Monday, December 23, 2024

इस प्रकार होता है दैवीय गुणों का विकास

दैवीय गुणों का विकास करने के लिए आध्यात्मिक जीवन के अभ्यासी बनें क्योंकि इस जीवनशैली में स्वाभाविक रूप से जीवन की सिद्धि, सफलताएं, समाधान और कल्याण के सूत्र मौजूद हैं। इसमें क्षमाशीलताएं, विनय और परमार्थ जैसे अनेक सद?्गुणों का स्थायी वास रहता है। जन्म, जरा और मृत्यु भौतिक शरीर को सताते हैं आध्यात्मिक शरीर को नहीं।

आध्यात्मिक व्यक्ति ईश्वरीय शक्ति संपन्न बन जाता है। अध्यात्म जीवन का ऐसा सत्य है, एक ऐसी अनिवार्यता है जो देर-सबेर जीवन का सचेतन हिस्सा बनती है और लौकिक अस्तित्व को पूर्णता देती है। इस तरह यह विश्लेषण विवेचन व चर्चा से अधिक जीने का अंदाज है जिसे जी कर ही जाना व पाया जा सकता है। प्राण वायु की तरह हर पल अध्यात्म तत्व को जीवन में धारण कर हम अपने जीवन की खोई हुई जीवंतता और लय को पुन: प्राप्त कर सकते हैं। इस प्रकार हमारे व्यक्तित्व में दैवीय गुणों का विकास होता है और एक विश्वसनीयता एवं प्रमाणिकता जन्म लेती है।

जीवन में भक्ति और दिव्य कर्मों के विषय में सब कुछ जानने का प्रयत्न ही अध्यात्म है। जिस समय हम शांति, अकारण सुख व आनंद की अवस्था में होते हैं, हम अपने वास्तविक स्व में, गहन अंतरात्मा में जी रहे होते हैं। सही मायने में अध्यात्म एक दर्शन है चिंतन धारा है, विद्या है, हमारी संस्कृति की परंपरागत विरासत है। यह आत्मा, परमात्मा, जीव, माया, जन्म, मृत्यु, पुनर्जन्म, सृजन, प्रलय की अबूझ पहेलियों को सुलझाने का प्रयत्न है।

देखा जाए तो स्वयं को स्वयं से जोडऩे का नाम आध्यात्मिकता है। इस संसार में मानव जीवन से अधिक श्रेष्ठ अन्य कोई उपलब्धि नहीं है। एकमात्र मानव जीवन ही वह अवसर है जिसमें मनुष्य जो भी चाहे प्राप्त कर सकता है। इसका सदुपयोग मनुष्य को कल्पवृक्ष की भांति फलीभूत होता है। जो मनुष्य इस सुरदुर्लभ मानव जीवन को पाकर उसे सुचारू रूप से संचालित करने की कला नहीं जानता यह उसका दुर्भाग्य ही कहा जाएगा।

मानव जीवन वह पवित्र क्षेत्र है जिसमें परमात्मा ने सारी विभूतियां बीज रूप में रख दी हैं जिनका विकास नर को नारायण बना देता है। किंतु इन विभूतियों का विकास तभी होता है जब जीवन का व्यवस्थित रूप से संचालन किया जाए। अध्यात्म हमें जीवन के द्वंद्वों के बीच सम रहने और विषमताओं को पार करने की शक्ति देता है।

आध्यात्मिक दृष्टि में जीवन का लक्ष्य आत्म-जागरण, आत्म-साक्षात्कार, ईश्वर प्राप्ति है। यह प्रक्रिया स्वयं को जानने के साथ प्रारंभ होती है, अपनी अंतरात्मा से संपर्क साधने और उस सर्वव्यापी सत्ता के साथ जुडऩे के साथ आगे बढ़ती है। अध्यात्म विवेक को जागृत करता है जो सहज स्फूर्त नैतिकता को संभव बनाता है और हम जीवन मूल्यों के स्रोत से जुड़ते चले जाते हैं।

अध्यात्म अंतर्निहित दिव्य क्षमताओं एवं शक्तियों के जागरण, विकास के साथ व्यक्तित्व की चरम संभावनाओं को साकार करता है। आज हम जिन महामानवों अथवा देव मानवों को आदर्श के रूप में देखते हैं वे किसी न किसी रूप में इसी विकास का परिणाम होते हैं।

- Advertisement -

Royal Bulletin के साथ जुड़ने के लिए अभी Like, Follow और Subscribe करें |

 

Related Articles

STAY CONNECTED

74,303FansLike
5,477FollowersFollow
135,704SubscribersSubscribe

ताज़ा समाचार

सर्वाधिक लोकप्रिय