लखनऊ। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेता लालकृष्ण आडवाणी को केंद्र सरकार भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित करेगी। वह ऐसे राजनेता रहे हैं, जो एक जमाने में हिंदुत्व का सबसे बड़ा चेहरा रहे हैं। वह सातवें उप प्रधानमंत्री थे, वहीं उनके नाम सबसे ज्यादा दिनों तक संसद में विपक्ष के नेता बने रहने का भी रिकॉर्ड है, जिसे कोई अब शायद ही तोड़ पाए। आइए हिन्दुस्थान समाचार आपको बताएगा 96 वर्षीय लालकृष्ण आडवाणी की शून्य से शिखर तक की कहानी-
1980 और 1990 के दशक में जब कांग्रेस का राज था, तब अगर किसी ने भाजपा के लिए सियासी जमीन तैयार की तो वह लालकृष्ण आडवाणी ही थे। लालकृष्ण आडवाणी को हर बार नया तमगा मिलता रहा। पीएम इन वेटिंग, कर्णदार, लौह पुरुष से लेकर कट्टरपंथी तक का खिताब उन्हें मिल चुका है। हर कोई लालकृष्ण आडवाणी को अलग-अलग रूप में याद करता है, पर 90 के दशक में जिन्होंने राम मंदिर आंदोलन के लिए जमीनी संघर्ष देखा है उनके लिए लालकृष्ण आडवाणी से बड़ा हीरो कोई नहीं है। वे उन्हें लौह पुरुष कहते हैं, हिंदू हृदय सम्राट कहते हैं।
सियासी सफर
लालकृष्ण आडवाणी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यकर्ता रहे हैं। 1951 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जनसंघ की स्थापना की, तब आडवाणी इस पार्टी से जुड़ गए। 1951 से 57 तक उन्होंने पार्टी सचिव की भूमिका संभाली। आडवाणी हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की राजनीति करते थे। एक ध्वज, एक राष्ट्र और एक संविधान का राग गाने वाले श्यामा प्रसाद मुखर्जी के सही उत्तराधिकारी वही थे। 1973 से लेकर 77 तक वे भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष रहे। जब इंदिरा गांधी के इशारे पर देश में इमरजेंसी लगा तो आडवाणी 19 महीने जेल से बाहर ही नहीं आए।
1990 में राम मंदिर आंदोलन चलाया, सोमनाथ से निकाली रथयात्रा
भारतीय जनता पार्टी की स्थापना साल 1980 में हुई। 1986 तक लालकृष्ण आडवाणी ही पार्टी के महासचिव रहे। उनकी जिम्मेदारी बढ़ी और 1986 से 1991 तक अध्यक्ष का पद उन्हें संभालना पड़ा। यह वही साल था जब अयोध्या में राम मंदिर के लिए आंदोलन तेज हो रहा था। आडवाणी चाहते थे अयोध्या में बाबरी मस्जिद मुस्लिम पक्ष खाली करे और वहां भव्य राम मंदिर बने। उन्होंने इसी साल 1990 में राम मंदिर आंदोलन चलाया। उन्होंने सोमनाथ से अयोध्या के लिए रथयात्रा निकाली, गिरफ्तार हुए, कट्टरपंथ को बढ़ावा देने के आरोप लगे। छह दिसंबर 1992 को जब कारसेवकों ने अयोध्या में विवादित बाबरी ढांचा गिरा दिया, पूरे मूवमेंट का क्रेडिट लालकृष्ण आडवाणी को जा मिला। राम मंदिर चाहने वाले हिंदुओं की नजर में लालकृष्ण आडवाणी सम्राट हो गए।
इंतजार करते रह गए, नहीं बन पाए प्रधानमंत्री
लालकृष्ण आडवाणी तीन बार भाजपा के अध्यक्ष रहे। राज्यसभा से लेकर लोकसभा तक, लालकृष्ण आडवाणी की हर जगह धाक रही। 1977 से 1979 तक केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री का कार्यभार संभाला। वे 1999 में एनडीए की सरकार में गृह मंत्री बने, 2002 में उप प्रधानमंत्री बने। उन्होंने भाजपा को जमीन से खड़ा किया और सींचा। जो भाजपा 1984 में महज दो सीटें जीत सकी थी, उसकी अब तूती बोल रही है। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 283 सीटों पर जीत मिली थी, 2019 के चुनाव में भाजपा ने 336 सीटें जीतीं।
अब भाजपा का दावा है कि 2024 के चुनाव में 400 सीटें जीतेगी। यह सच है कि ये उपलब्धियां उनकी मेहनत की वजह से मिलीं। उन्होंने ही भाजपा का संगठन मजबूत किया था। नरेन्द्र मोदी उनके राजनीतिक शिष्य रहे हैं। अटल बिहारी वाजपेयी के राजनीतिक रूप से सन्यास लेने के बाद 2009 का लोकसभा चुनाव लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में ही लड़ा गया। भाजपा को भीषण हार मिली। वह उप प्रधानमंत्री तो बन चुके थे, प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए। वह इंतजार करते ही रह गए और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बन गए।
अब मिलेगा भारत रत्न
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लालकृष्ण आडवाणी के राजनीतिक शिष्य हैं। प्रधानमंत्री मोदी अक्सर उनका आशीर्वाद लेने उनके आवास पहुंचते हैं। राम मंदिर आंदोलन के दिनों से ही नरेन्द्र मोदी, लालकृष्ण आडवाणी के करीबी रहे हैं। लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न देकर सरकार उनके योगदान के प्रति अपनी कृतज्ञता जाहिर कर रही है।
हिंदुत्व का बड़ा चेहरा
जैसे सरदार वल्लभ भाई पटेल ने देश को एकीकृत किया था, ठीक वैसे ही लालकृष्ण आडवाणी ने हिंदुओं के बंटे हुए तबकों को एक करके एक पार्टी के तले लाने में अहम भूमिका निभाई। पाकिस्तान के कराची में आठ नवंबर 1927 को जन्मे लालकृष्ण आडवाणी केडी आडवाणी और ज्ञानी आडवाणी की संतान हैं। उन्होंने कराची से शुरुआती पढ़ाई की थी और मुंबई के गवर्नमेंट लॉ कॉलेज से ग्रेजुएशन किया था।