आत्मा का स्वाभाव है आनन्द, शान्ति, पवित्रता। हे मनुष्य, यही तेरा वास्तविक स्वरूप है। तू इसे पहचान, परन्तु तू अपने चोले को ही अपनी पहचान मान रहा है। यह चोला तो नाशवान हैं, किन्तु तुम इस चोले से भिन्न हो, अमर हो, चैतन्य हो।
अपने वास्तविक स्वरूप को पहचाने बिना न आनन्द की प्राप्ति होगी न शान्ति मिलेगी न ही पवित्रता कायम रह सकेगी। जब तू इस सच्चाई को जानकर अपनी भक्ति से सुखदाता प्रभु को प्रसन्न कर लेगा, तो प्रभु तुझे ज्ञानी मानी और आत्मा से बलवान बना देंगे, जिससे तुम्हारी कीर्ति और यश चारों दिशाओं में फैलेंगे।
जब भक्ति में प्रगाढता आ जायेगी, तो प्रभु तुझे दक्ष ही नहीं सुदक्ष बना देंगे। जो सुदक्ष हैं, वह स्वत: ही सुन्दर भी हो जाता है।
तब तुम्हारी मित्रता भावों से होगी, अभावों से नहीं। अपनी सुंदरता के कारण तुम आत्म ज्ञानी बन जाओगे। सबके आदर का पात्र बन जाओगे, आत्म साक्षात्कार हो जायेगा। आत्म साक्षात्कार के मार्ग से ही परमात्मा के साक्षात्कार का मार्ग भी प्रशस्त हो जायेगा।