नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया कि देश के विदेशी मुद्रा भंडार (एफईआर) में हालिया गिरावट देश के इतिहास में सबसे बड़ी गिरावट नहीं है। भारतीय रुपये और विदेशी मुद्रा भंडार पर हाल में आए दबाव के लिए विभिन्न बाहरी और घरेलू कारक जिम्मेदार हैं। केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री पंकज चौधरी ने सोमवार को लोकसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में यह जानकारी दी।
वित्त राज्यमंत्री चौधरी ने सदन को बताया कि 15 नवंबर, 2024 को समाप्त हफ्ते के दौरान इससे पिछले हफ्ते की तुलना में विदेशी मुद्रा भंडार में 2.63 फीसदी की गिरावट आई है। हालांकि, मंत्री ने कहा कि यह पिछले दो दशकों में फीसदी के लिहाज से सबसे बड़ी गिरावट नहीं है। सबसे बड़ी गिरावट 24 अक्टूबर, 2008 को समाप्त हफ्ते में दर्ज की गई थी, जब वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान विदेशी मुद्रा भंडार में 5.65 फीसदी की गिरावट आई थी।
चौधरी ने कहा कि 15 नवंबर, 2024 को समाप्त हफ्ते के दौरान विदेशी मुद्रा भंडार में पिछले हफ्ते की तुलना में 2.63 फीसदी की कमी आई। हालांकि, फीसदी के लिहाज से पिछले 20 वर्षों में अब तक की सबसे ज्यादा गिरावट 24 अक्टूबर, 2008 को समाप्त हफ्ते में देखी गई थी। भारत के विदेशी मुद्रा भंडार और भारतीय रुपये पर हाल ही में आए दबाव के लिए विभिन्न बाहरी और घरेलू कारक जिम्मेदार हैं। इनमें पूंजी का बहिर्वाह, डॉलर इंडेक्स में उतार-चढ़ाव, वैश्विक ब्याज दरों में वृद्धि और कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि शामिल है।
वित्त राज्यमंत्री ने कहा कि इन सभी कारकों ने मिलकर भारतीय मुद्रा के लिए चुनौतीपूर्ण माहौल तैयार किया है। भारतीय रुपये का मूल्य बिना किसी निश्चित लक्ष्य या बैंड के बाजार की ताकतों द्वारा निर्धारित किया जाता है। कई कारक विनिमय दर को प्रभावित करते हैं, जैसे पूंजी प्रवाह, डॉलर सूचकांक, ब्याज दर का स्तर, कच्चे तेल की कीमतें और चालू खाता घाटा।
मंत्री ने कहा कि भारतीय रुपये का मूल्य बाजार के द्वारा निर्धारित होता है, जिसका कोई लक्ष्य या विशिष्ट स्तर या बैंड नहीं होता है। आरबीआई भी रुपये के मूल्य में अत्यधिक अस्थिरता को रोकने के लिए जरूरी होने पर विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप करके महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उन्होंने सदन को बताया कि स्थिति नियंत्रण में है, आरबीआई और अन्य तंत्र अनुचित उतार-चढ़ाव को दूर करने और वित्तीय स्थिरता बनाए रखने के लिए मौजूद हैं।