Sunday, September 8, 2024

विश्वनाथ की अनुपम नगरी काशी

काशी एक पुराना शहर है साथ ही यह भारतीय संस्कृति की धड़कन एवं अस्मिता का भी प्रतीक है। कई लेखकों ने काशी के बारे में बहुत कुछ लिखा है लेकिन सुनीति कुमार चैटर्जी के शब्दों में काशी के सौंदर्य की छाप विश्व की प्रसिद्ध नगरियों जैसे रोम, ऐथेन्स, टामरिक और ऑक्सफोर्ड से ज्यादा प्राणवान है। इन नगरियों की उपेक्षा काशी का अस्तित्व विराट और महत्वपूर्ण है। पंडित जवाहर लाल के शब्दों में काशी अखण्ड इतिहास की नगरी है यह बात तो दिल्ली को भी प्राप्त नहीं। नई दिल्ली, दिल्ली का आठवां स्वरूप है। काशी प्राचीन नगरी है। दमिश्क के समकक्ष आज से 3000 वर्ष पहले महात्मा गौतम ने भी भारत में काशी को अपना सांस्कृतिक पीठ चुना था। पुराविदों के अनुसार ईसा पूर्व 1200 से पहले काशी का अस्तित्व था। प्राचीन काल से ही यह ज्ञान की पुरी रही है गौतमबुद्ध, जैन, आदिनाथ, शंकराचार्य, चैतन्य, संत कबीर, स्वामी रामानन्द, महाप्रभु बल्लभाचार्य, संत तुलसी दास, संत रैदास, गुरू नानक देव जी ने साधना और तत्व ज्ञान की प्राप्ति की। रामकृष्ण परमहंस ने काशी में ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। उल्लेखनीय है कि काशी अनादि नगरी और ज्ञान की पुरी रही है। विश्व के समस्त विद्वान अपने आप को आधा अधूरा मानते हैं जब तक काशी में आकर अध्ययन न कर ले।
दूसरे शब्दों में काशी मंदिरों की नगरी है। प्राय: हर घट शिवालय और प्रत्येक चौराहा किसी देवती देवता का देवरा या चौरा है। प्राय: ऐसा कहा जाता है कि भूत पावन शंकर भगवान को दो स्थान काशी और कैलाश बड़े ही प्रिय लगते हैं उन्हें काशी अति प्रिय होने के कारण कैलाश जैसे रम्प स्थान को छोड़कर गंगा समेत काशी आना पड़ा था, पुण्य सलिला गंगा में अपने प्रवाह में अनेक बार अपना प्रवाह स्थान बदला है परन्तु वह शंकर भगवान की कृपा से काशी में स्थिर है। शिव जी के मस्तिष्क पर शोभायमान अद्र्धचन्द्राकार जैसा उनका स्वरूप है। काशी में गंगा का यह सौंदर्य अतुल्य है। काशी के घाटों को गंगा जी ने कभी छोड़ा नहीं है मत्त्स पुराण में भगवान शिव स्वयं वाराणसी का वर्णन करते हुए कहते हैं
वाराणसी नदी पुण्या सिद्धगंवर्ध सेवित।
प्रवस्य त्रिपयागंगा तस्मित होत्रे ममप्रिये।।
सिद्ध गंधर्वों से सेवित पुण्य वाराणसी जहां गंगा से मिलती है वह मुझे प्रिय लगती है। गंगा के बाएं तट पर बसा हुआ यह शहर हर-हर बम बम महादेव शम्भो, काशी विश्वनाथ गंगे की आवाज और विश्वनाथ मंदिर के पट खुलने से जागता है। बिस्मिल्ला खां की शहनाई से उसकी निद्रा से टूटती है और किशन महाराज के तबले की थाप पर लोग क्रियाशील होते हैं। काशी के चरित्र में पूर्णरूप से विविधता है अनेकता में एकता साफ दिखाई देती है। मनीषियों ने जहां काशी को आनन्द कानन माना है वहीं महाश्मशान की संज्ञा भी दी गई है। यहां शवदाह भी बैंडबाजों के साथ किया जाता है। काशी में गंगा उत्तरवाहिनी है यद्यपि दक्षिण से उत्तर की तरफ बहती है। गंगा के किनारों का निर्माण राजाओं, धनाढ्य और सेठों ने किया है जो अति सुंदर है। यह घाट छ: मील के क्षेत्रफल में फैले हुये हैं। प्रात: काल सुनहरी धूप में चमकते मंदिर मंत्रोच्चार गायत्री मंत्र वाले पुरुषों और पूजा पाठ में लीन महिलाओं के साथ दिन चढ़ता है।
गंगा में तैरते फूलों और दीपों की शोभा कुछ निराली ही दिखाई देती हैं प्राय: की भांति प्रत्येक सायं व रातों को घाटों की अपनी रोचकता है। बड़े-बड़े घंटों की आवाज की गूंज में गंगाजी की आरती अति सौन्दर्य लगती है। हमारे गाईड ने हमें बताया कि काशी में गंगा पर कुल 76 घाट बने हुये हैं लेकिन इन घाटों में हरिश्चन्द्र, पंचगंगा, मणिकार्णिकन्द, दशामेघ और वरुण घाट मुख्य है। प्रत्येक घाट के साथ कोई न कोई कहानी जुड़ी हुई है। वाराणसी-वरुणा और अभी नदियों के बीच बसा वाराणसी। बनारस जहां सदा रस बरसता है। पुरातन काल से काशी विद्या का प्रमुख केन्द्र रहा है। काशी में आज तीन से भी ज्यादा विश्वविद्यालय है। तुलसी दास ने ठीक ही लिखा है-
मुक्तिजन्म महि जानि, ज्ञान खानि अधहानिकर।
जहां बस शुभ भवानी, सो काशी से इअकस नाही।।
महर्षि वेदव्यास ने वेदों को यही चार भागों में बांटा था और श्रीमद भागवत् व अठारह पुराणों की रचना की थी। महर्षि अगस्त, महर्षि पतंजलि की तपोभूमि इस परम्परा में आज भी जीवन्त किए हैं। सहस्रो साधु संत, तीर्थ, मठ, आश्रम मंदिर काशी में अनेकानेक हैं। इसलिए काशी देश की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में जानी जाती है। काशी में हर सम्प्रदाय के सन्यासी व संत है। कुछ साधुओं में से पंचमारा दंडी स्वामी है। इसके 37 मठ काशी में है। छठी शताब्दी का स्थापित जंगमवादी मठ काशी का प्राचीन मठ है। काशी विश्वनाथ मंदिर की पूजा का अधिकार इस मठ को है।
देवाधिदेव महादेव की नगरी काशी द्वादश ज्योतिर्लिंगों के स्थानों में से एक हैं। यह 51 शक्तियों में से एक शक्तिपीठ विशालक्षी मणिकार्णिका घाट पर है वैसे काशी में चार विश्वनाथ मंदिर बताए गए हैं परन्तु मुख्य मंदिर अविमुक्तेश्वर प्रांगण में स्थित काशी विश्वनाथ का मंदिर है। मंदिर का पट बाह्य वेला में तीन बजे खुल जाता है और रात्रि को 12.00 बजे बंद होता है। इस बीच कुछ पांच आरतियां तथा मंगला, भोग, संध्या, श्रृंगार और शयन आरतियां होती हैं। आरतियों के समय पुजारियों को छोड़कर अन्य लोगों के लिए गर्भगृह में प्रवेश वर्जित है। शेष समय में भक्त गर्भगृह में दर्शनार्थ आ जा सकते हैं। आरती का दृश्य अत्यन्त रोमांचकारी होता है। पुजारियों का समवेत स्वरों में मंत्रोच्चारण जटा कराह सभ्रय भ्रमत्रिलिय निर्झरों और घी कपूर की वार्तिकाओं को शोभा और अन्त में कर्पूर गौर करुणा वतारम का सस्वर मंत्र पाठ से मन को अपार शक्ति मिलती है और भक्तों में होड़ लग जाता है आरती पाने और श्री विश्वेश्वर के दर्शन की। आरती के समय को छोड़कर बाकी समय शिवलिंग गंगाजल बेलपत्र माला फूलों से ढंका रहता है। शिवरात्रि, रंग भरी एकादशी और अन्नकूट पूर्व पर मुख्य शिवलिंग जिसके चारों तरफ सोने की जलघरी और चांदी का चौकार घेरा है शिवलिंग सोने के जलघरी में जमा होता है कुछ ही दूरी पर मां अन्नकूट का मंदिर है। धार्मिक दृष्टि से पंचकोशी यात्रा का बहुत महत्व है। कर्दमश्वर, भीमचड़ी, रामेश्वरम पंच पांडव और कपिलधारा ये पांच पड़ाव है।
गुप्तकाल में श्री विश्वेश्वर मंदिर का भव्य निर्माण हुआ था। 1110 ई. से 1669 तक मंदिर को तोडऩे का काम मुस्लिम शासकों द्वारा लगातार चलता रहा। मंदिर टूटता रहा पुन: बनता रहा। मुगल शासकों में कुतुबुद्दीन ऐबक, शाहबुद्दीन गौरी, इल्तुनमिश, फिरोज तुगलक, सिकंदर लोदी और औरंगजेब ने काशी के मंदिरों को जमीदोज कर दिया था। 2 अक्टूबर 1669 को औरंगजेब ने काशी के मंदिर को पूर्ण रूप से ध्वस्त कर दिया था। मेवाड़ के राजा रीवा नरेश ने अपनी काशी यात्रा के दौरान 1672 और 1772 में ज्ञानवाणी परिसर पुराने मंदिर के पास शिवलिंग वर्तमान मंदिर के गर्भगृह के परिचय में है वर्तमान मंदिर 1780 में अहिल्याबाई ने बनवाया था। महाराजा रणजीत सिंह ने 1839 में 875 किलो सोना चढ़ाया था। आज काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवाणी परिसर पुलिस छावनी बन गई है। इसके सामान्य नागरिक को बड़ी मुश्किल होती है। काशी मंदिर को जाने के लिए मेंटल डिडेक्टर से होकर जाना पड़ता है। मैंने देखा कि काशी में लघु भारत का सहज ही दर्शन होता है। दक्षिण भारतीय, बंगाली, मारवाड़ी, महाराष्ट्रीय, गुजराती, पंजाबी, हरियाणी, उत्तर प्रदेश इत्यादि विविध भारतीय लोग नया संदेश दे रहे हैं।
मैंने स्वयं अपनी आँखों से देखा कि काशी की सरजमी कुछ निराली ही नजर आती है। अस्सी घाट से लेकर राजपाट तक घाटों की श्रृंखला के अद्भुत नजारे देखने को मिलते हैं जहां गरीब से करोड़पति हर-हर महादेव शंभों के मंत्रों से गंगा में स्नान कर और विश्वनाथ व माँ अन्नपूर्णा का दर्शन कर अपने आप को भाग्यशाली मानता है। मैंने मोदी के चुनाव प्रचार की कवरेज के लिए ईमानदारी से ड्यूटी निभाते हुए मुस्लिम समुदाय से भी काशी के बारे में अपने विचार एकत्रित करते हुए कई आश्चर्यचकित प्रश्न सामने आए हैं जिसका जिक्र बाद में करूंगा लेकिन मुस्लिम लोगों की भी शिव शंकर भोले बाबा में पूर्ण आस्था देखने को मिलती है।
मिर्जा गालिब ने 1827 ई. में इस शहर को चिरागे ढेर मंदिर का दीया कहा था और कई शायर इस काशी की सुंदरता के कहे थे।
त आल अल्लाह बनारस चश्मे-ए-बद्दूर।
विहिश्त-ए-खुर्रम-ओ फिरदौस ए मासूर।।
अभिप्राय: बनारस एक हरा भरा शहर है यह स्वर्ग जैसा दिखाई देता है, अल्लाह इसे बुरी नजर से बचाए।
इबादत रवाना-ए- नाक सियानबस्त।
हमाना काब-ए-हिन्दुस्तान।।
अभिप्राय बनारस शंख बजाने वालों का उपासना घर है और हिन्दुस्तान का काबा है।
खाक भी जिस सरजमी की पारस है।
शहर मशहूर वह बनारस है।।
एक कवि ने तो यहां तक लिखा है-
चना चबेना गंगा जल जो पुखै कवार।
काशी कनि न छोडिय़े विश्वनाथ दरबार।।
हमारे गाईड ने बताया कि जितना आप काशी का सफर करते जाएंगे आप यहां के हो जाएंगे। काशी हिन्दू धर्म का जीता जागता संग्रहालय है। काशी के जीवन में संतोष एवं मस्ती है। हर व्यक्ति शिव रंग में रंगा हुआ है। इसे मंदिरों का शहर के नाम से जाना जाता है। यहां का हर नर-नारी एवं बूढ़े बच्चे शिव भक्ति में प्रात: से सायं तक मग्न रहते हैं। बूढ़े यहां मोक्ष प्राप्ति के लिए प्राय: आते रहते हैं। काशी मोक्ष द्वार भी है।
सुभाष आनन्द – विभूति फीचर्स

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