जीवन ऐसे है जैसे वृक्ष का पत्ता। लाल कौपल फूटती है, हरियाली यौवन आता है और शीघ्र ही पत्ता पीला पड़ जाता है। वायु का एक झौंका पीले पत्ते को वृक्ष की टहनी पर से तोड़कर धूल में मिला देता है। कितने ही पत्ते कौपल अवस्था में और कितने ही यौवन अवस्था में टहनियों से झड़ जाते हैं। कितना अस्थिर है यह जीवन।
जीवन ऐसे है जैसे कुश की नोक पर अटका हुआ ओस बिंदू मौक्तिक कण प्रतीत होता है, किन्तु हल्का सा वायु का झोंका उसे धूल धूसरित कर सकता है। कितना चंचल, क्षण भंगुर और आशाश्वत है यह जीवन।
जीवन ऐसे है जैसे सागर के वक्ष पर बलखाती इठलाती लहरें। किनारे से टकराते ही लहरें ऐसे विलीन हो जाती है जैसे उनका कोई अस्तित्व था ही नहीं, कितनी लहरें आपस में टकराकर ही किनारे पर पहुंचने से पूर्व ही खो जाती हैं। कितना स्वल्प है यह जीवन।
मनीषी कहते हैं कि जीवन का धागा असंस्कारित है, इसलिए क्षण मात्र के लिए भी प्रमाद मत करो। बूढ़े होने तक आप जीयेंगे यह बिल्कुल भी सुनिश्चित नहीं है। किसी भी क्षण विदाई की वेला उपस्थित हो सकती है। किसी भी क्षण जीवन खो सकता है। इससे पूर्व कि जीवन खो जाये, जीवन में छिपे परम जीवन को पाने का प्रयास करो। इससे पूर्व कि श्वास वापिस न लौटे आत्मा में छिपे परमात्मा को जगा लो।
जीवन क्षणिक है, अनिश्चित है फिर भी अमूल्य है यह जीवन क्योंकि इसी के द्वारा परम सत्य से साक्षात्कार किया जा सकता है।