Wednesday, February 12, 2025

महाकुंभ: आस्था का प्रतीक, ना कि सांप्रदायिक वैमनस्य का विषय

मेरठ। महाकुंभ प्रवास से एक साल बाद वापस लौटीं साध्वी वंदिनी ने कुंभ की महानता और उसकी आस्था के बारे में लोगों प्रवचन दिया। साध्वी वंदिनी ने कहा कि कुंभ मेला विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक और आध्यात्मिक आयोजन माना जाता है। जिसकी विराटता कई पहलुओं में दिखाई देती है। कुंभ मेले में करोड़ों श्रद्धालु एकत्रित होते हैं, जिसमें साधु-संत, नागा बाबा, श्रद्धालु पर्यटक और विदेशी मेहमान शामिल होते हैं।

 

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यह मानवता के सबसे बड़े मेलों में से एक है। हर 6 वर्ष में अर्धकुंभ (प्रयागराज और हरिद्वार में) होता है। साध्वी ने कहा कि हर 144 वर्ष में एक बार महाकुंभ (केवल प्रयागराज में) आयोजित किया जाता है, जिसे सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। हर 12 वर्ष में एक पूर्ण कुंभआयोजित होता है जो चार प्रमुख तीर्थ स्थलों- प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में आयोजित किया जाता है। प्रत्येक स्थान पर इसकी अपनी विशिष्टता होती है।

 

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उन्होंने कहा कि महाकुंभ का इतिहास प्राचीन ग्रंथों, धार्मिक मान्यताओं और ऐतिहासिक घटनाओं से जुड़ा हुआ है। यह केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, परंपरा और आध्यात्मिकता का प्रतीक भी है। महाकुंभ मेले की उत्पत्ति की कथा हिंदू धर्म के प्रमुख ग्रंथों में वर्णित समुद्र मंथन से जुड़ी है। उन्होंने कहा कि पद्म पुराण और स्कंद पुराण में कुंभ स्नान के महत्व की चर्चा की गई है। ह्वेनसांग (चीनी यात्री) ने अपने यात्रा वृत्तांत में प्रयागराज में एक भव्य धार्मिक आयोजन का उल्लेख किया, जिसे कुंभ से जोड़ा जाता है। इसी क्रम में ऐतिहासिक प्रमाण भी इस विराट आयोजन की और संकेत करते हैं 8वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने कुंभ को वैदिक और सनातन परंपरा से जोड़कर उसे एक भव्य स्वरूप दिया। उन्होंने चारों धामों की यात्रा और कुंभ स्नान को पुनर्जीवित किया। मुगल काल (16वीं-17वीं शताब्दी) में प्रयागराज कुंभ का उल्लेख मिलता है, जब अकबर ने इस स्थल को “इलाहाबाद” नाम दिया और वहां किले का निर्माण कराया।

 

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ब्रिटिश काल (19वीं सदी) में कुंभ मेले की जनसंख्या और प्रभाव इतना बढ़ गया कि अंग्रेज प्रशासन को इसकी व्यवस्था के लिए विशेष प्रबंध करने पड़े। स्वतंत्रता के बाद कुंभ मेले की लोकप्रियता और बढ़ी। 1989 के प्रयागराज कुंभ में पहली बार इसे एक अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली। 2019 के प्रयागराज कुंभ को यूनेस्को ने ” अमूर्त “अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर’ का दर्जा दिया। इस क्रम में महाकुंभ 2025 की भव्यता कई आयामों में प्रकट होती है, जो इसे एक अद्वितीय आध्यात्मिक और सांस्कृतिक आयोजन बनाती है।

 

 

 

 

साध्वी वंदनी ने कहा कि महाकुंभ 2025 की विशेषताएँ इसकी भव्यता और दिव्यता को दर्शाती हैं। जो इसे विश्व के सबसे बड़े आध्यात्मिक आयोजनों में से एक बनाती हैं। सरकार ने सार्वजनिक सुविधाओं के साथ टेंट सिटी बनाने से लेकर सुरक्षा बनाए रखने और रसद संभालने तक हर चीज़ में उल्लेखनीय संगठनात्मक कौशल दिखाया है। चीज़ों को परिप्रेक्ष्य में रखें तो, महाकुंभ के भाँति ही हज यात्रा का आयोजन भी हर वर्ष किया जाता है जिसमे सम्पूर्ण विश्व के मुसलमान सऊदी अरब के मक्का शहर में एकत्रित होते है और लगभग 40 लाख मुसलमान इसमें शामिल होते हैं, एक मुश्किल काम है।

 

 

इसी क्रम में रियो कार्निवल (Carnival of Rio) ब्राजील के रियो डी जेनेरियो शहर में आयोजित होने वाला विश्व प्रसिद्ध उत्सव है, जिसे दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी के रूप में जाना जाता है। रियो कार्निवल में हर साल बड़ी संख्या में लोग शामिल होते हैं। उदाहरण के लिए, 2023 में, लगभग 4 करोड़ लोगों के इसमें शामिल होने का अनुमान था। इन सबकी तुलना में महाकुंभ में इतनी बड़ी भीड़ की देखरेख करने की कल्पना करें जो इनसे कई गुना ज्यादा हो। आयोजन का सुचारू संचालन और अपेक्षित विजयी समापन, विश्व मंच पर भारत की संभावित नेतृत्व स्थिति को दर्शाता है, जो न केवल हिंदुओं के लिए बल्कि सभी भारतीयों के लिए गर्व की बात है।

 

 

 

साध्वी ने कहा कि भारत ने एक बार फिर दिखाया है कि उसके पास इतनी बड़ी भीड़ को संभालने के लिए संगठनात्मक कौशल और नेतृत्व के गुण हैं। । एक सुसंगत राष्ट्र के रूप में, में, आइए हम इस अद्भुत उपलब्धि का जश्न मनाते हुए शांति और एक-दूसरे के प्रति सम्मान की भावना को बनाए रखें जो हमारे बहुसांस्कृतिक देश की विशेषता है।

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