के राज में थी।
आज के भारत में, जब सामाजिक विषमताएं दिन-ब-दिन बढ़ रही हैं, धर्म और जाति के नाम पर नफरत का जहर फैलाया जा रहा है, और राजनीति स्वार्थ में डूबती जा रही है, तब बापू के आदर्श हमें रास्ता दिखाते हैं। उनकी अहिंसा हमें संवाद पर ज़ोर देती है, सत्य हमें झूठ और छल से दूर रहने की प्रेरणा देता है, और उनका स्वदेशी का विचार आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर करता है।
आज का भारत आर्थिक विकास की ऊंचाइयों को छू रहा है लेकिन क्या हम बापू के ‘सबका साथ, सबका विकास के सपने को साकार कर पाए हैं? क्या हमने गांवों के विकास पर उतना ही ध्यान दिया है, जितना शहरों पर? क्या हमने गरीबों, कमजोरों और वंचितों के लिए उतना ही काम किया है, जितना सत्ता और धन वालों के लिए?
बापू ने न सिर्फ स्वतंत्रता का आंदोलन चलाया, बल्कि उन्होंने एक ऐसे समाज का सपना देखा था, जहां हर किसी को बुनियादी ज़रूरतें मिलें, जहां शिक्षा और स्वास्थ्य का अधिकार सबको हो, जहां जाति और धर्म का भेद न हो, और जहां महिलाओं को सम्मान के साथ जीने का हक हो। क्या हम उनके इस सपने को हकीकत बनाने के लिए प्रयास कर रहे हैं?
आज हमें अपनी आत्मा से पूछना है, क्या हम सच बोलते हैं? क्या हम हमेशा अहिंसा के रास्ते पर चलते हैं? क्या हम स्वार्थ को त्यागकर समाज के भले के बारे में सोचते हैं? क्या हम गरीबों और लाचारों की मदद के लिए आगे आते हैं? क्या हम भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रयास करते हैं?
यह सवाल सिर्फ राजनेताओं से नहीं बल्कि हम हर नागरिक से हैं। तभी तो बापू का संदेश सार्थक होगा, तभी तो उनका बलिदान सार्थक होगा।
हमारे देश को आज सच्चे गांधीवाद की ज़रूरत है। हमें राजनीति से ऊपर उठकर सत्य की आवाज़ बनना होगा। हमें सामाजिक न्याय के लिए लडऩा होगा। हमें पर्यावरण की रक्षा के लिए प्रयास करना होगा। हमें स्वदेशी को अपनाना होगा और आत्मनिर्भर भारत का निर्माण करना होगा।
यह आसान नहीं है लेकिन बापू ने कहा था, असत्य अहिंसा से हारता अवश्य है, परन्तु धैर्य के बिना विजय कभी नहीं मिलती। हमें धैर्य के साथ, संकल्प के साथ बापू के रास्ते पर चलना है। तब एक ऐसा भारत बनेगा, जिस पर बापू को गर्व होगा।
आज 30 जनवरी, बापू को नमन, उनकी स्मृति को प्रणाम!
-अमित सिंह कुशवाहा