हमीरपुर। बुंदेलखंड में वृन्दावन की तर्ज पर यहां श्रीकृष्ण के हजारों दीवानों ने अब दीपावली पर्व को लेकर मौन साधना की तैयारी की है। मौन साधना का व्रत बड़ा ही कठिन माना जाता है जिसे लेकर किशोर और नवयुवकों ने अभी से तैयारी शुरू कर दी है। मौन साधना का व्रत रखने के लिए श्रीकृष्ण के भक्तों को घर छोड़ जंगल में डेरा डालना पड़ता है। सदियों पुरानी परम्परा का मौन साधना की दीपावली की परेवा से शुरू होगी।
बुन्देलखण्ड क्षेत्र में मौन पंख व दिवाली नृत्य के साथ ही गांव-गांव में यह विशेष अनुष्ठान श्रीकृष्ण भक्त करते हैं। ये परम्परा हजारों साल पुरानी हैं जो आज भी कायम हैं। अबकी बार मौन साधना परेवा से शुरू होगी। पंडित दिनेश दुबे ने बताया कि मौन साधना एक तरह से कठिन व्रत हैं जिसे बड़े ही सावधानी से करना होता हैं। दीपावली पर्व की शान मौन साधक हैं जिनके साधना शुरू करते ही पूरे क्षेत्र में दीपावली की धूम मच जाती हैं। ये मौन साधना एकादशी तक चलेगी। इतनी कठिन साधना होने के बाद भी बुन्देलखण्ड के गांव-गांव में मौन साधकों में कोई कमी नजर आ रही है। विदोखर गांव के बुजुर्ग मौन साधक बाबूलाल यादव ने बताया कि हर साल जितने मौन साधकों का अनुष्ठान पूरा होता है उतने या उससे अधिक लोग नये तैयार हो जाते है जिससे यह अनुष्ठान पूर्ण आस्था के साथ पूर्व की तरह आज भी जारी है। उन्होंने बताया कि श्रीकृष्ण की यह कठोर साधना व्यर्थ नहीं जाती है लेकिन साधना कठिन है सबके बस की बात भी नही है।
मौन साधकों को चौदह सालों करना होता है बड़ा अनुष्ठान
सुमेरपुर क्षेत्र के जितेन्द्र यादव समेत तमाम लोगों ने बताया कि मौन साधना में बड़ा अनुष्ठान करना पड़ता है। लोगों को कई धार्मिक व सामाजिक नियमों से भी बंधना होता है। जो भी भक्त मौन साधना करते है उसे लगातार चौदह सालों तक मांस मदिरा से दूर रहना होता है। यदि कोई भी नियम तोड़ता है तो अनुष्ठान का पुण्य बेकार चला जाता है। मौन साधना के एक दिन पहले अमावस्या को किसी नदी में समूह के साथ स्नान दान करना बी जरूरी होता है। बिना मोर पंख के साधना करने की मनाही है। श्रीकृष्ण भक्तोंको मौन साधना के दिन नए कपड़े पहनने होते है। गायों के लिए एक दिन का आहार दान भी देना जरूरी है।
मौन साधना का व्रत तोडऩे पर मौन साधक करते है पिटाई
मौन साधकों ने बताया कि नंगे पांव ही मौन साधना का व्रत रखने वालों को घर छोड़ जंगल में रहना पड़ता है। तड़के गो पूजा करने के बाद शाम को गोधूलि की बेला में ही जंगल से मौन साधकों को लौटकर दोबारा गो पूजा कर मौन तोडऩा पड़ता है। बताया कि इस बीच कई भूल से मौन तोड़ देता है तो अन्य मौन साधक मोर पंखों से उसकी पिटाई करते है। उसे गोमूत्र भी ग्रहण करने को बाध्य किया जाता है। बाबूलाल यादव ने बताया कि 13 साल की मौन साधना पैतृक गांव में करने के बाद 14वें साल उसे चित्रकूट या वृन्दावन जाकर यह अनुष्ठान करना होता है। तभी श्रीकृष्ण की कठिन साधना का अनुष्ठान पूर्ण होता है।
मौन साधक अमावस्या को करेंगे यमुना में स्नान
दीपावली के दिन हजारों कृष्ण भक्त, समूह के साथ विभिन्न वाहनों के माध्यम से यमुना नदी में के तट पर पहुंचकर स्नान करेंगे। मोर पंखों को नदी में धोयेंगे और दिवाली नृत्य के साथ घरों की ओर मौन साधक वापस जायेंगे। जिले के सुमेरपुर क्षेत्र के मौन साधक ट्रैक्टर, बस, मोटरसाइकिल व बैलगाड़ी के माध्यम से यमुना नदी पहुंचकर सुबह से शाम तक डेरा डालेंगे और नदी में पवित्र स्नान कर पतालेश्वर मंदिर परिसर पर श्रीकृष्ण भक्त दिवाली भी खेलेंगे। सड़कों और गांवों के रास्ते में कृष्ण भक्तों की चहलपहल दिन भर रहेगी।