आज के जमाने की हवा में इतना बड़ा परिवर्तन इतना तीव्र गति से होते कदाचित हमारी पूर्व की पीढिय़ों ने नहीं देखा होगा, जितना परितर्वन आज के समय में एक-एक दिन में हो रहा है। जो आज बुजुर्ग हैं उन्हें तो यह परिवर्तन उनके होश उड़ा रहा है।
प्रतीत हो रहा है कि लोग उधार की जिंदगी जीने पर मजबूर हैं। पहले उन बुजुर्गों के समय हर गलती पर मां-बाप की डांट का डर होता था, परन्तु आज तो मां-बाप ही डरे-डरे से नजर आते हैं। पहले स्कूल के मास्टर जी का डर होता था, परन्तु अब स्कूल में मास्टर जी के माथे पर पसीने की बूंदे आती हैं कि कहीं कुछ कह दिया तो मेरी नौकरी ही न चली जाये। क्या हो गया है आज के समाज को?
कोई गलती पर भी कुछ बोलता नहीं, नंगे लोग दबंग हो गये हैं और शरीफ आदमी बेचारा। आज घर के खाने को बैकवर्ड मानते हैं बाहर रेस्तरां में खाने में खुशियां नजर आती है। घर में खाना बनाना बड़ा भारी महसूस होता है।
जिस खाने को बनाने में गृहणी को खुशी महसूस होती थी, अब बहुतो को यह छोटा काम लगने लगा है। पहले एक छोटी सी रसोई में सारे घर के सदस्य घेरा बनाकर खाना खा लेते थे, अब टेबिल पर खाना रखा है। एक का दूसरे को पता नहीं कब खा रहा है। पहले घर की सारी बातें खाने के समय ही हो जाती थी, अब संवादहीनता बढ़ रही है, जिसके कारण विचारों में दूरियां भी बढ़ रही है, घरों में विघटन हो रहे हैं, जिसके कारण समाज में सभी अशांत हैं।