Saturday, May 18, 2024

जब प्राण निकलते हैं ?

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पुराणों के अनुसार, क्या यह सत्य है कि मानव की आत्मा मृत्यु के समय कर्म के अनुसार निकासी स्थान चुनती है जैसे पाप कर्म वालों के गुदा मार्ग से निकलती है?
गरुड़ पुराण के अनुसार शरीर के दस ऐसे अंग है जो खुले रहते है, दो आंखें, दो कान, दो नासिका के छेद, मुख, दो मल, मूत्रा विसर्जन द्वार।

आखिरी द्वार है सिर के बीच तलवा, माँ के गर्भ में बच्चे के शरीर में आत्मा का प्रवेश इसी रास्ते से कराया जाता है।
जब मौत आती है तो कर्मो के हिसाब से ही आत्मा शरीर से इन्ही द्वारों द्वारा बाहर निकलती है। सत् शरीर से आत्मा सिर के तलवे से ही बाहर निकलती है, वहीं दुष्ट आत्मा शरीर से बाहर मल-मूत्र विसर्जन द्वार से निकलती है। आत्मा के शरीर से बाहर निकलते ही सत् आत्मा सीधे स्वर्ग सिधार जाती है जबकि पापियों की आत्मा को यम के दूत लेकर जाते हैं और उसे, उसकी कर्मफल यातनाओं के बारे में बताया जाता है।

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जिन लोगों की आत्मा उत्सर्जन अंग से निकलती है। वे मृत्यु के समय मल मूत्रा का त्याग कर देते हैं। इस प्रकार से आत्मा का शरीर त्याग करना अच्छा नहीं माना जाता।
गरुड़ पुराण में बताया गया है कि इस प्रकार से आत्मा उन्हीं की निकलती है जो जीवनभर अपने और अपने परिवार के बारे में सोचते हैं और उनके लिए नैतिकता का त्यागकर धन और सुख अर्जित करते हैं।
मोह माया में उलझा व्यक्ति अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण नहीं रख पाता और काम वासना से पीडि़त रहता है।

ऐसा व्यक्ति मृत्यु के समय जब यम के दूतों को देखता है तो घबरा जाता है और इनके प्राण नीचे की ओर सरकने लगता है और प्राणवायु नीचे की ओर से निकल जाता है। प्राण वायु के साथ अंगूठे के आकार का एक अदृृश्य जीव निकलता है जिसके गले में यम के दूत पाश बांध देते हैं और अपने साथ यमलोक लेकर चले जाते हैं। इस तरह से मृत्यु बड़े ही पापी व्यक्ति की होती है।

शास्त्रों के अनुसार मुंह से प्राण वायु का निकलना बड़ा ही शुभ होता है। इस तरह से प्राण निकलना धर्मात्मा व्यक्ति का ही संभव है। ऐसे व्यक्ति की आत्मा को यमलोक जाकर यम का दंड नहीं भोगना पड़ता है।
शास्त्रों में यह भी बताया गया है कि मुख के अलावा नासिका से प्राण का निकलना भी शुभ होता है।

इस तरह से प्राण का त्याग उन्हीं व्यक्तियों के लिए संभव है जिन्होंने कामना और मोह का त्याग कर लिया हो। परिवार और समाज में रहते हुए भी जो वैरागी हैं वही इस तरह से प्राण त्याग करते हैं।
संत पुरुषों, महात्माओं आदि के ही प्राण सिर के तलुवे से निकलते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति संभव होती है।
– शिवानंद मिश्रा

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