मुंबई। ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने सोमवार को मुंबई में मातोश्री पहुंचकर शिवसेना यूबीटी नेता उद्धव ठाकरे से मुलाकात की थी। इस दौरान उन्होंने उद्धव ठाकरे के साथ विश्वासघात की बात कही थी। उनके इस बयान के बाद सियासत गर्मा गई है।
इस मामले पर शिवसेना शिंदे गुट के नेता संजय निरुपम की बड़ी प्रतिक्रिया सामने आई है। संजय निरुपम ने कहा कि शंकराचार्य का पद आस्था का पद है। कल जिस तरह से शंकराचार्य जी ने राजनीतिक टिप्पणी की, हमें उस पर आपत्ति है। उद्धव ठाकरे ने बीजेपी छोड़ी, क्या यह विश्वासघात नहीं है? जगतगुरु शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद जी धार्मिक कम, राजनीतिक ज्यादा हैं। उद्धव ठाकरे से मिलना उनका व्यक्तिगत फैसला हो सकता है। इस पर हमें कोई एतराज नहीं है। शिवसेना के अंदरूनी विवाद पर राजनीतिक बयानबाजी से उन्हें बचना चाहिए। यह उन्हें शोभा नहीं देता।
शंकराचार्य का पद इन सबसे बहुत ऊंचा है और उन्हें किसी राजनीतिक पक्ष का समर्थन नहीं करना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि प्रदेश का मुख्यमंत्री कौन होगा और कौन नहीं, यह फैसला शंकराचार्य नहीं, जनता करेगी। शंकराचार्य जी बोलते-बोलते यह भी बोल गए कि जो विश्वासघात करते हैं, वे हिंदू नहीं हो सकते। यह बड़ा अजीबोगरीब तर्क है। पहले तो यह तय होना है कि विश्वासघात किसने किया? दूसरी बात ये शंकराचार्य नहीं तय कर सकते, यह काम महाराष्ट्र की जनता का है। हिंदू पौराणिक कथाओं और इतिहास में विश्वासघात के तमाम उदाहरण देखने-सुनने को मिलते रहे हैं।
क्या वे हिंदू नहीं थे? विश्वासघात एक मानवीय अवगुण है और इसका किसी धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। मैं यह बात मानता हूं कि इस अवगुण की वजह से कोई अच्छा या बुरा हिंदू हो सकता है, मगर, वह हिंदू हो ही नहीं सकता, यह कहना कुतर्क है।
उद्धव ठाकरे से मुलाकात के बाद स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा था कि विश्वासघात को सबसे बड़े पापों में से एक माना जाता है, वही उद्धव ठाकरे के साथ हुआ है। उन्होंने मुझे बुलाया, मैं आया। उन्होंने हमारा स्वागत किया। हमने कहा कि हमें उनके साथ हुए विश्वासघात पर दुख है। हमारा दुख तब तक नहीं जाएगा, जब तक वह दोबारा मुख्यमंत्री नहीं बन जाते।