मानव पाप कर्मों से सदैव दूर रहेगा यदि वह प्रत्येक समय परमात्मा तथा अपनी मृत्यु का स्मरण रखे।
यदि किसी व्यक्ति को कहा जाये कि एक सप्ताह के पश्चात अमुक समय मृत्यु तुम्हारा वरण कर लेगी तो इस अवधि में वह निष्पाप होकर भगवान का भजन ही करेगा। उसके मन से शत्रुता के भाव समाप्त हो जायेंगे, सबको प्यार करेगा। घृणा, द्वेष, ईर्ष्या, क्रोध, बेईमानी जैसे दुर्गण पल भर में तिरोहित हो जायेंगे। इस अवधि में उसका चिंतन तथा उसका आचरण ऐसा हो जायेगा जैसा वास्तव में उसे सदा से ही करना चाहिए था।
यदि ऐसा वह अपने सम्पूर्ण जीवन में सदैव ही रहे और यह मान ले कि मुझे इस कर्म क्षेत्र से एक न एक दिन अवश्य जाना है, तो मन वाणी और कर्म से वह कभी भी दुष्कर्म नहीं करेगा। वह अपने मन में यह निश्चय कर ले कि मैं यह शरीर नहीं आत्मा हूं, मै अमर हूं। मैं तो इस मृत्यु के पश्चात भी रहूंगा। मैंने कोई बुरा कर्म किया ही नहीं है, इसलिए अगला जीवन इस जीवन से कई गुणा सुन्दर और सुखी होगा तो इससे बड़ी सफलता इस मानव जीवन की ओर क्या हो सकती है।