गायत्री मंत्र (ओइम् भुर्भुव: स्व:….) सहित सम्पूर्ण मानव समाज के लिए अनमोल है। कितने आश्चर्य की बात है कि आधुनिक काल में भी कुछ स्वयंभू विद्वान, पोंगा, पंथी तथा मठाधीश स्त्रियों को गायत्री मंत्र के जाप का निषेध करते हैं। यह अनर्थ है जिसका समाधान आवश्यक है वेद से लेकर पुराणों और स्मृतियों तक सबने ही वेद पठन में स्त्रियों का अधिकार माना है।
जब वेद मत्रों की दृष्टा ऋषियों के साथ ऋषिकाएं भी हुईं है, तब इनके वेद पढऩे के अधिकार पर कौन उंगली उठा सकता है। महाभारत में सिद्धा नाम की तपस्वनी और ब्रह्मवादनी देवी का वर्णन आया है सिद्धा वेदाध्ययन करने वाली और योग सिद्धि को प्राप्त थी। महर्षि भारद्वाज की पुत्री श्रुतावली वेद की पूरी पंडिता थी।
भारती मैत्रेयी, गार्गी, सुलभा, वयुना, धारिणी, वेदवती, शिवा वेदों की ज्ञाता थीं। वेदवती को तो चारों वेद कंठस्थ थे। वेद में महामृत्युंजय मंत्र से अगला मंत्र ‘ओइम त्रयम्वकम् यजामहे सुगन्धिम् पतिवेदनम् उर्वा रूकमिव बन्धनादितौ मुक्षय मामुत: तो केवल स्त्रियों के लिए ही है, जिसमें अखंड सौभाग्य की प्रार्थना की गई है।
भविष्य पुराण के उत्तर पर्व 4/13 में लिखा है ‘या स्त्री भत्र्रा वियुक्तापि त्वाचारे संयुक्ता शुभा सा च मत्रान प्रगृहृयातु सभत्र्रा स्वनुज्ञया। अर्थात उत्तम आचरण वाली विधवा स्त्री वेद मंत्रों को ग्रहण करे और सधवा स्त्री अपने पति की अनुमति से वेद मंत्रों को ग्रहण करें। फिर संशय क्यों?