मानव जीवन के दो मार्ग हैं। एक प्रेम मार्ग और दूसरा श्रेय मार्ग अर्थात एक बन्धन का मार्ग, दूसरा मोक्ष का मार्ग। अधिकांशत: यही माना जाता है कि मृत्यु के पश्चात जब शरीर रूपी बन्धन से मुक्ति मिलती है, तब मोक्ष मिलता है, परन्तु सच्चाई यह है कि मनुष्य जीवित रहते हुए मोक्ष प्राप्त कर सकता है।
गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं ‘शुभ कर्म करते हुए और उन कर्मों को मन से परम सत्ता को अर्पण करते हुए यदि कोई पुरूषार्थ करता है तो इसी जीवन में मोक्ष पा लेता है।
वास्तव में कर्म करते हुए व्यक्ति को अनेकों अनेक बन्धनों को काटना पड़ता है, जिनमें लोभ, मोह और अहम् प्रमुख है। चूंकि बन्धन हमेशा दुष्प्रवृत्तियों के ही होते हैं। इसलिए उनसे छुटकारा पा लेना ही मोक्ष है, यदि यह दूरदर्शिता हमारे अन्दर आ जाये तो मोक्ष का तत्व समझते हुए हम जीवन को सफलता की चरम सीमा तक पहुंचा सकते हैं।
हमें मानव जीवन मिला ही इसलिए है कि हर व्यक्ति इस परम पुरूषार्थ के लिए कर्म करें एवं परम तत्व (ईश्वर) की प्राप्ति के लिए इस प्रयोग को सार्थक बनाये।
बन्धन और मोक्ष में अन्तर केवल इतना सा है कि जब आसुरी सम्पदा हमारे पास बढेगी तो हम बन्धन की ओर बढ़ जायेंगे और जब देवी सम्पदा हमारे पास बढेगी तो हम मोक्ष की ओर बढ़ जायेंगे।