भारत के परंतन्त्रता काल अर्थात औपनिवेशिक युग के प्रतीकों, ऐतिहासिक दुराग्रहों व राजदंडों से मुक्ति का सिलसिला जारी है। भारत, भारतीय और भारतीयता के समर्थकों द्वारा औपनिवेशिक युग के कानूनों से मुक्ति की दशकों पुरानी की मांग के अनुरूप अब सरकार ने अधिसूचना जारी कर कहा है कि ब्रिटिश काल में निर्मित औपनिवेशिक युग की प्रतीक भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और 1872 के भारतीय साक्ष्य अधिनियम (एविडेंस एक्ट) आदि कानून अब बदल जाएंगे। देश में आपराधिक न्याय प्रणाली को पूरी तरह से बदलने के लिए तीन नए कानून- भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम अधिसूचित किए गए हैं, जो एक जुलाई 2024 से लागू होंगे। बीते वर्ष 2023 के अगस्त माह में मानसून सत्र के आखिरी दिन केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में नए आपराधिक कानूनों से जुड़े तीन बिल पेश किए थे। जिसे संसद की स्थायी समिति को भेज दिए गए थे। स्थायी समिति द्वारा संदर्भित परिवर्तनों को शामिल करने के लिए इन विधेयकों को वापस ले लिया गया था। बाद में स्थायी समिति द्वारा संदर्भित परिवर्तनों को शामिल कर केंद्र सरकार ने गत शीतकालीन सत्र में भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम को फिर से पेश किया। तीनों कानूनों को संसद के शीतकालीन सत्र में पिछले वर्ष 21 दिसम्बर को संसद की मंजूरी मिल गई और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 25 दिसम्बर को इन कानूनों को अपनी सहमति प्रदान कर दी। सरकार ने 24 फरवरी शनिवार को इससे जुड़ी अधिसूचना जारी कर दी है। केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचनाओं के अनुसार नए कानूनों के प्रावधान एक जुलाई से लागू होंगे। तीनों कानूनों का उद्देश्य विभिन्न अपराधों को परिभाषित करके उनके लिए सजा तय करके देश में आपराधिक न्याय प्रणाली को पूरी तरह से बदलना है। इस संबंध में जारी अधिसूचना में यह भी कहा गया है कि केंद्र सरकार ने हिट एंड रन से जुड़े अपराध के लिए प्रावधानित भारतीय न्याय संहिता की धारा-106 (2) को फिलहाल स्थगित कर दिया है। अर्थात धारा-106 (2) फिलहाल लागू नहीं होगा।
यह भी हर्ष की बात है कि जारी अधिसूचना में भारतीय परतंत्रता काल की याद दिलाने वाली पुराने औपनिवेशिक काल के कई शब्दावलियों को हटा दिया गया है। ऐसे करीब 475 शब्दों को हटा दिया गया अर्थात डिलीट किया गया है, जिनमें लंदन गजट, ज्यूरी, हर हैनिस आदि शामिल हैं। पहले से चर्चित धाराएं, 420 अर्थात धोखाधड़ी, दफा 302 अर्थात हत्या व 376 अर्थात बलात्कार जैसे अपराध के लिए कानून की किताब में लिखी धाराएं अब बदल गई है। नए कानून में हत्या के लिए लगाई जाने वाली भारतीय दंड संहिता की धारा 302 अब धारा 101 कहलाएगी। ठगी के लिए लगाई जाने वाली धारा 420 अब धारा 316 होगी। हत्या के प्रयास के लिए लगाई जाने वाली धारा 307 अब धारा 109 कहलाएगी। वहीं दुष्कर्म के लिए लगाई जाने वाली धारा 376 अब धारा 63 होगी। नई भारतीय न्याय संहिता में कुल 358 धाराएं हैं, और उसमें 20 नए अपराध को परिभाषित किया गया है। जिनमें स्नेचिंग से लेकर मॉब लिंचिंग तक को शामिल किया गया है। मॉब लिंचिंग और नफऱती अपराध के लिए पूर्व की न्यूनतम सात वर्ष की सजा की अवधि को सात वर्ष से बढ़ाकर आजीवन कारावास कर दिया गया है। इसी तरह 33 अपराधों में सजा को बढ़ाया गया है। 83 धाराओं अथवा अपराध में जुर्माने की राशि भी बढ़ा दी गई है। ऐसे 23 अपराध हैं, जिनमें न्यूनतम सजा का जिक्र नहीं था, जिसमें न्यूनतम सजा को शुरू किया गया है। 19 धाराओं को हटा दिया गया है। साथ ही सजा के तौर पर सामाजिक व सामुदायिक सेवा को भी रखा गया है। पहले यह नहीं था। राजद्रोह जैसे अपराध को अब नए कानून में हटा दिया गया। भारतीय नागरिक संहिता की धारा-113 में आतंकवाद से संबंधित परिभाषा और सजा का प्रावधान है। इसमें आर्थिक सुरक्षा को ख़तरा भी आतंकवादी गतिविधि के अंतर्गत रखा गया है। तस्करी अथवा नकली नोटों का उत्पादन करके वित्तीय स्थिरता को नुकसान पहुंचाना भी आतंकवादी अधिनियम के अंतर्गत आएगा। अब भारत में रक्षा और सरकारी उद्देश्य के लिए विदेश में अवस्थित संपत्ति को नष्ट करना भी एक आतंकवादी गतिविधि होगी। भारत में सरकारों को कुछ भी करने पर मजबूर करने के लिए किसी व्यक्ति को हिरासत में लेना या अपहरण करना भी एक आतंकवादी गतिविधि होगी। नए कानून में अदालती कार्यवाही प्रकाशित करने पर सज़ा का प्रावधान किया गया है। नए प्रावधान के अनुसार जो कोई भी बलात्कार के मामलों में अदालती कार्यवाही के संबंध में अदालत की अनुमति के बिना कुछ भी प्रकाशित करेगा, उसे दो वर्ष तक की जेल हो सकती है और जुर्माना लगाया जा सकता है। इसी तरह दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) में जहां पूर्व में कुल 484 धाराएं थीं, वहीं भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में 531 धाराएं हैं। कुल 177 ऐसे प्रावधान हैं, जिसमें संशोधन हुआ है। 9 नई धाराएं व कुल 39 उपधाराएं जोड़ी गई हैं। और 14 धाराओं को निरस्त कर दिया गया है। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में सबूतों के मामले में ऑडियो-विडियो इलेक्ट्रॉनिक्स तरीके से जुटाए जाने वाले सबूतों को प्रमुखता दी गई है। नए कानून में किसी भी अपराध के लिए जेल में अधिकतम सजा काट चुके कैदियों को उसके निजी बांड पर रिहा करने का प्रावधान रखा गया है। वहीं भारतीय साक्ष्य अधिनियम में कुल 170 धाराएं होंगी । पहले के इंडियन एविडेंस एक्ट के तहत कुल 167 धाराएं थी। 6 धाराओं को निरस्त किया गया है और 2 नई धाराएं व 6 उप धाराओं को जोड़ा गया है। ऐसा प्रावधान किया गया है कि गवाहों की सुरक्षा के लिए कानून बनेगा।
वकालत कर रहे देश के बड़े वकीलों के अनुसार नए आपराधिक कानून लागू होने की जो तारीख निर्धारित की गई है, उस तारीख से जब अपराध होगा तो वह नए कानून में दर्ज किया जाएगा। संविधान के अनुसार अपराध की तारीख में जो कानून होता है, उसी के हिसाब से मुकदमा चलता है और सजा होती है। ऐसे में नए कानून जब अमल में आएगा, तब नए केस नए कानूनी धाराओं के तहत दर्ज होंगे। और जो भी कानूनी प्रक्रिया तय होगी, वह नए कानून के तहत तय होगी। नए कानून से संबंधित अधिसूचना जारी होने के बाद उस तारीख से होने वाले अपराध के मामले में वह अमल में आएगा और पहले से चल रहे मामले अदालतों में पहले के कानून के अनुसार ही चलते रहेंगे। अर्थात पूर्व से दर्ज केस में पहले के कानून के तहत ही चार्जशीट दाखिल की जाएगी और पहले के कानून के तहत ही उसमें मुकदमा चलेगा। जो केस अदालतों में पेंडिंग हैं, उन केसों की सुनवाई पहले की तरह चलती रहेगी और उस पर असर नहीं होगा।
फिलहाल रोक लगी हिट एंड रन से जुड़े कानूनी प्रावधान भारतीय न्याय संहिता की धारा-106 (1) और (2) के अंतर्गत शामिल किए गए हैं। धारा-106 (1) के अनुसार अगर कोई लापरवाही से गाड़ी चलाता है तो होने वाली मौत का मामला गैर इरादतन अपराध की श्रेणी में होगा और दोषी पाए जाने पर पांच वर्ष तक कैद की सजा हो सकती है। वहीं अगर कोई रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिक्शनर द्वारा लापरवाही से किसी मरीज की मौत हो तो उस मामले में उसे अधिकतम दो वर्ष कैद की सजा हो सकती है। मौजूदा भारतीय दंड संहिता की धारा-304 ए में प्रावधान है कि लापरवाही से मौत के मामले में ड्राइवर को अधिकतम दो वर्ष कैद की सजा हो सकती है। वहीं भारतीय न्याय संहिता की धारा-106 (2) में प्रावधान है कि अगर लापरवाही से मौत के बाद ड्राइवर मौके से भाग जाता है और वह बिना पुलिस व मैजिस्ट्रेट को बताए मौके से फरार होता है तो दोषी पाए जाने पर उसे 10 वर्ष तक कैद और जुर्माने की सजा होगी। केंद्र सरकार द्वारा जारी अधिसूचना में भारतीय न्याय संहिता की धारा-106 (2) के अमल पर रोक लगा दी गई है। हिट एंड रन मामले से जुड़े प्रावधान को लेकर देश भर में ड्राइवरों का सड़क पर भारी विरोध हुआ था। जनवरी के पहले सप्ताह में हिट एंड रन से जुड़े मामले में सजा और जुर्माने के प्रावधान के विरोध में देश भर में बस, ट्रक और अन्य ड्राइवर हड़ताल पर चले गए थे। इस कारण देश भर में आवाजाही प्रभावित हुई थी और सभी जरूरी सामानों की आपूर्ति बाधित हो गई थी। विरोध के बढ़ते स्वर को समझते हुए केंद्र सरकार ने तब हड़ताल करने वाले यूनियन से कहा था कि वह हिट एंड रन से जुड़े मामले को ड्राइवर यूनियन से चर्चा के बाद लागू करेगा इसके बाद हड़ताल पर विराम लगा था।
-अशोक प्रवृद्ध