Monday, December 23, 2024

मनुष्य वास्तव में है कौन ?

मनुष्य वास्तव में है कौन? किसके कारण शरीर गतिमान है? किसके कारण यह शरीर चल फिर रहा है? जब कहता है कि मेरा हाथ है, मेरे सिर में दर्द हो रहा है, मेरी आंखें हैं, मेरे कान हैं तो फिर वह शरीर से अलग कोई है, जिसके ये हाथ-पांव, आंखे आदि हैं।

कौन कह रहा है कि ‘मेरी आंख मेरा कान’, निश्चय ही मैं शरीर नहीं मैं आत्मा हूं। शरीर तो इसका निवास है, जिस प्रकार हम मकान में रहते हैं तो हम यह नहीं कहते कि मैं मकान हूं, मैं अलमारी हूं, मैं रसोई हूं। हम बीच में रह रहे हैं।

यह चराचर जगत निराकार परमात्मा की रचना है। जिस प्रकार एक कलाकार कोई कलाकृति बनाता है, उसी प्रकार की यह रचना है। मानव परमात्मा की विशेष कृति है। मनुष्य को परमात्मा ने अपने ही रूप में बनाया है, इसलिए स्वाभाविक है मानव मात्र को प्यार करना ईश्वरीय इच्छा होगी। सभी संतों, मनीषियों ने भी इंसानों को आपस में प्यार करने का उपदेश किया।

चाहे महापुरूष सतयुग में हुए, त्रेता में हुए, द्वापर या कलियुग में हुए, चाहे भगवान राम जी हुए, चाहे भगवान कृष्ण जी हुए, महावीर हुए, बुद्ध हुए, गुरूनानक हुए, दयानन्द  हुए, सभी ने आपस में प्यार से रहने का ही उपदेश किया, परन्तु हम अपने निजि स्वार्थों के कारण परमात्मा के नाम पर ही एक-दूसरे को मिटाने, जान लेने को उतारू हो जाते हैं।

हम ईश्वर का नाम तो बहुत लेते हैं, परन्तु आदेशों की अवहेलना करते हैं।

- Advertisement -

Royal Bulletin के साथ जुड़ने के लिए अभी Like, Follow और Subscribe करें |

 

Related Articles

STAY CONNECTED

74,303FansLike
5,477FollowersFollow
135,704SubscribersSubscribe

ताज़ा समाचार

सर्वाधिक लोकप्रिय