Thursday, November 21, 2024

गीता प्रेस पर राजनीति दुर्भाग्यपूर्ण

विश्व भर में आध्यात्मिक चेतना जगाने के लिए अग्रणी तथा सनातन संदेशों की प्रचारक प्रकाशक संस्था है गीताप्रेस। गोरखपुर का यह प्रकाशन अपने स्वर्णिम इतिहास के 100 वर्ष पूरे कर रहा है। बीते 100 वर्षों में अनगिनत आर्थिक कठिनाइयों का सामना करने के बावजूद गीता प्रेस द्वारा लागत से कम मूल्य पर गीता रामायण तथा अनेक ग्रंथों पुस्तकों को करोड़ों की संख्या में प्रकाशित कर घर-घर पहुंचाने का श्रम साध्य कार्य किया है।

भारतीय संस्कृति की रक्षा का संकल्प लेकर सनमार्ग पर चलते हुए जो संस्था जनमानस के कल्याण की भावना से निर्विवाद रूप से अपनी यात्रा के 100 वर्ष पूर्ण कर रही हो, उस पर राजनीति करना या उस पर लांछन लगाना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। यह एक प्रकार से विरोधियों की कुमति की परिणति ही कही जाएगी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए गांधी शांति पुरस्कार 2021 गीता प्रेस गोरखपुर को देने का निर्णय लिया गया। इसकी घोषणा केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय द्वारा की गई है । घोषणा के बाद कांग्रेस के नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश का ट्वीट आता है। जिसमें वे  इस निर्णय का विरोध करते है।

वे गीता प्रेस की तुलना गोडसे और वीर सावरकर से करते हुए इस निर्णय का उपहास करते हैं। इससे उनकी ओछी मानसिकता और सतही समझ प्रमाणित होती है। कुछ नेताओं ने शायद सस्ती लोकप्रियता के लिए हर अच्छे कार्यों का विरोध करना अपनी आदत में शुमार कर लिया लगता है। इससे भी बड़े आश्चर्य की बात यह है कि जयराम रमेश के ट्वीट का कांग्रेस पार्टी ने ना खंडन किया है और ना समर्थन।

यानी कि वह असमंजस में है। यदि वह समर्थन करती है तो करोड़ों हिंदुओं की भावनाओं की नाराजगी उसे झेलना पड़ सकती है और यदि खंडन करती है तो तुष्टीकरण  की भावना को ठेस पहुंचाती है। ऐसे में वह दो नावो पर सवार होकर नहीं चल सकती है। उसे निर्णय करना होगा कि वह  जनमानस की भावनाओं के साथ है या विरोधी मानसिकता की पैरोकार।

कांग्रेस पार्टी को यह स्मरण होना चाहिए कि गीता प्रेस के उत्कृष्ट योगदान के लिए वर्ष 1992 में पूज्य श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार पर डाक टिकट जारी किया गया था। तब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी। वर्ष 1936 में गोरखपुर में बाढ़ आई थी, तब नेहरू जी को वाहन की आवश्यकता थी। उस समय नेहरू जी को वाहन उपलब्ध न कराने का अंग्रेजों ने ऐलान किया था।

इसकी परवाह ना करते हुए श्री पोद्दार जी ने मानवता को सर्वोपरि मानते हुए नेहरू जी को वाहन उपलब्ध कराया था। दूसरी बात, जब गीताप्रेस की कल्याण मासिक पत्रिका शुरू हुई तब पहले तीन पेज महात्मा गांधी जी ने लिखे थे। इसकी पहली प्रति जब पोद्दार जी ने गांधी जी को सौंपी तब उन्होंने पत्रिका को व्यक्ति पूजा और विज्ञापन से दूर उसे रखने की हिदायत दी थी। इन दो बातों का अभी तक पालन हो रहा है।

महात्मा गांधी जी और कांग्रेस पार्टी से जुड़ी इन घटनाओं से स्पष्ट है कि पूर्व काल में कांग्रेस पार्टी गीता प्रेस के विरोध में नहीं रही है। फिर अभी विरोध का क्या कारण है। क्या पीएम मोदी का विरोध करना कुछ नेताओं की आदत बनती जा रही है या सस्ती लोकप्रियता के लिए यह सब किया जा रहा है। सच जो भी हो परंतु यह तय है कि देश के करोड़ों लोग विरोधी मानसिकता से जुड़े तथाकथित नेताओं के बयानों की सच्चाई जानने लगे हैं। देश का जनमानस देख रहा है कि क्या उनके बयान राजनीति से प्रेरित हैं।

यह जरूरी है कि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए मजबूत विपक्ष का होना आवश्यक है सरकार के कार्यों में यदि खामियां हैं, दोष हैं तो उन्हें बेशक जनता के सामने लाइए । कोई नेता अगर सनमार्ग से भटक गया है और गलत कर रहा है तो आप विरोध कीजिए। यह आपका अधिकार है लेकिन सरकार के हर अच्छे कार्यों और उपलब्धियों का विरोध करना अनुचित है।सरासर ग़लत है।

गीता प्रेस की स्थापना अप्रैल 1923 में हुई। 15 भाषाओं में अब तक 73 करोड़ से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। 15 करोड़ से अधिक गीता और साढ़े ग्यारह करोड़ से अधिक रामचरितमानस का प्रकाशन इसमें शामिल है। हर्ष का विषय यह है कि प्रेस की ओर से जल्दी ही 100 करोड़ का कीर्तिमान बनाने का लक्ष्य है। स्थापना के समय वर्ष 1923 में पहली हाथ मुद्रण मशीन 600 रुपए में खरीदी गई। वर्ष 1926 से मासिक कल्याण का प्रकाशन शुरू हुआ।

यह सत्य है कि हिंदी के विकास में और साहित्यिक और सांस्कृतिक जन जागरण के क्षेत्र में गीता प्रेस का अद्वितीय योगदान है। प्रेस की गीता और रामायण भारत सहित कई देशों के करोड़ों घरों में है। यह साहित्य मात्र पुस्तकें नहीं है। साधकों और भक्तों के लिए यह ग्रंथ देवतुल्य है। पढऩे से पहले और बाद में वे इसे श्रद्धापूर्वक मस्तक पर लगाते हैं। इनसे करोड़ों हिंदुओं की आस्था जुड़ी है। (लेखक वरिष्ठ साहित्यकार एवं मानव जीवन और ध्यान पुस्तक के लेखक हैं।)
(-श्रीराम माहेश्वरी)

- Advertisement -

Royal Bulletin के साथ जुड़ने के लिए अभी Like, Follow और Subscribe करें |

 

Related Articles

STAY CONNECTED

74,306FansLike
5,466FollowersFollow
131,499SubscribersSubscribe

ताज़ा समाचार

सर्वाधिक लोकप्रिय