जीवन एक पुस्तक है। जैसे पुस्तक के पन्नों की संख्या निश्चित और सीमित होती है वैसे ही जीवन पुस्तक भी वर्ष, मास, दिन, घडी, पल आदि में निश्चित और सीमित होती है। जीवन पुस्तक में एक पृष्ठ आदि का जिसमें जन्मतिथि और दूसरी तिथि जन्मान्त अर्थात मृत्यु होती है।
जीवन पुस्तक का निर्माण आरम्भ माता के उदर (गर्भाधान) से होता है और अन्त श्मशान में होता है। जैसे किसी पुस्तक का पृष्ठ बदलते ही नया लेख सामने आ जाता है, वैसे ही जीवन रूपी पुस्तक का प्रात:काल जागते ही एक नया पृष्ठ सामने आ जाता है। आज की तिथि रूपी पृष्ठ में जो कुछ भी दुख-सुख, मान-अपमान, संयोग-वियोग तथा हानि-लाभ रूपी लेख लिखा है वह तो भोग रूपी अध्ययन अनुभव करना ही होगा।
लेख चाहे अनुकूल हो या प्रतिकूल, पसंद या ना पसंद हो, किन्तु जो लिखा है वह पढऩा ही पड़ेगा। हमारी प्रारब्ध की पुस्तक के आज तिथि रूपी पृष्ठ में जो कुछ भी दुख-सुख भोग निश्चित है वे तो भोगने ही होंगे। चाहे हंसकर भोगों, चाहे रोककर भोगों। ज्यौं-ज्यौं पृष्ठ उलटते जाते हैं त्यौं-त्यौं पुस्तक की समाप्ति होती रहती है।
ज्यौं-ज्यौं दिन बीतते जा रहे हैं त्यौं-त्यौं जीवन पुस्तक भी समाप्त होती जा रही है आयु के जितने दिन व संख्या बनती है समझो उतने ही दिन की यह जीवन पुस्तक है। जीवन के जितने दिन बीत चुके उतने पृष्ठ भोग रूपी अध्ययन करके समाप्त कर दिये। अब आयु के जितने दिन शेष उतने ही पृष्ठ पढऩा शेष।