Saturday, May 4, 2024

अवैध संबंधों के लिए दोषी कौन?

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स्त्री हो या पुरुष, अवैध संबंधों के लिए कोई भी अकेला जिम्मेदार नहीं होता। कोई भी विवाह तभी सफल हो सकता है, जब पति-पत्नी में परस्पर प्यार व विश्वास हो। वे एक-दूसरे के स्वभाव से भली-भांति परिचित हों और उनमें आपस में गहरी अंडरस्टैंडिंग हो। एक विद्वान का कथन है कि आदर्श दाम्पत्य में पति-पत्नी एक प्रकार के भाई-बहन बन जाते हैं।
वे एक-दूसरे को अपनी अमूल्य निधि समझते हैं, एक-दूसरे की सहायता करने को तत्पर रहते हैं। बच्चे की भांति एक-दूसरे की रक्षा करना चाहते हैं। जहां ये सब बातें नहीं होतीं, पति-पत्नी दोनों ही एक-दूसरे के सामने झुकने को तैयार नहीं होते तथा अपने-अपने अहं के विषधरों को पालने में व्यस्त हो जाते हैं, वहां उनका जीवन विषाक्त हो जाता है। क्या आश्चर्य कि ऐसे घुटन भरे वातावरण से पुरुष या स्त्री दोनों ही पलायन चाहें। नतीजतन जहां भी उन्हें सहानुभूति की आंच मिलती है, वे पिघल उठते हैं। यह सच है कि विवाहित पुरुष के अवैध संबंधों के लिए दोषी अक्सर औरत ही होती है।
एक तो स्वयं  उसकी पत्नी जो पति को इतनी ढील देती अपनी लापरवाही से उसे गंवा देती है, दूसरी वह दूसरी औरत जो यह जानते हुए भी कि जिसके साथ वह अवैध संबंध स्थापित कर रही है, वह शादीशुदा बीबी-बच्चे वाला आदमी है, अपने पर काबू नहीं रखती। कभी-कभी परिस्थितियां पुरुष को दूसरी स्त्री के करीब ले जाती है जिन पर दोनों का ही वश नहीं होता।
मेरे ख्याल से इन संबंधों का समाज जितना तिरस्कार करता है, वह उचित नहीं, क्योंकि यह एक निहायत ही निजी समस्या है। कभी ऐसा भी होता है कि स्वयं पत्नी को इस संबंध से कोई शिकायत नहीं होती। फिर औरों को परेशानी क्यों? कभी-कभी यह भी होता है कि ऐसे संबंध सामयिक होते हैं और पति फिर पत्नी की बाहों में लौट आता है। छोटे-मोटे फ्लर्टेशन से नुकसान न होकर फायदा ही होता है। पति-पत्नी के संबंधों में जैसे नई ताजगी आ जाती है। पत्नी के जो गुण पति को अब तक दिखाई नहीं दे रहे थे दूसरी स्त्री की तुलना में ये उजागर होने लगते हैं। उसकी सहनशीलता पति में उसके प्रति आदर भाव जगाती है।
मनोवैज्ञानिकों तथा समाजशास्त्रियों ने इस विषय पर काफी अध्ययन किया है। उनका कहना है कि स्त्रियां ही इसे (अवैध संबंधों) जन्म दे सकती हैं या समाप्त कर सकती हैं। वे इसका भार स्त्री पर ही अधिक डालते  हैं ।
समाज के हर वर्ग के पुरुष स्त्रियों के ऐसे संबंध बनाने के अपने तरीके  हैं । उच्च वर्ग में ऐसे संबंध प्राय: बराबरी वालों में ही होते हैं, लेकिन कई बार अवैध संंबंध दो अलग तबके के लोगों में भी बन जाते हैं।
जैसे उच्च अधिकारियों के अपने सेके्रटरी से। लम्बे समय तक का सामीप्य काम में सहयोग तथा जी हुजूरी और आज्ञाकारिता उन्हें बॉस की नजरों में बहुत अच्छा बना देती है। इसके विपरीत घर में पति को एक स्वीकृत शख्स समझ बीबी मनमाने तरीके से उससे बॉस की तरह बरताव करने लगती है, जिससे पति के अहं को चोट पहुंचती है, लेकिन घर में चख-चख से बचने के लिए कई बार वह पत्नी से कुछ नहीं कहता, लेकिन मन ही मन बहुत क्षुब्ध हो उठता है।
इस तरह के संंबंधों में सच्चा पे्रम या एक-दूसरे के लिए मर-मिटने का भाव नहीं होता, बल्कि एक प्रकार का समझौता होता है। सेके्रटरी पदोन्नति चाहती है, कीमती तोहफे लेकर खुश होती है तथा एक प्रकार की सुरक्षा महसूस करती है। पुरुष अधिकारी तनावमुक्त होकर कुछ देर का मनोरंजन चाहता है। उसके घर में मिलने वाली ऊब दूर करना चाहता है। इसी तरह डॉक्टर-नर्स के किस्से भी मशहूर हैं। दरअसल डॉक्टर्स के लिए सर्जरी का काम काफी थका देने वाला होता है। फिर नर्सों का लंबे समय तक का सान्निध्य और उनकी विनम्र आज्ञाकारिता उन्हें अपनी ओर आकर्षित करती है। उनकी चुस्ती-फुर्ती उनका आकर्षण बन जाती है।
इस तरह ज्यादातर प्रोफेशन करने वाली मातहत स्त्रियां अपनी मुस्कान, वाकचातुर्य तथा नारीत्व का प्रदर्शन कर किन्हीं कमजोर क्षणों का लाभ उठाकर अपने बॉस को पूरी तरह अपनी मुट्ठी में कर लेना चाहती हैं। अगर वे अविवाहित है तो कभी-कभी वे बॉस की मिस्ट्रेस बनकर रहने से भी नहीं झिझकतीं। यह प्रथा  पुराने जमाने से चली आ रही है कि विवाहित स्त्री के अलावा भी और स्त्रियों से अवैध संंबंध स्टेटस सिम्बल माना जाता है। कई पुरुष इसे खुल्लम खुल्ला स्वीकारने में गौरव समझते हैं।
पुरुष के कदम बहक जाने के लिए पत्नियां भी कम उत्तरदायी नहीं हैं। घर के कामों को ठीक से प्लान न करने से वे अपने को कभी-कभी ओवर एक्जर्ट कर अपने साथ तो अन्याय करती ही हैं, पति को भी विमुख कर देती हैं। एक थकी हुई शिथिल स्त्री के पास न अपने को सजाने-संवारने के लिए स्टेमिना रह जाता है, न पति से हंस-बोलकर उनका मन बहलाने का। ऊपर से वे पति से कभी उनके देर से आने के कारण सजकर मुंह फुला देती हैं तो कभी आते ही शिकायतों एवं जरूरतों की फाइल खोल बैठती हैं। उनके कभी काम का ऑफिस में प्रेशर है, कहने पर कहती हैं- क्या काम का प्रेशर है। बस ऑफिस गये, कुर्सी संभाली, कुछ इधर-उधर अपनी बासिज्म दिखाई और घर वापस।
काम का भार तो हम गृहिणियों पर होता है। एक दिन घर संभालो तो छक्के छूट जाएं। कभी कहेंगी- इतना थक जाते हो तो छोड़ क्यों नहीं देते यह नौकरी। कहीं और अप्लाई कर देखो। आपको  इतना अनुभव हो जाने पर आपके लिए काम की क्या कमी।
अब ऐसे निरुत्साह करने वाले कमेंट्स तथा हर समय की लानत-मलानत किसे अच्छी लगेगी। फलस्वरूप पति, पत्नी से कम से कम बात करने लगता है। उसकी सोहबत से कतराकर ज्यादा वक्त ऑफिस, क्लब, दोस्तों  वगैरह में गुजारने लगता है और ऐसे में कोई भी स्त्री सहानुभूति दिखाकर अपने मृदु व्यवहार से या नयनों के कटाक्ष चलाकर अपने रूप, जवानी के जाल में उसे आसानी से फांस लेती है।
आखिर वो भी इंसान ही है। अपने पर काबू नहीं रख पाता और बहक जाता है। कहते हैं शैतान रहता है औरत में और काम रहता है मर्द में। ग्रीन सिग्नल अक्सर औरतों की तरफ से ही मिलता है। बाद में वो लाख सती सावित्री होने का ढोंग करें। औरत की रजामंदी के बगैर कोई भी मर्द उससे अवैध संबंध स्थापित नहीं कर सकता। अगर वह जोर जबर्दस्ती करता है तो यह बलात्कार की श्रेणी में आता है, जिसके लिए कानून में कड़ी सजा निर्धारित है। एडल्टरी भी कानूनन जुर्म है, लेकिन पहली बात तो इसे सिद्ध करना मुश्किल है। सिद्ध होने पर भी इसके लिए सजा देना इतना आसान नहीं। संसार के हर देश में यह कितना बड़ा जुर्म है इसकी अलग-अलग श्रेणी है। यह उस देश के समाज वहां के सोच व रीति-रिवाज आदि पर निर्भर करता है।
वे एक बात और है। वह यह कि ये संंबंध अगर शारीरिक हैं, तभी अवैध कहलाते हैं अगर मानसिक या भावनात्मक हैं तो यह अनैतिक होने पर भी ये गैरकानूनी नहीं कहलायेंगे और न ही कानून में इसके लिए कोई सजा है।
आधुनिक समाज में जहां स्वेच्छाचारिता बढ़ी है, तनाव बढ़े हैं, सोच का ढंग बदला है, स्त्री-पुरुष के संबंधों में भी बदलाव आया है। उन्हेंं साथ रहने के ज्यादा मौके मिलने लगे हैं। स्त्री-पुरुष में रासायनिक आकर्षण एक नेचुरल फिनामिना है। कई पुरुष अपनी इच्छाओं का दमन कर इसे नकारने में सफल होते हैं, कई पुरुष नहीं हो पाते और वे इच्छानुसार अपनी पसंद की स्त्री से अवैध संबंध कायम कर लेते हैं।
हमारे समाज में ट्रेंड यही है कि ऐसे पुरुषों को बदमाश या चरित्रहीन समझा जाता है। सती सावित्री की इमेज वालीं स्त्रियां उनकी परछाई से भी दूर रहना चाहती हैं। वे उनका तिरस्कार करती हैं। ऐेसे पति, पत्नी की नजरों में गिर जाते हैं। ये उनकी तरफ से उदासीन होकर रोती, किलपती और कुढ़ती रहती हैं।
अगर वे बैठकर ठंडे दिमाग से सोचें तो समझ जाएंगी कि पति को कोसना या रोना-कलपना इस समस्या का समाधान नहीं है। पति क्या चाहते है, उनकी पसंद-नापसंद आदतों स्वभाव, कमजोरी तथा गुण-अवगुण समझकर उन्हें उसी रूप में स्वीकार कर लेने पर ही पत्नी, पति की सच्ची सहचारी बन सकती है। उनकी किसी भी कमजोरी का स्पष्ट विरोध कर विरोधी मोर्चा संभालने के बजाय अगर वो सूझबूझ, दूरदर्शिता, धैर्य, अपनत्व और प्यार से उन्हें समझायेंगी तो कोई कारण नहीं कि वे अपनी गलतियों का अहसास न करें। पत्नी अगर समझदार हो तो पति की उच्छृंखलता स्वयमेव समाप्त हो जाती है।
जिस तरह स्त्रियां इतनी भोली और नादान नहीं होती जो जरा से फसाये जाने पर पुरुष के बहकावे में आकर आत्मसमर्पण कर दें, उसी तरह पुरुष भी सीधा-सादा, भोला-भाला नहीं होता। हां, रंगीन मिजाज दिलफेंक किस्म का आशिक जरूर हो सकता है और ऐसा होना कोई अवगुण नहीं। उसकी रंगीन तबीयत से ही दुनिया में रंगीनी है। इसे तो पत्नी को अपने पति का गुण ही समझना चाहिए। नीरस और बोर पति भला किस पत्नी को अच्छा लगेगा, लेकिन इतना जरूर है कि ऐसे पति पर उसे अपनी लगाम कसी रखनी चाहिए, शासक बनकर नहीं, बल्कि अपनी चतुराई से।
हर पत्नी को यह बात समझ लेनी चाहिए कि उसका पति शारीरिक रूप से चाहे कितना ही लंबा-चौड़ा पठान दिखता हो, मर्दानगी की बड़ी-बड़ी बातें करता हो, उसकी बाहों के झूले में अंतत: वह एक अपरिपक्व किशोर ही है।
उषा जैन शीरी-विनायक फीचर्स

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